भारतीय राजनीति का गढ़ माने जाने वाले उत्तर प्रदेश से एक चौंकानेवाली राजनैतिक साझेदारी की खबर है. वर्तमान गवाह है कि इस वक़्त देश में भाजपा की आंधी चल रही है. लेकिन अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के इस विजय रथ को रोकने की कवायद शुरू हो चुकी है. इस मुश्किल और ज़रूरी काम के लिए 23 साल पुराने दोस्त एक बार फिर साथ आ रहे हैं. हर कोई जानता है कि सपा और बसपा एक दुसरे को ज़रा नही भाते. 1995 में हुए गेस्ट हाउस काण्ड के बाद इनके रिश्तों में जो तल्खी आई है वो कभी कह्तं नहीं हुई. लेकिन अब पुरानी दुश्मनी को भूलते हुए नयी दोस्ती के आगाज़ में मायावती ने अखिलेश यादव के सपा उम्मीदवार को गोरखपुर और फूलपुर उपचुनाव के लिए समर्थन देने का एलान किया है. वहीं इस समर्थन के बदले में अखिलेश यादव मायावती को राज्यसभा का रिटर्न गिफ्ट दे सकते हैं.
दुश्मनी के अतीत पर दोस्ती का कल
दरअसल उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी 23 साल पुरानी दुश्मनी के बाद साथ आ रहे हैं. 23 साल बाद मायावती समाजवादी पार्टी के साथ किसी सियासी काम में दाखिल हो रही हैं. इसमें मायावती की राजनैतिक ज़रूरत भी है और दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी के नए अध्यक्ष अखिलेश से उन्हें वैसी शिकायत भी नहीं जैसी उनके पिता मुलायम के साथ थी. इन दोनों दिग्गज नेताओं के बीच पहला समझौता राज्यसभा-विधान परिषद चुनाव का हुआ है. हालांकि बसपा अध्यक्ष मायावती ने उत्तर प्रदेश की गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा उपचुनाव में सपा से गठबंधन की खबरों को गलत बताया है. मगर राज्यसभा और प्रदेश विधान परिषद के आगामी चुनावों में सपा और कांग्रेस के साथ ‘सहयोग’ के दरवाज़े खोल दिये हैं.
सपा और बसपा ने 1993 के विधानसभा चुनाव में गठबंधन करके चुनाव लड़ा था. इस चुनाव में दोनों को 177 सीटें मिली थी और सपा-बसपा ने दूसरों के गठबंधन से बहुमत का आंकड़ा पाकर सरकार बनाई थी. लेकिन आज सवाल ये है कि अखिलेश यादव अगर बसपा के साथ गठबंधन कर भी लें तो सपा के भीतर मुलायम सिंह यादव और शिवपाल सिंह यादव इसे स्वीकार कर सकेंगे. इसके अलावा ज़मीनी स्तर पर भी इसे स्वीकृति दिलाने के लिए अखिलेश और मायावती को कड़ी मेहनत करनी होगा.
ऐसा है वोटों का समीकरण
वहीं अगर आंकड़ों पर ध्यान दें तो पिछले विधानसभा चुनाव में सपा को 28 प्रतिशत और बहुजन समाजवादी पार्टी को 22 प्रतिशत वोट मिले थे. दोनों को जोड़ ले तो ये 50 प्रतिशत वोट हो जाता है ऐसी स्थिति में बीजेपी के लिए उपचुनाव में सपा के प्रत्याशियों को हराना बेहद मुश्किल हो जाएगा. 2014 के लोकसभा चुनाव में गोरखपुर से बीजेपी को पांच लाख 39 हजार 137 वोट मिले थे. वहीं सपा को दो लाख 26 हजार और 344 वोट और बसपा को एक लाख 76 हजार 412 वोट मिले थे. गोरखपुर के बीजेपी उम्मीदवार योगी आदित्यनाथ को बसपा और सपा के वोट मिलने के बाद भी एक लाख 36 हजार 371 वोट ज्यादा मिले थे. फूलपुर लोकसभा सीट पर 2014 के चुनाव में बीजेपी को 5 लाख 3 हजार और 564 वोट मिले थे. वहीं सपा को 1 लाख 95 हजार 256 और 1 लाख 63 हजार 710 वोट मिले थे. सपा-बसपा के वोट मिलने के बाद भी बीजेपी के केशव मौर्य को 1 लाख 44 हजार 598 वोट ज्यादा मिले थे.
राज्यसभा की एक सीट जीतने के लिए 36.36 वोट चाहिए. समाजवादी पार्टी के पास 47 वोट हैं. यानी जीत से 10.64 वोट ज्यादा. बीएसपी के पास 19 वोट हैं, यानी जीत से 17.36 वोट कम. समाजवादी पार्टी बीएसपी को 10.64 वोट देगी और कांग्रेस को पास 7 हैं. इस तरह बीएसपी राज्यसभा की एक सीट जीत जाएगी. राज्सयभा चुनाव में इस सहयोग के बदल बहुजन समाज पार्टी विधान परिषद के चुनाव में समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार को वोट करेगी.
पिछले सबक
इसके पहले सूबे में हुए लोकसभा चुनाव में बसपा खाता नहीं खोल पाई थी. वहीं विधानसभा चुनावों में उसकी करारी हार हुई थी, जबकि समाजवादी पार्टी की भी दोनों चुनावों में शर्मनाक हार हुई थी. इस नए समीकरण को आने वाले लोकसभा चुनावों में बीजेपी के खिलाफ एक महागठबंधन को तौर पर देखा जा रहा है. गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा सीटें योगी आदित्यनाथ और केशव प्रसाद मौर्य के इस्तीफे के बाद खाली हुई हैं. दोनों नेता लोकसभा से इस्तीफा देकर उत्तर प्रदेश विधानसभा के सदस्य बन चुके हैं.
खरा सौदा?
दोनों के अलग होने के 23 साल बाद अगर सपा-बसपा साथ आते हैं तो सबसे बड़ा सवाल यह कि क्या मायावती और अखिलेश में से कौन किसे अपना लीडर मानेगा. इतना ही नहीं स्टेट गेस्ट हाउस कांड के बाद मायावती का अखिलेश के नेतृत्व को स्वीकार करना आसान नहीं होगा. दूसरी तरफ मायावती को बिहार से राज्यसभा भेजने का ऑफर आरजेडी ने दिया था. पर उन्हें उत्तर प्रदेश छोड़ना उन्हें गवारा नहीं था. ऐसे में उन्होंने अपनी सियासी कद को बचाए रखने के लिए सबसे मुफीद सपा लगी. ऐसे में वो सपा को एक हाथ से दे रही हैं दूसरी हाथ से ले रही हैं. ये भी चर्चा है कि मायावती अपनी जगह भाई आनंद कुमार को भी राज्यसभा भेज सकती हैं.