उत्तराखंड में मेडिकल कॉलेज बना साइकिल की दुकान, जाने क्या है पूरा मामला

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लोग अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देने की बात करते है. जिसके लिए वह अच्छे स्कूल और कॉलेजों में छात्रा व छात्राओं को भर्ती करते है. अगर आपको ये पता चले कि आपका बच्चा पढ़ाई की जगह कम्पनी में काम करने वाले मजदूर बन जाएं या फिर यह कहें कि कलपुर्जे बनाते नजर आएं. आपने ITI, IIT और पॉलिटेक्निक जैसे टेक्निकल एजुकेशन वाले कॉलेजों में छात्रों को मशीनी पुर्जे जोड़ते हुए देखा होगा.


क्या कभी आपने छात्रों को मेडिकल कॉलेज में साइकिल बनते देखा है जी हां गढ़वाल के एकमात्र मेडिकल कॉलेज वीर चंद्र सिंह गढवाली राजकीय मेडिकल कॉलेज की हालत बेहद गंभीर है. यहां पर पढ़ने आएं बच्चे साइकिल बनाकर उसे वितरण करने का काम चलाया जा रहा है. तो आप खुद ही अंदाजा लगा सकते है कि यहां पर पढ़ने वाले बच्चों के हालात कैसे होगें.

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इस मेडिकल कॉलेज की बूरी व्यवस्था के देखते हुए पहले श्रम विभाग की इस योजना के बारे में थोड़ी जानकारी हासिल किया गया है. जिसमें पता चला है कि जिन पहाड़ों में चौपहिया वाहन भी हिचकोले खाते हुए चलते हैं, वहां इन दिनों श्रमिकों, मजदूरों व मनरेगा कार्ड धारकों को साइकिल दी जा रही है. जिसमें पौडी में 500 साइकिलें वितरित की जानी है. जिसके लिए श्रीनगर के मेडिकल कॉलेज में बैस कैंप बनाकर यूपी की लोकल नीलम नाम की कम्पनी साइकिल के पुर्जे जोड़ने का काम कर रही है .

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बता दें कि मेडिकल कॉलेज में 70 प्रतिशत नर्सिंग स्टॉफ की कमी है. वहीं 45 प्रतिशत डाक्टरों की कमी है. नया शैक्षणिक सत्र शुरू हो गया है. और कई एमबीबीएस के छात्र कॉलेज में प्रवेश कर रहे है. जहां पर बच्चों को पढ़ाना चाहिएं, लेकिन वहीं स्टाफ की व्यवस्था कराने के बजाय कॉलेज ने श्रम विभाग की साइकिलों को बनाने के लिए पूरा एक भवन विभाग को दिया है. अब सवाल ये उठता है कि क्या यहीं है मेडिकल बच्चों का भविष्य.