भगवान राम के धनुष का नाम कोदंड था इसीलिए प्रभु श्रीराम को कोदंड कहा जाता था। कोदंड का अर्थ होता है बांस से निर्मित। कोदंड एक चमत्कारिक धनुष था जिसे हर कोई धारण नहीं कर सकता था। कोदंड नाम से भिलाई में एक राम मंदिर भी है जिसे ‘कोदंड रामालयम मंदिर’ कहा जाता है। भगवान श्रीराम ने दंडकारण्य में 10 वर्ष से अधिक समय तक भील, वनवासी और आदिवासियों के बीच रहकर उनकी सेवा की थी।
कोदंड की खासियत के बारे में बात करे तो कोदंड एक ऐसा धनुष था जिसका छोड़ा गया बाण लक्ष्य को भेदकर ही वापस आता था। एक बार की बात है कि देवराज इन्द्र के पुत्र जयंत ने श्रीराम की शक्ति को चुनौती देने के उद्देश्य से अहंकारवश कौवे का रूप धारण किया और सीताजी को पैर में चोंच मारकर लहू बहाकर भागने लगा।
वह मूढ़ मंदबुद्धि जयंत कौवे के रूप में सीताजी के चरणों में चोंच मारकर भाग गया। जब रक्त बह चला तो रघुनाथजी ने जाना और धनुष पर तीर चढ़ाकर संधान किया। अब तो जयंत जान बचाने के लिए भागने लगा।
वह अपना असली रूप धारण कर पिता इन्द्र के पास गया, पर इन्द्र ने भी उसे श्रीराम का विरोधी जानकर अपने पास नहीं रखा। तब उसके हृदय में निराशा से भय उत्पन्न हो गया और वह भयभीत होकर भागता फिरा, लेकिन किसी ने भी उसको शरण नहीं दी क्योंकि रामजी के विद्रोही को कौन सहारा देता ?
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इसके बाद नारदजी ने जब जयंत को व्याकुल और भयभीत देखा तो उन्होंने बताया कि अब तुम्हे प्रभु श्री राम ही बचा सकते है इसलिए उनकी शरण में जाओ। तब देवराज इंद्र पुत्र जयंत ने पुकारकर कहा ” हे शरणागत के हितकारी, मेरी रक्षा कीजिए प्रभु श्री राम।” रामायण का धनुष उन ही की तरह अपने लक्ष्य को भेदकर ही वापस आता था। जिस तरह श्रीराम के मुँह से निकला हर एक वचन सत्य होता था तथा वो अपने सारे वचन पूरे करते थे वैसे ही उनके धनुष से निकला बाण कभी अचूक नहीं जाता।