जानियें, किन पत्रकारों को चुकानी पड़ी थी आवाज उठाने की कीमत?

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जानियें, किन पत्रकारों को चुकानी पड़ी थी आवाज उठाने की कीमत?
जानियें, किन पत्रकारों को चुकानी पड़ी थी आवाज उठाने की कीमत?

मीडिया समाज का आइना होता है, इसमें काम करने वाले को पत्रकार कहते है। पत्रकार का दायित्व होता है कि वो सत्तापक्ष का विरोध करें, क्योंकि कहा यही जाता है कि आप कुशल पत्रकार तब तक नहीं डब तक आपको सरकार के अच्छे कामों में भी खामियां नजर न आए। ऐसे ही पत्रकारों को अपनी जान देकर कीमत चुकानी पड़ती है। सच बोलने औऱ लिखने वाले पत्रकारों को कब मौत के घाट उतार दिया जाए यह किसी को भी पता नहीं होता है, ऐसा ही एक मामला बेंगलुरू से आया है, जहाँ पत्रकार को आवाज उठाने की कीमत चुकानी पड़ी।

क्या है मामला….

आपको बता दें कि वरिष्ठ पत्रकार गौरी लंकेश की उनके घर में ही गोली मारकर हत्या कर दी गई है। गौरी बेंगलुरू की निवासी थी। आपको यह भी बता दें कि लंकेश एक निर्भीक पत्रकार थीं, जो राइट विंग विचारों और उनकी पॉलिसीज की कट्टर विरोधी मानी जाती थीं। इतना ही नहीं लंकेश सत्ता की खामियों पर सवाल उठाने में जरा भी नहीं हिचकती थीं, शायद यही वजह है कि मंगलवार देर शाम गोली मारकर उनकी आवाज को हमेशा के लिए बंद कर दिया गया। हालांकि यह कोई पहला मामला नहीं है, जब पत्रकार को आवाज उठाने की कीमत चुकानी पड़ी थी। पिछले कुछ सालों मे इस तरह के कई मामलें सामने आये है, जब पत्रकार को आवाज उठाने की कीमत चुकानी पड़ी।

इन पत्रकारों को चुकानी पड़ी थी कीमत….
1. डेरा मामला 2002 में सामने आने के बाद पत्रकार रामचंद्र छत्रपति ने डेरा प्रमुख के खिलाफ आवाज बुलंद की थी, डेरे के खिलाफ आवाज उठाने की वजह से इनकी हत्या कर दी गई थी।
2. 11 जून 2011 को मुंबई के एक क्राइम रिपोर्टर ज्योतिर्मय डे की हत्या कर दी गई थी।
3. 1 मार्च 2012 को मध्यप्रदेश के रीवा में स्थानीय स्कूल में हो रही धांधली की कवरेज करने पहुंचे रिपोर्टर राजेश मिश्रा की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी।
4. 20 अगस्त 2013 को पत्रकार और लेखक नरेंद्र दाभोलकर की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी।
5. 6 दिसंबर 2013 को छत्तीसगढ़ के बस्तर में कार्यरत पत्रकार बी साईं रेड्डी की नक्सलियों ने हत्या कर दी थी।
6. नेटवर्क 18 के पत्रकार राजेश वर्मा की साल 2013 में मुजफ्फरनगर दंगों के दौरान गोली लगने से मौत हो गई थी।

इन पत्रकारों के अलावा भी कई ऐसे पत्रकार है, जिन्हें सच को उजागर करने की कीमत चुकानी पड़ी थी। इस तरह के मामलें सरकार पर बड़ा सवाल खड़ा करती है।