पढिये…युवराज का ‘टेंपल रन’ तो ठीक है, पर राम नाम से इनकार क्यों?

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पढिये...‘जो मंदिर से करे प्यार, वो राम से कैसे करे इनकार’

गाना बड़ा ही प्रचलित है, ‘पब्लिक है ये सब जानती है, पब्लिक है..।’ फिर भी बताना जरूरी है कि देश में गुजरात चुनाव के साथ नई बयार चली है…मंदिर वाली। एक तरफ जहां भाजपाई नेता मंदिर जाने और मंदिर मुद्दे पर बातचीत को अपना बपौती अधिकार मानती है, वहीं दूसरी तरफ 2014 आम चुनाव में हार के बाद ताथाकथित रूप से हिंदू विरोधी पार्टी कांग्रेस को जब पता चला कि उसके हार का एक बड़ा कारण हिंदू विरोधी छवि है तो युवराज जनेऊधारी शिवभक्त हो गए। आगे…

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कुआं और खाई के बीच कांग्रेस

गुजरात चुनाव में राहुल गांधी ने जिस राह पे चलना शुरू किया है वो बेहद ही साहसिक है पर उतना ही खतरनाक भी है लेकिन निश्चित तौर पे यह प्रयोग कांग्रेस के लिए जरूरी भी था। इस प्रयोग के बीच कांग्रेस के लिए आगे पीछे कुआं और खाई जैसी स्थिति तो है लेकिन कांग्रेस देश की राजनीति में एक ऐसे मुकाम पर है जिसके लिए ऐसा करना बेहद जरूरी था।

एक तरफ चुनावी मौसम में मंदिरों की परिक्रमा उनके फर्जी भक्त की छवि भी बना सकती है क्योंकि भगवान राम और राममंदिर पर अबतक ना तो कांग्रेस और ना ही राहुल ने अपना पक्ष स्पष्ट किया है। इसलिए मंदिर समर्थक गुजराती जनता को मोदी छोड़ दूसरा मंदिर छाप नेता शायद ही स्वीकार हो। दूसरी तरफ जैसा कि कहा जा रहा है कि निकाय और पंचायती चुनाव में गुजरात में भाजपा के टिकट पर बहुत से मुस्लिम नेताओं ने चुनाव ना केवल लड़ा बल्कि जीता भी। ऐसे में मंदिर-मंदिर घूम रहे राहुल के कारण मुस्लिम वोटर भी अपना पाला बदल सकते हैं। यही नहीं राहुल के इस तथाकथित दिखावटी रूप का देश के परंपरागत मुस्लिम वोटर पर भी असर हो सकता है।

अब चाहे जो भी हो नि: संकोच गुजरात इसके लिए सबसे सही राज्य भी है, क्योंकि गुजरात में कांग्रेस के लिए खोने को ज्यादा कुछ नहीं है पर पाने के लिए विधानसभा चुनाव से लेकर 2019 के आम चुनाव में सफलता और उससे भी जरूरी राहुल गांधी की जनता के बीच स्वीकारिता है।

भगवान राम पर बोलती बंद

आपको बता दें कि 1989 में राहुल गांधी के दिवंगत पिता और भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की सरकार ने ही बाबरी मस्जिद के निकट शिलान्यास की इजाजत दी। लेकिन आज हालात ये है कि गुजरात चुनाव में नैया पार लगाने के लिए मंदिर की चौखट पर माथा पटक रहे राहुल राम नाम लेने से भी कतरा रहे हैं। ताजा मामले में कल 5 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट में कांग्रेसी नेता कपिल सिब्बल और सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील ने बहस के दौरान ये क्या कह दिया कि 2019 चुनाव तक राम मंदिर की सुनवाई टाल दी जाए कि चारो तरफ से भाजपा के प्रवक्ता और नेता राहुल और कांग्रेस से राम मंदिर पर स्पष्टीकरण मांगने लगे। यहां तक कि भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने कल मंगरवार 5 दिसंबर, को प्रेस कॉन्फ्रेस कर राहुल और कांग्रेस को राम मंदिर पर अपना पक्ष स्पष्ट करने को कहा। लेकिन राहुल गांधी हैं कि अब तक इस मुद्दे पर चुप बैठे हैं।

राम पर चुप्पी कांग्रेस की मजबूरी

देश में हिंदू-मुस्लिम के बीच धार्मिक लड़ाई राम मंदिर पर सबसे ज्यादा हुई है। भाजपा के लिए तो ये मुद्दा संजीवनी बूटी का काम करती है। जब-जब भाजपा की नैया मझदार में अटकती है तब-तब राम नाम के सहारे भाजपा उसे पार लगा लेती है। वहीं कांग्रेस के लिए ये मुद्दा गले का फांस बन गई है। कांग्रेस राम नाम लेती है तो उसके परंपरागत मुस्लिम वोटर के खिसक जाने का खतरा रहता है और नहीं लेती है तो उसे हिंदू विरोधी कहा जाता है। हालांकि अच्छे वक्त में तो ये मुद्दा कांग्रेस को नुकसान नहीं पहुंचा सकता है लेकिन बुरे वक्त में ये मुद्दा उसके गले की फांस बन जाती है। हालात ये है कि पूरे देश में राज्य स्तर की पार्टियों ने कांग्रेस से मुस्लिम वोटर छीन लिए हैं और हिंदूओं के हृदय में फिलहाल मोदी बसे हुए हैं। ऐसे में राम पर चुप्पी कांग्रेस की मजबूरी बन गई है। लेकिन इसका तोड़ कांग्रेस ने राहुल को शिवभक्त बनाकर निकाला है। लेकिन राम और शिव तो दोनों एक दूसरे के उपासक माने जाते हैं ऐसे में राहुल का राम नाम से तौबा करना क्या सही साबित होगा… समुद्र किनारे जब भगवान राम शिवलिंग की स्थापना करते हैं तो वो कहते हैं, शिवद्रोही मम दास कहावा! सो नर मोही सपनेहुं नहीं भावा!