ब्रिटेन के मशहूर भौतिक विज्ञानी प्रोफेसर स्टीफन हॉकिंग का बुधवार 14 मार्च को 76 वर्ष की आयु में निधन हो गया है. 1974 में ब्लैक हॉल्स पर असाधारण रिसर्च करके स्टीफन हॉकिन्स साइंस की दुनिया के बड़े वैज्ञानिकों में शुमार हो गए थे. वो अपनी शारीरिक अक्षमता के बावजूद आज विश्व के सबसे बड़े वैज्ञानिक थे. हॉकिंग के बिग बैंग सिद्धांत और ब्लैक होल थ्योरी के कारण उन्हें अमेरिका के सबसे उच्च नागरिक सम्मान से नवाज़ा जा चुका है.
उन्हें एमयोट्रॉफिक लैटरल सेलेरोसिस (amyotrophic lateral sclerosis) नाम की बीमारी थी. इस बीमारी में मनुष्य का नर्वस सिस्टम धीरे-धीरे खत्म हो जाता है और शरीर के मूवमेंट करने और कम्यूनिकेशन पावर समाप्त हो जाती है. स्टीफन हॉकिंग के दिमाग को छोड़कर उनके शरीर का कोई भी भाग काम नहीं करता था. 1963 में जब वह 21 साल के थे, तभी उन्हें यह बीमारी ने अपना शिकार बना लिया था. हॉकिंग का जन्म इंग्लैंड के ऑक्सफोर्ड में आठ जनवरी 1942 में हुआ था.
उनके बच्चों लूसी, रॉबर्ट और टिम ने आधिकारिक बयान जारी करके कहा, “हम पिता के जाने से बेहद दुखी हैं. वह महान वैज्ञानिक थे और असाधारण इंसान थे, जिनका काम और विरासत आने वाले सालों में भी जाना जाएगा.”
ब्लैक होल और दूसरी थ्योरीज़
ब्लैक होल और बिग बैंग जैसी खगोलीय घटनाओं पर उनके शोध ने दुनिया को समझने में अन्य वैज्ञानिकों को भी मदद की. उनका मानना था कि ईश्वर ने ब्रह्मांड की रचना नहीं की. ‘दी ग्रैंड डिजाइन’ नाम की किताब में उन्होंने लिखा था कि ब्रह्मांड की रचना अपने आप हुई. ‘ए ब्रीफ हिस्ट्री ऑफ टाइम’ किताब ने उन्हें दुनियाभर में लोकप्रियता दिलाई थी. हॉकिंग ब्रह्मांड की रचना को एक स्वतः स्फूर्त घटना मानते थे. उन्होंने कहा था कि ब्रह्मांड में गुरुत्वाकर्षण जैसी शक्ति की वजह से नई रचनाएं हो सकती हैं. इसके लिए ईश्वर जैसी किसी शक्ति की सहायता की ज़रूरत नहीं है.
हालांकि, प्रसिद्ध वैज्ञानिक आइजैक न्यूटन मानते थे कि इस सृष्टि का अवश्य ही कोई रचियता होगा, अन्यथा इतनी जटिल रचना पैदा नहीं हो सकती. स्टीफन हॉकिन्स की महत्वपूर्ण किताबों में ए ब्रीफ हिस्ट्री ऑफ टाइम, द ग्रांड डिजाइन, यूनिवर्स इन नटशेल, द थ्योरी ऑफ एवरीथिंग शामिल है. हॉकिंग ने एक रिसर्च के आधार पर तर्क दिया था कि हमारा सौरमंडल अनूठा नहीं है, बल्कि कई सूरज हैं जिनके चारों ओर ग्रह चक्कर काटते हैं वैसे ही जैसे पृथ्वी सूर्य का चक्कर काटती है.
बीमारी ने दिया नया रास्ता
अपनी सफलता का राज़ बताते हुए उन्होंने एक बार कहा था कि उनकी बीमारी ने उन्हें वैज्ञानिक बनाने में सबसे बड़ी भूमिका अदा की है. बीमारी से पहले वे अपनी पढ़ाई पर ज्यादा ध्यान नहीं देते थे लेकिन बीमारी के दौरान उन्हें लगने लगा कि वे लंबे समय तक ज़िंदा नहीं रहेंगे तो उन्होंने अपना सारा ध्याना रिसर्च पर लगा दिया. स्कूल में उनका पढ़ाई में खासा मन नहीं लगता था. सेंट एल्बन स्कूल में हॉकिंग का ज्यादातर वक्त बोर्ड गेम्स और कंप्यूटर्स के साथ बीता. लेकिन फिर भी उन्होंने आगे चलकर प्रख्यात ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में दाखिला पाया, जहां से उनके पिता ने भी पढ़ाई की थी. हॉकिंग, 17 साल की उम्र में यहां के छात्र बने थे. हालांकि, शुरुआत में उनका मन गणित या औषधि क्षेत्र में पढ़ाई करने का था. मगर बाद में उन्होंने भौतिक विज्ञान की राह चुनी.
हमेशा ऊर्जा से भरपूर
उन्होंने एक बार कहा था, पिछले 49 सालों से मैं मरने का अनुमान लगा रहा हूं. मैं मौत से डरता नहीं हूं. मुझे मरने की कोई जल्दी नहीं है. उससे पहले मुझे बहुत सारे काम करने हैं. स्टीफन का कहना था, ‘काम आपको जीने का एक मकसद देता है. बिना काम के जिंदगी खाली लगने लगती है. तीसरी बात यह कि अगर आप खुशकिस्मत हुए और जिंदगी में आपको आपका प्यार मिल गया तो कभी भी इसे अपनी जिंदगी से बाहर मत फेंकना’ बच्चों को स्टीफन ने टिप्स देते हुए एक बार कहा था, पहली बात तो यह है कि हमेशा सितारों की ओर देखो न कि अपने पैरों की ओर. दूसरी बात कि कभी भी काम करना नहीं छोड़ो.