देखिए, भारत और चीन के विवाद में रूस ने दिया किसका साथ?

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डोकलाम पर आंखें दिखाना वाले चीन के कदम पीछे हटाने के कई कारण हैं। पहली बात तो ये कि इस बार भारत उससे किसी भी तरह से दबने को तैयार नहीं था, वहीं भारतीय प्रधानमंत्री के विदेशनीति के कारण भी भारत को बाहरी समर्थन मिलता रहा और सबसे बड़ी वजह रही भूटान का खुलकर चीन का विरोध करना और भारत के साथ खड़ा रहना। इन सबके साथ ही रूस ने इस विवाद को सुलझाने में अहम भूमिका निभाई। देखिए, किस तरह भारत के साथ खड़ा हुआ रूस और क्यों?

चीन के शियामेन में होने जा रही ब्रिक्स देशों की बैठक के मद्देनजर चीन पर डोकलाम विवाद पर नरम रवैया अख्तियार करने का तगड़ा दबाव बना। एक ओर, भारत ने राजनयिक स्तर की वार्ता जारी रखी। दूसरी ओर, अन्य देशों के राजनयिक चैनल भी खोले। आसियान, शंघाई सहयोग संगठन और सार्क सदस्य देशों की ओर से चीन पर दबाव बना। रूस की भूमिका काफी अहम रही, जिसको अपनी ओबीओआर परियोजना में शामिल करने के लिए चीन हर संभव कोशिश कर रहा है। सिक्किम सेक्टर में चीनी अतिक्रमण को लेकर भारत ने रूस के साथ छह महीने पहले से ही राजनयिक स्तर पर बातचीत शुरू कर दी थी। डोकलाम विवाद शुरू होने के बाद विदेश मंत्रालय के पूर्वी एशियाई देशों के डेस्क ने अपनी राजनयिक गतिविधियां बढ़ा दीं। ब्रिक्स तैयारियों के मद्देनजर भारत और रूस के राजनयिकों की धड़ाधड़ बैठकें दिल्ली और मास्को में हुई हैं। घरेलू मोर्चे पर भी चीन डोकलाम विवाद को लेकर फंस गया था। चीन की सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी के अंदरूनी चुनाव के मद्देनजर राष्ट्रपति शी जिनपिंग पार्टी के उस धड़े के दबाव में माने जा रहे थे, जो सैन्य हस्तक्षेप की वकालत कर रहा था। लेकिन डोकलाम में भूटान के खुलकर सामने आने के बाद अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत को समर्थन मिलने लगा और चीन पीछे हटने के रास्ते की तलाश में जुट गया। बीते हफ्ते एशिया-प्रशांत क्षेत्र में चीन के खिलाफ भारत के साथ अमेरिका, जापान, दक्षिण कोरिया और आस्ट्रेलिया के ध्रुवीकरण के बाद रूस दबाव में आया कि वह सीधे हस्तक्षेप करे। विदेश मंत्रालय के अधिकारियों के मुताबिक भारतीय विदेश सचिव एस. जयशंकर और सहायक सचिवों की टीम पांच देशों के अपने समकक्षों के साथ वार्ता में जुटी रही।

ब्रिक्स सम्मेलन के बाद भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की म्यांमा यात्रा को लेकर विदेश मंत्रालय की स्वीकृति से रूस और चीन दबाव में आए। म्यांमा में हाल में ऐसी विचारधारा वाले लोगों की संख्या बढ़ी है, जो चीन पर निर्भरता के सख्त खिलाफ हैं। भारत के इस पड़ोसी देश के पास गैस का बहुत बड़ा भंडार है, लेकिन अभी तक उसका दोहन चीन करता रहा है। म्यांमा इस गैस भंडार के दोहन में भारतीय कंपनियों को काम देने पर विचार कर रहा है। म्यांमा की यात्रा आसियान बैठक के मद्देनजर हो रही है। लेकिन इसमें भारत अपनी लुक ईस्ट नीति पर आगे बढ़ेगा। पहले ही म्यांमा ने पूर्वोत्तर के आतंकियों का सफाया करने से लेकर सड़क व रेल नेटवर्क बनाने के भारतीय प्रस्ताव का खुलकर समर्थन किया है। म्यामां ने मेकांग-भारत इकॉनोमिक कॉरीडोर प्रस्ताव में भी शामिल होने की इच्छा जताई है।