महाभारत के हर एक पात्र का किस्सा काफी अनूठा है। महाभारत से जोड़े कई ऐसे किस्से कहानिया है जिससे काफी लोग न तो अवगत होंगे और न कभी सोचा होगा। आपको महाभारत के एक ऐसे ही पात्र के बारे में बताते है, संजय महाभारत के अहम पात्रो में से एक है। संजय महर्षि व्यास के शिष्य तथा धृतराष्ट्र की राजसभा के सम्मानित सदस्य थे। ये विद्वान गावाल्गण नामक सूत के पुत्र और जाति से बुनकर थे। संजय धृतराष्ट्र के मन्त्री तथा श्रीकृष्ण के परम भक्त थे। संजय श्रीकृष्ण के परम भक्त थे। धृतराष्ट्र और उनके पुत्रों को अधर्म से रोकने के लिये कड़े-से-कड़े वचन कहने में भी संजय हिचकते नहीं थे। वे राजा को समय-समय पर सलाह देते थे।
महाभारत का युद्ध शुरू होने से पहले त्रिकालदर्शी भगवान व्यास ने धृतराष्ट्र के पास जाकर युद्ध का अवश्यम्भावी होना बतलाते हुए यह कहा कि- “यदि तुम युद्ध देखना चाहो तो मैं तुम्हें दिव्य दृष्टि देता हूँ।” लेकिन धृतराष्ट्र ने आपने कुल का नाश न देखने जैसी इच्छा से इंकार कर दिया, पर श्रीवेदव्यास जी जानते थे कि अगर धृतराष्ट्र को युद्ध से जोड़ी बाते नहीं पता चलेगी तो वो व्याकुल हो जाएगा। अत: वे संयज को दिव्य दृष्टि देकर कहने लगे कि- “युद्ध की सब घटनाएं संजय को मालूम होती रहेंगी, वह प्रत्यक्ष-परोक्ष या दिन-रात में जहाँ कोई घटना होगी, यहाँ तक कि मन में चिन्तन की हुई सारी बातें संजय जान सकेगा
इसके बाद जब कौरवों के प्रथम सेनापति भीष्म पितामह दस दिनों तक घमासान युद्ध करके एक लाख महारथियों को अपार सेनासहित वध करने के उपरान्त शिखंडी के द्वारा आहत होकर शरशैय्या पर पड़ गये, तब संजय ने आकर यह समाचार धृतराष्ट्र को सुनाया। तब भीष्म के लिये शोक करते हुए धृतराष्ट्र ने संजय सं युद्ध का सारा हाल पूछा।
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संजय ने पहले दोनों ओर की सेनाओं का वर्णन करके फिर ‘गीता’ सुनाना आरम्भ किया। भगवान व्यास द्वारा संजय को दिव्य दृष्टि मिली और वो युद्ध में हो रही एक एक घटना के बारे में धृतराष्ट्र को बताते रहे ताकि युद्ध से जोड़ी हर एक बात युद्ध स्थल में मौजूद न होकर भी धृतराष्ट्र को पता चलती रहे।