एक बड़ी खबर आ रही है कि सुप्रीम कोर्ट ने AGR केस में सुनवाई करते हुए सरकार और टेलिकॉम कंपनियों को फटकार लगाते हुए पूछा कि कोई अफसर हमारा आदेश कैसे रोक सकता है?
अब पूरे मुद्दे को विस्तार से समझते हैं:-
राष्ट्रीय दूरसंचार नीति, 1994 के तहत जिस कंपनी को लाईसंस दिया जाता था. उस कंपनी को लाईसंस फीस के रूप में एक निश्चित रकम सरकार को देनी होती थी. सरकार ने कंपनियों को रियायत देते हुए 1999 में एक नया विकल्प दिया. जिसे साधारण शब्दों में समझे तो कंपनी को जो कमाई होती थी, उसका कुछ प्रतिशत लाईसंस के तौर पर सरकार को देना पड़ता था. इससे कंपनी जो निश्चित रकम देती थी उससे छुटकारा मिल गया.
Adjusted Gross Revenue (AGR) कंपनियों का कुल Revenue या राजस्व होता है जिस का कुछ प्रतिशत शेयर करने के लिए सरकार और टेलिकॅाम कंपनियां सहमत हुई थी. इसके अंतर्गत टेलीकॉम कंपनियों को सालाना अपने AGR का कुछ प्रतिशत स्पेक्ट्रम यूजेज चार्ज और लाइसेंसिंग फीस के रूप में सरकार को देना पड़ता था. स्पेक्ट्रम यूजेज चार्ज AGR का 3-5 फीसदी तथा लाइसेंसिंग फीस AGR का 8 फीसदी होता है.
दूरसंचार विभाग और टेलीकॉम कंपनियों के बीच विवाद का जो मुख्य कारण है वो AGR की परिभाषा है.
दूरसंचार विभाग का तर्क है कि AGR की गणना टेलीकॉम कंपनी को होने वाले संपूर्ण कमाई के आधार पर होनी चाहिए, जिसमें डिपॉजिट पर ब्याज और संपत्ति की बिक्री जैसे गैर टेलीकॉम स्रोत भी शामिल हों.
दूसरी तरफ, टेलीकॉम कंपनियों का तर्क है कि AGR की गणना सिर्फ टेलीकॉम सेवाओं से होने वाली आय के आधार पर होनी चाहिए.
क्योंकि जितना ज्यादा AGR होगा कंपनी द्वारा सरकार को उतना ज्यादा पैसा देना पड़ेगा. इसलिए टेलीकॉम कंपनियों चाहती हैं कि AGR कम दिखाया जाए.
2005 में Cellular Operators Association of India (COAI) ने सरकार की इस परिभाषा पर सवाल उठाया.
इसके बाद यह केस 2015 में TDSAT में पहुंचा. चलो पहले जान लेते हैं ये TDSAT क्या है ?
TRAI Act 1997 में संसोधन कर सन् 2000 में Telecom Disputes Settlement and Appellate Tribunal की स्थापना की गई. इसकी स्थापना telecom sector के service providers and consumers के हितों की अपील पर सुनवाई और उनके हितों की रक्षा के लिए की गई थी. TDSAT में एक चैयरमैन तथा 2 मेंबर होते है. इसके मेंबर केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त किए जाते हैं. इसका चैयरमैन सुप्रीम कोर्ट का न्यायधीश या हाई कोर्ट का मुख्यन्यायधीस रहा हो. TDSAT ने इस केस में फैसला सुनाते हुए कुछ non-core revenue को AGR से बाहर रखते हुए दूरसंचार विभाग की मांग पर रोक लगा दी.
इसके बाद दूरसंचार विभाग ने TDSAT के फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की. इसके बाद जस्टीस अरूण मिश्रा की बैंच ने इस केस में सरकार के पक्ष में फैसला सुनाते हुए कहा कि AGR की परिभाषा स्पष्ट रूप से Agreement में लिखी हुई है. टेलिकॉम कंपनियों को जल्दी पूरा बकाया जमा कराने का आदेश दिया किया.
यहाँ से इस मुद्दे ने एक अलग ही मोड़ ले लिया-
टेलीकॉम कंपनियों ने बकाया चुकाने के लिए मोहलत मांगी थी. उसकी अंतिम तिथि 23 जनवरी को जा चुकी थी. बकाया चुकाने के लिए टेलिकॉम कंपनियों ने अधिक वक्त मांगा था, जिसे विभाग के एक अधिकारी ने पत्र जारी कर बकाया का भुगतान न करने वाली कंपनी पर कोई भी दंड़ात्मक कारवाई ना करने का आदेश जारी कर दिया.
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इस बात पर सख्त रूख दिखाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि किसी अधिकारी को ये हक किसने दिया? की उसने कोर्ट के फैसले को ना मानते हुए टेलिकॉम कंपनियों को अधिक वक्त दिया.सरकार कर क्या रही है? अगर ऐसा है तो सुप्रीम कोर्ट के होने ना होने का क्या फायदा ?अगर मनमानी करनी है तो फिर क्या हम सुप्रीम कोर्ट बंद ही कर दें ?
इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने अदालत की अवमानना करने के लिए एयरटेल, वोडाफोन समेत अन्य कंपनियों के मैनेजिंग डायरेक्टर, सीएमडी को नोटिस जारी किया तथा इसके अलावा कंपनियों, टेलिकॉम विभाग के अधिकारियों को 17 मार्च को समन किया है. केस की अगली सुनवाई 17 मार्च को होगी.
हमें उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट के इस सख्त रवैये के बाद सरकार और प्रशासन की नींद खुलेगी और इस मुद्दे पर गंभीरता से Action लिया जाएगा.