आरटीआई कानून के उल्लंघन पर बड़ी कार्यवाही, राज्य सूचना आयुक्त ने जारी गिरफ्तारी वारंट

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आरटीआई कानून के उल्लंघन पर बड़ी कार्यवाही, राज्य सूचना आयुक्त ने जारी गिरफ्तारी वारंट

प्रदेश में इतिहास में इस तरह का पहला मामला

सीएमएचओ को गिरफ्तार कर पेश करने के आदेश, स्वास्थ्य आयुक्त को भी नोटिस जारी

भोपाल। आरटीआई कानून का उल्लंघन और आयोग के आदेश की अव्हेलना करने पर राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने बुरहानपुर के तत्कालीन सीएमएचओ डॉ. विक्रम सिंह के खिलाफ गिरफ्तार वारंट जारी किया है। 5 हजार रुपए का जमानती गिरफ्तारी वारंट जारी करते हुए इंदौर डीआईजी को वारंट तामीली के आदेश दिए हैं। साथ ही स्वास्थ्य आयुक्त आकाश त्रिपाठी को नोटिस जारी किया है। यही नहीं स्वास्थ्य आयुक्त को व्यक्तिगत सुनवाई के लिए समन भी जारी किया है। प्रदेश के इतिहास में यह पहला मामला है जब सूचना आयुक्त ने गिरफ्तारी वारंट जारी किया है।

गिरफ्तार कर 11 अक्टूबर को पेश करने के निर्देश –
आयोग के वारंट की तामील करा कर दोषी अधिकारी डॉ. सिंह को गिरफ्तार कर आयोग के समक्ष 11 अक्टूबर को दोपहर 12 बजे हाजिर करें। आयोग ने इस वारंट में कहा है कि अगर डॉ. विक्रम सिंह 5 हजार की जमानत देकर अपने आप को आयोग के समक्ष 11 अक्टूबर की पेशी में हाजिर होने कर लिए तैयार है तो उनसे जमानत की राशि 5 हजार रुपए लेकर उन्हें आयोग के समक्ष हाजिर होने के लिए रिहा कर दिया जाए।

यह है मामला –
दिनेश सदाशिव सोनवाने ने आरटीआई आवेदन 10 अगस्त 2017 को सीएमएचओ बुरहानपुर डॉ. सिंह के समक्ष लगाया था। जिसमें बुरहानपुर जिले के स्वास्थ्य विभाग में वाहन चालकों की नियुक्ति और पदस्थापना संबंधित जानकारी मांगी थी, लेकिन डॉ. सिंह ने कोई भी जवाब 30 दिन में नहीं दिया। इसके बाद आवेदक ने प्रथम अपील दायर की तो प्रथम अपीलीय अधिकारी संयुक्त संचालक स्वास्थ्य इंदौर ने 7 अक्टूबर 2017 को जानकारी देने के आदेश जारी कर दिए।

लगातार समन, फिर भी उपस्थित नहीं हुए –
आयोग ने डॉ. विक्रम सिंह को आयोग के समक्ष अपना जवाब पेश करने के लिए 18 अक्टूबर 2019 से 10 फरवरी 2020 तक लगातार 5 समन जारी किए गए। फिर भी वे हाजिर नहीं हुए। आयोग ने इन समन में डॉ. सिंह की उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए स्वास्थ्य संचालनालय के कमिश्नर को भी निर्देश दिए लेकिन स्वास्थ्य विभाग लापरवाह रहा। आयोग ने 16 दिसंबर 2020 को इस प्रकरण में 25 हजार रुपए का जुर्माना डॉ. सिंह के ऊपर लगा दिया। साथ ही आयुक्त स्वास्थ संचनालय को 1 महीने में पैनल्टी की राशि जमा ना होने पर डॉ. सिंह के वेतन से काटकर आयोग में जमा करने के निर्देश दिए। लेकिन न तो राशि जमा हुई और न ही वे आयोग के समक्ष हाजिर हुए।

आयुक्त की तल्ख टिप्पणी –
राज्य सूचना आयुक्त सिंह ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि दोनों अधिकारियों का व्यवहार संसद द्वारा स्थापित पारदर्शी और जवाबदेह सुशासन सुनिश्चित करने वाले आरटीआई कानून का मखौल उड़ाने वाला है। दोनों अधिकारियों की कार्रवाई को आयोग के अपीलीय प्रक्रिया में बाधा पहुंचाने वाला बताया है। राज्य सूचना आयुक्त ने अपने आदेश में कहा कि आयोग इस तरह के आरटीआई एक्ट के लगातार खुलेआम उल्लंघन को मूकदर्शक बनकर नहीं देख सकता है। अगर इस तरह के उल्लंघन को मान्य कर दिया जाए तो आरटीआई कानून मजाक बनकर रह जाएगा।

क्या है नियम –
राज्य सूचना आयुक्त सिंह के मुताबिक आरटीआई एक्ट की धारा 7 (1) के तहत अगर 30 दिन के अंदर जानकारी नहीं मिलती है तो धारा 20 के तहत 250 रुपए प्रतिदिन के हिसाब से अधिकतम 25 हजार रुपए तक का जुर्माना लगाया जाता है। दोषी अधिकारी को 1 महीने का समय जुर्माने की राशि आयोग में जमा करने के लिए दिया जाता है। इसके बाद मध्यप्रदेश फीस अपील नियम 2005 में नियम 8 (6) (3) के तहत आयोग दोषी अधिकारी के कंट्रोलिंग अधिकारी को जुर्माने की राशि को वसूलने और साथ में दोषी अधिकारी के विरुद्ध अनुशासनिक कार्रवाई के लिए रिपोर्ट करता है। नियम के अनुसार आयोग का आदेश संबंधित कंट्रोलिंग अधिकारी पर बंधनकारी होता है। सिंह ने बताया कि नियम के मुताबिक आयोग जुर्माने की राशि को वसूलने के लिए सिविल कोर्ट की शक्तियों का उपयोग करता है।

30 दिन में जानकारी देना अनिवार्य –
आरटीआई कानून के तहत आवेदन करने के 30 दिन के अंदर आवेदक को जानकारी देना अनिवार्य है। यदि जानकारी देने योग्य नहीं है तो आवेदक को इसका ठोस कारण भी बताया जाए। यदि आवेदक इससे संतुष्ट नहीं होता है तो वह प्रथम अपील कर सकता है। इस मामले में मांगी गई जानकारी तीन साल तक नहीं दी गई।



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