‘कन्नौज जाकर देखिए, जैसा सोचते हैं वैसे बिलकुल भी नहीं है राजा जयचंद’ | Need to know truth about Raja Jaychand and Samrat Prathviraj | Patrika News

242

‘कन्नौज जाकर देखिए, जैसा सोचते हैं वैसे बिलकुल भी नहीं है राजा जयचंद’ | Need to know truth about Raja Jaychand and Samrat Prathviraj | Patrika News

सवाल- जयचंद को विभीषण की तरह गद्दार के तौर पर देखा जाता है। आप जब इस किरदार को जी रहे थे तो क्या सोचा?
आशुतोष – जयचंद के बारे में तो पृथ्वीराज रासो में भी लिखा हुआ है, पृथ्वीराज रासो में चंदबरदाई ये कहते हैं कि ब्रह्मांड में नक्षत्रों में जैसे सूर्य का स्थान है वैसे ही राजाओं में जयचंद का स्थान है। जयचंद उन राजाओं में से थे जिन्हें विद्या वाचसपति की उपाधि प्राप्त थी। जयचंद उन राजाओं में से थे जिन्होंने राजसूय यज्ञ किया हुआ था। कन्नौज के किले में जाइये तो आपको जयचंद की प्रशस्ति में उनके व्यक्तित्व के संबंध में स्वभाव और सरलता के बारे में कई ऐसी तमाम चीजें पढ़ने को मिलेंगी कि आपको लगेगा कि जैसा हम सोचते हैं, जयचंद को लेकर वो तो वैसा है ही नहीं।

सवाल- आपकी वेबसीरीज द ग्रेड इंडियन मर्डर में मालूम चलेगा कि मर्डर किसने किया है?
आशुतोष- द ग्रेट इंडियन मर्डर जिसका निर्देशन तिग्मांशु धूलिया ने किया है। हम लोग जल्द ही इसका दूसरा सीजन बहुत जल्द शूट करने वाले हैं तो निश्चित रूप से पता लगेगा कि किसने किसको क्यों मारा।

सवाल- राम के घर में आशुतोष आते हैं और रावण के किरदार से शुरुआत करते हैं अपनी कला का, आखिर ऐसा क्यों ?
आशुतोष– हमारा जो गाडरवारा नगर है वो बड़ा ही सांस्कृतिक नगर है, बहुत छोटा सा है, लेकिन सांस्कृतिक रूप से बड़ा संपन्न और सक्रिय नगर है। तो हम लोग वैसे ही उन्हीं आयोजनों को देखकर बड़े हुए हैं। जितनी परिश्रकृत, शानदार और अद्भुत रामलीला वहां लिखी और हुई है, वैसा संवाद वैसा प्रस्तुतिकरण मुझे आज तक देखने के लिए नहीं मिला। रावण का जो किरदार है वो इसलिए भी मुझे हमेशा से अच्छा लगता रहा है क्योंकि मुझे सपाट किरदार कभी भी प्रीतिकर नहीं लगे हैं। मुझे हमेशा से ऐसे किरदारों के प्रति रुचि रही है जो हमेशा संतुलन साधकर चलते हों। ऐसा क्या हुआ होगा रावण के अंदर या किरदार के अंदर कि महादेव का परम भक्त होने के बाद और महादेव जिन राम को अपना ईश्वर मानते हों वो उनके प्रति शत्रु भाव से भर जाए। अगर आप देखेंगे तो एक है रावण जो सबकुछ नियंत्रित करना चाहता है और एक हैं राम जो नियंत्रण की शक्ति में विश्वास नहीं करते वो आत्मनिर्भरता की शक्ति में विश्वास करते हैं। रावण जो है वो निर्भर करवाना चाहता है तो मुझे एक ऐसे विलक्षण किरदार के प्रति हमेशा से अभिनेता के तौर पर रुचि रही है।

सवाल- आपकी किताब रामराज्य में क्या इसलिए रावण के प्रति भाव थोड़ा संयमित रहा?
आशुतोष– नहीं…संयमित इसलिए नहीं रहा। मैं इस चीज का अखंड पक्षधर हूं कि परमात्मा के बारे में हम और आपसे ये कहा जाता है कि ईश्वर का सानिध्य अगर कुरुप व्यक्ति को भी मिल जाए तो वो रुपवान बना देते हैं। तो फिर मेरे लिए विचार का प्रश्न ये था कि परम ब्रह्म परमात्मा श्रीराम के संपर्क में आने वाला रावण, तो उसका रूपांतरण भी निश्चित रूप से हुआ होगा। संभवत: उस रूपांतरण की जो प्रतिक्रिया है वो सिर्फ दृष्टि से एक सहज दृष्टि से नहीं समझी जा सकती है। इसलिए दया दृष्टि रावण के प्रति नहीं हुई है। हमने सिर्फ रावण के मर्म को स्पर्श करने की बात की है और मर्म क्योंकि स्पर्श हुआ है इसलिए ये लगता है कि इस तरह का नकारात्मक किरदार इस तरह की सकारात्मक ऊर्जा से कैसे भरा हो सकता है। शूर्पणखा इतिहास में एक ऐसी स्त्री है जो काम के माध्यम से राम तक पहुंची है। जबकि ये कहा जाता है कि अगर हम ईश्वर के समक्ष अपनी वासना को समर्पित कर दें तो हमारी वासना भी उपासना में रुपांतरित हो जाती है।

सवाल- आज जो भौतिकवाद बढ़ा हुआ है..बाजारवाद बढ़ा हुआ है ऐसे में रामराज्य की कल्पना को कैसे देखते हैं?
आशुतोष– हम परमात्मा श्रीराम को तो मानते हैं लेकिन राम की नहीं मानते। हम श्रीकृष्ण को तो मानते हैं लेकिन श्रीकृष्ण की नहीं मानते। हम गीता को तो मानते हैं लेकिन गीता की नहीं मानते। हम पिता को तो मानते हैं लेकिन पिता की नहीं मानते हैं और रामराज्य की जो परिकल्पना है, वो को नहीं की, की बात करती है। की अर्थात कुंजी..कि अगर हम की की मान लें तो कि जितने उनके चरण पूज्यनीय हैं उतने ही उनके आचरण पूज्यनीय और धारणीय हैं तो यदि परमात्मा श्रीराम की जो रामायण है जो उनका चित्र चरित्र चिंतन हमारे हृदय में स्थापित हो जाए तो आप विश्वास कीजिए मेरा पूर्ण विश्वास है इस बात पर कि हम अपने अपने घरों में रामराज्य की स्थापना कर लेंगे। हमारे पूरे जो रामराज्य की बात है उसमें वो बिंदु में सिंधु तलाश रहे हैं वो सिंधु में बिंदुओं की गिनती नहीं कर रहे हैं। तो अगर हम चरण के साथ आचरण को भी धारण कर लें, हम उनके साथ साथ उनकी बात को भी मानें तो वो दिन दूर नहीं है कि हम और आप जिस सुशासन की कल्पना करते हैं वो सुशासन आ जाएगा।

सवाल- आप दार्शनिक और धार्मिक व्यक्तित्व के हैं और दूसरी तरफ फिल्मों में जिस तरह के किरदार निभाते हैं वो एक दूसरे से बिलकुल अलग नजर आते हैं तो इन्हें कैसे बैलेंस करते हैं। आशुतोष– एक बहुत अच्छा शेर है..हर आदमी में होते हैं दस-बीस आदमी..जिसको भी देखिए कई बार देखिए…ये जो बात है वो भगवान श्रीकृष्ण ने भी गीता में कही थी कि उन्होंने महाभारत के दौरान अर्जुन से कहा था कि जो कुछ भी तुम देख रहे हो वो मुझसे ही निकलते हैं और मुझ में ही समा जाते हैं। मुझे लगता है कि अभिनय जो प्रक्रिया है वो बाहर जगत की यात्रा नहीं है वो अंतर जगत की यात्रा है। सारी की सारी संभावनाएं, सारे के सारे किरदार आपके अंदर बीज रूप में मौजूद होते हैं। मैं किसी किरदार को बनाने का प्रयास नहीं करता हूं मेरी कोशिश होती है कि मैं आशुतोष राणा को मैं मिटा दूं और आशुतोष राना अगर मिट गया तो वो किरदार निकलकर आएगा। तो मैं बनाने की प्रक्रिया नहीं करता मैं मिटाने की प्रक्रिया करता हूं। मेरा मानना है कि आप जितने किरदारों को करते जा रहे हैं उतना ही आप अपने आप को जानते जा रहे हैं और जब आप अपने आप को जानने लगते हैं तो आपको पता होता है कि शबनम मौसी का किरदार कहां से आएगा। हम अपने किरदारों को शूटिंग के सैट पर ही रखते हैं और जैसे ही पैकअप होता है तो सैट पर ही छोड़ देते हैं और फिर आशुतोष राना बन जाते हैं।

सवाल- लंबे समय तक एक ही किरदार करते वक्त क्या परिवार के बीच भी वो किरदार कभी निकल कर आता है?
आशुतोष– मैं क्योंकि बड़े छोटे शहर का व्यक्ति हूं और छोटे शहर में हमें बड़ी बड़ी अच्छी सलाह दी जाती हैं। जैसे कभी बाजार को परिवार में मत लेकर जाइए और कभी परिवार को बाजार में मत लाइए, क्योंकि अगर आप परिवार को व्यापार में लेकर आ गए तो परिवार बिगड़ जाएगा और अगर व्यापार को परिवार में लेकर आ गए तो व्यापार बिगड़ जाएगा। तो मैं इन दोनों चीजों को अलग अलग रखने में विश्वास रखता हूं। गृहस्थी का मतलब ही होता है कि जिस घर में घुसते ही आपकी हस्ती समाप्त हो जाए, हस्ती मतलब उपलब्धियों से पैदा होने वाला अहंकार।

सवाल- आप गाडरवारा के रहने वाले हैं और आपके बच्चे मुंबई में पैदा हुए..पढ़ते हैं तो आप उन्हें कैसे गाडरवारा से जोड़कर रखेंगे?
आशुतोष– देखिए आशुतोष राना का जन्म गाडरवारा में हुआ है तो उसकी जड़े कहां हैं गाडरवारा में…आशुतोष के बच्चों का जन्म हुआ है मुंबई में तो उसके बच्चों की जड़े गाडरवारा में नहीं बल्कि मुंबई में ही हैं तो आशुतोष ये अन्यथा प्रयास क्यों करें कि तुम मेरी जड़ों से जुड़ो..तुम्हारी जड़े जहां हैं तुमको अपनी जड़ों से जुड़ा रहना चाहिए। तो मेरा ये मानना है कि जैसे मैं अपनी जड़ों से जुड़कर पुष्पित पल्वित हुआ हूं, मेरी जड़ों से जुड़कर वैसे ही तुम भी पुष्पित पल्वित होगे अपनी जड़ों से जुड़े रहने के कारण। तो हम अपने बच्चों के ऊपर अपनी इच्छाएं नहीं लादते हैं। मैं और रेणुका अपने बच्चों की जरुरतें पूरी करने के लिए मौजूद हैं लेकिन हम उनकी ख्वाहिशें पूरी नहीं करते। जरूरतें भिखारी की भी पूरी हो जाती है, ख्वाहिशें बादशाह की भी पूरी नहीं होती हैं। बच्चे अपनी ख्वाहिशें खुद पैदा करें और उन्हें पूरा करें। अपने बच्चों से यही कहता हूं कि सफल होने से पहले असफल होना सीखो, क्योंकि सफलता जहां उन्माद से भरती है वहीं असफलता व्यक्ति अवसाद से भरती है। इसलिए व्यक्ति असफलता के बाद सफलता हासिल करता है तो उन्माद से नहीं बल्कि उत्साह से भरा होता है। एक बात और अपने सपनों को बच्चों पर न लादें बल्कि उनके सपनों का ध्यान रखें।

ashu3.pngसवाल- आप अपने हर एक दिन को उत्सव की तरह मनाते हैं तो कैसे हर युवा या व्यक्ति अपने हर दिन को उत्सव की तरह मना सकता है?
आशुतोष– हर दिन का एक सत्य होता है तो हर दिन के सत्य को हर दिन के साथ स्वीकार करें। हमारा ये विश्वास है कि हमारी ग्लानियां (गिल्टस) अतीत में होती हैं और चिंताएं भविष्य में होती हैं और आनंद कहां मिलता है जब आप ग्लानी और चिंताओं से मुक्त हो जाते हैं तो वर्तमान में आपको आनंद मिलता है। इसलिए भगवान श्रीकृष्ण ने भी ये कहा है कि इस पल को भरपूर जी लें तो आप अतीत की ग्लानि और भविष्य की चिंताओं से मुक्त हो जाएंगे। जबकि आजकल लोग वर्तमान में जी ही नहीं हो रहे होते हैं वो भविष्य की चिंताओं और अतीत की ग्लानियों से घिरे रहते हैं इसलिए वर्तमान का आनंद ही नहीं ले पाते। मेरा मानना है कि योजनाएं कैलेंडर पर बनाई जाती हैं और हमारा जीवन कैलेंडर नहीं है। हमारा जीवन हर पल के सत्य के साथ चलता है तो हमें उसे पूरी तरह से जीना चाहिए। मेरे यानि मेरे परिवार के लिए ये महत्वपूर्ण नहीं है कि हम कितने बड़े घर में रहते हैं हमारे लिए ये महत्वपूर्ण है कि हम जिस घर में रहते हैं उसमें कितनी खुशी और कितने अच्छे से रहते हैं। पिताजी ने सीख दी थी, व्यापार अलग—अलग करें लेकिन त्यौहार साथ मनाएं क्योंकि जो लोग व्यापार साथ-साथ करते हैं वो त्यौहार अलग अलग मनाते हैं।

सवाल- राजनीति में आने के बारे में क्या कहेंगे?
आशुतोष– भविष्य की योजनाएं नहीं बनाता, कल क्या होगा…मुझे भी नहीं मालूम। वैसे भी हम सभी राजनीति में हैं। लोकतंत्र की सबसे अच्छी बात ये होती है कि जब आपके और हमारे हाथ में मत अधिकार होता है। मत का मतलब होता है एक तो वोट और एक होता है ओपिनियन।

ashu2.png



उमध्यप्रदेश की और खबर देखने के लिए यहाँ क्लिक करे – Madhya Pradesh News