चांदनी चौक का कटरा लेहस्वान, जहां कभी मिलता था तौल का कपड़ा, अब लेडीज सूट के लिए मशहूर है यह मार्केट

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चांदनी चौक का कटरा लेहस्वान, जहां कभी मिलता था तौल का कपड़ा, अब लेडीज सूट के लिए मशहूर है यह मार्केट

चांदनी चौक का कटरा लेहस्वान, जहां कभी मिलता था तौल का कपड़ा, अब लेडीज सूट के लिए मशहूर है यह मार्केट

​कटपीस के कई वैरायटी

कटरा लेहस्वान में कटपीस की कई वैरायटी बिकती थीं। जिनेंद्र कुमार जैन ने बताया कि चिंदी, रैक्स, फैंट, सेकेंड, सब स्टैंडर्ड और फ्रैश कपड़े में कई वैरायटी होती है। कपड़े की कतरन तक बाजार में बिक जाती है। कपड़ा कभी वेस्ट नहीं होता है। कपड़े का छोटा टुकड़ा भी काम आता है। यहां के व्यापारी गला कपड़ा तक बेच देते हैं, जो हुक्के की डंडी में यूज हो जाता है।

चिंदी – 23 सेंटीमीटर से छोटे कपड़े को चिंदी कहते हैं। इसका इस्तेमाल कारखाने में सफाई के लिए होता है। किसी मशीन का तेल पौंछने या रिसने में यूज होता है। डस्टिंग साफ करने में मदद करता है। प्योर कॉटन तेल सोख लेता है। खिलौनों में डलता है। लंबी कतरन से रस्सी भी बन जाती है।
रैक्स – 23 सेंटीमीटर से 90 सेंटीमीटर तक के कपड़े को रैक्स बोलते हैं। इसका इस्तेमाल ब्रा, रूमाल, टोपी, चादर, दरी, डोर मेट्स, खिलौने, जूते, टेंट-शामियाना बनाने में होता है। ये साइट में छोटे होते हैं, तो डिजाइनर कतरने का इस्तेमाल रैक्स से हो जाता है।
फैंट – 90 सेंटीमीटर से 2 मीटर तक के कपड़े कौ फैंट बोलते हैं। इतने बड़े कपड़े में ब्लाउड, छोटे फ्रॉक, बच्चों की शर्ट, खिलौनों के कपड़े आदि बन जाते हैं।
सेकेंड – 2 मीटर से 9 मीटर तक के कपड़े को सेकेंड बोलते हैं। इसका इस्तेमाल चादर, बिछौनी, टेंट जैसे बड़े कपड़ों में हो जाता है।
सब स्टैंडर्ड – 9 मीटर से 18 मीटर तक के कपड़े को सब स्टैंडर्ड कहते हैं। इसका यूज भी कपड़ों के बड़े सामान टेंट, शर्ट, कुर्ते आदि में होता है।
फ्रैश – 18 मीटर से ऊपर का कपड़ा फ्रैश होता है। इसका इस्तेमाल कपड़े, शर्ट, पेंट में होता है।

बाजार में 12 महीने कारोबार

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​यहां 12 महीने कारोबार होता है। भरत जैन ने बताया कि गर्मी और सर्दी में अच्छी बिक्री रहती है। बरसात में थोड़ा काम घट जाता है। यहां हर दुकान पर अलग वैरायटी मिलती है, जो बड़ी खासीयत है। दुकानों पर प्रिंट, जरी, क्रॉपटॉप, नायरा कट, आलिया कट, रेडिमेड सूट मिलते हैं। हिट फिल्मों की हिरोइन द्वारा पहने जाने वाला सूट अधिक बिकता है। यहां किसी तरह बंटी और बबली के सूट जमकर बिके थे।

हेल्थ इमरजेंसी में बड़ी मुश्किल
विनोद जैन ने बताया कि जब से चांदनी चौक की मुख्य सड़क का सौंदर्यीकरण हुआ है। मैन रोड पर सुबह 9 बजे से रात 9 बजे तक मोटर वीइकल के चलने पर पाबंदी लगी है। यही किसी को हेल्थ इमरजेंसी हुई, तो यहां से अस्पताल पहुंचना नामुमकिन जैसा है। टाउन हॉल के पास दिल्ली हिन्दुस्तानी मर्कंटाइल असोसिएशन ने एंबुलेंस की सुविधा सुनिश्चित कर दी है। मगर, छोटी-मोटी परेशानी के लिए एंबुलेंस बुलाना भी ठीक नहीं है। लोडिंग-अनलोडिंग में भी परेशानी होती है। सुबह 9 बजे से पहले और रात 9 बजे के बाद लोडिंग-अनलोडिंग करते हैं, तो रात में रुकना पड़ता है।

​90 प्रतिशत जैन मालिक

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विकास जैन ने बताया कि कटरे में 90 प्रतिशत दुकानदारों के मालिक जैन समुदाय से हैं। बाकी 10 प्रतिशत विक्रेता किरायेदार हैं। दुकानदार अहमदाबाद, मुंबई, सूरत और जयपुर से कपड़ा आता है। कटरे में नेपाल, इंफाल और लद्दाख के व्यापारी भी आते हैं। आज के समय सीजन नहीं देखते है। हर समय जिस सीजन का चाहो, उसका कपड़ा मिल जाता है। यहां ट्रेडर्स और मैन्युफेक्चरर्स भी काम करते हैं।

दो प्रमुख मंदिर
कटरा लहस्वान में दो प्रमुख मंदिर है। चांदनी चौक मैन रोड पर हनुमान मंदिर और मेट्रो के गेट नंबर 5 पर प्रसिद्ध शनि मंदिर है। यहां दोनों की जन्मोत्सव पर बड़े कार्यक्रम होते हैं। होली मंगल मिलन, भंडारा, राम नवमी और महावीर जयंती पर भंडारे होते हैं। अब रेडीमेड भंडारे का चलन बढ़ा है। यहां हलवाई के जरिए भोजन बनाना मुश्किल हो गया है। मिनी कोल्डड्रिंक और खाने का बॉक्स भंडारे में बांटते हैं।

​यहां कटरा लेहस्वान में मिलता था तौल का कपड़ा

​यहां कटरा लेहस्वान में मिलता था तौल का कपड़ा

1930 से पहले कटरा लेहस्वान में रिहाय़श था। बाद में ऊपर रिहायश और नीचे दुकानें बनीं। 1940 तक आते-आते दुकानों की संख्या बढ़ने लगी। आजादी के पहले से ही कटरे में कारोबार होने लगा। पहले यहां तौल का कपड़ा मिलता था। इसे कटपीस भी कहते हैं। हिन्दुस्तान की तमाम बड़ी मिल का माल कटरे में आता था। आर्थिक तौर पर कमजोर वर्ग के लोगों के कपड़े कटपीस से तैयार होते थे। रैक्स और फेंट जैसे कपड़े पर ड्यूटी भी नहीं लगती। यह सस्ता होता था। आराम से बिक जाता था। अब मिलें बंद हो गई हैं। 10-15 साल से कतरनों का कारोबार बंद हो गया है। अब पावरलूम उद्योग इकाइयां देशभर में लग गई हैं। इसमें ग्रेडेशन नहीं होता है। करीब 100 मीटर का लंप आता है। कटरे में लंप के दुकानदार भी कम हैं। अब कटरा लेहस्वान में अनस्टिच्ड सूट की बिक्री अधिक होती है। -जिनेंद्र कुमार जैन, प्रधान, कटरा लेहस्वान कटरा कमिटी

​लेहस्वा पेड़ से पड़ा कटरे का नाम

​लेहस्वा पेड़ से पड़ा कटरे का नाम

हमारा कटरा लेहस्वान चांदनी चौक के पुराने कटरों में गिना जाता है। 1930 में हमारे ताऊ जी ने यहां अपना कपड़े का कारोबार शुरू किया था। उस समय कटरे में रिहायश थी। किसी जमाने में यहां एक सराय होती थी। अंदर कुआं था, जो आज भी है। यहां चबूतरे के पास लेहस्वा का पेड़ था। लेहस्वा का अचार भी बनता है, जिसे लसौड़ा भी कहते हैं। इसी पेड़ की वजह से कटरे का नाम लेहस्वान पड़ा है। पुराने समय में चांदनी चौक के इस कटरे में कारोबारी आकर आराम करते थे। यहीं नहाकर फ्रैश होते थे। खाना-पीना करके तब खरीदारी करते थे। वक्त के साथ रिहायश खत्म होती गई। धीरे-धीरे दुकानें बढ़ती गईं। आज कटरे में 3-4 परिवार ही रहते हैं। अब कटरा लेहस्वान में 150 से 200 दुकानदार हैं। लेडिज सूट, गाउन, कुर्ती, टॉप, अनस्ट्रीच सूट और प्लेन कपड़े के लिए कटरा मशहूर है। -विनोद कुमार जैन, महामंत्री, कटरा लेहस्वान कटरा कमिटी

​व्यवस्थित होनी चाहिए ओपन वायरिंग

​व्यवस्थित होनी चाहिए ओपन वायरिंग

अन्य कटरों की तरह कटरा लेहस्वान में भी ओपन वायरिंग का जंजाल है। गर्मियों का समय है। एसी चल रहे हैं। पुराने तारों पर लोड पड़ रहा है। तार गर्म होते हैं। तमाम जगह एक साथ कई मीटर लगे हैं। स्पार्किंग की घटनाएं होती रहती हैं। डर लगता है कि कहीं कोई बड़ी आग की घटना नहीं हो जाए। वैसे भी चांदनी चौक में आग की बड़ी घटनाएं होती रही हैं। बिजली, टेलिफोन, इंटरनेट की तारों की भरमार है। इन्हें व्यवस्थित करने के लिए कई बार बीएसईएस और संबंधित सरकारी विभागों से गुहार लगा चुके हैं। मगर, कोई सुनने को राजी नहीं होता है। चांदनी चौक की मुख्य सड़क का सौंदर्यीकरण हो गया है। मैन रोड ऊंची हो गई है। कटरे की सड़क नीची पड़ गई है। थोड़ी बहुत बरसात में पानी अंदर भर जाता है। यहां 50 साल से सीवर की सफाई नहीं हुई है। मार्केट वाले पैसा देकर सफाई करवाते हैं। -भरत जैन, सदस्य, कटरा लेहस्वान कटरा कमिटी

​कार पार्किंग की भारी समस्या

​कार पार्किंग की भारी समस्या

कटरा लेहस्वान आने वाले दुकानदारों, व्यापारियों और ग्राहकों को कार पार्किंग में बड़ी मुश्किल झेलनी पड़ती है। यहां आस-पास में कार पार्किंग की जगह नहीं है। इससे मार्केट में कारोबार घटा है। बहुत से पुराने कस्टमर, जो कार में चलते हैं, उन्होंने आना छोड़ दिया है। पहले मैन गांधी ग्राउंड में पार्किंग थी। वहां 5 साल से मॉल बन रहा है। परेड ग्राउंड पार्किंग से आने में भी लोगों को 100 रुपये तक खर्च करने पड़ जाते हैं। नैशनल क्लब की पार्किंग दूर है। रेलवे स्टेशन के सामने वाली पार्किंग में 200 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से वसूली होती है। कार वाले ग्राहक तो कटरा लेहस्वान नहीं आते। यहां की हलचल उन लोगों से है, जो मेट्रो से आवाजाही करते हैं। साथ ही ट्रेनों के जरिए चांदनी चौक आने वाले भी कटरा लेहस्वान आते हैं। यहां से पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन करीब है। -विकास जैन, सदस्य, कटरा लेहस्वान कटरा कमिटी

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