जम्मू-कश्मीर असेंबली में 7 सीटें बढ़कर हो जाएंगी 90! BJP को होगा फायदा? अब बदल जाएगी घाटी की सियासत, समझिए

139

जम्मू-कश्मीर असेंबली में 7 सीटें बढ़कर हो जाएंगी 90! BJP को होगा फायदा? अब बदल जाएगी घाटी की सियासत, समझिए

नई दिल्ली : अनुच्छेद 370 के बेअसर होने, पूर्ण राज्य की जगह बिना विधानसभा वाले केंद्रशासित राज्य (जम्मू-कश्मीर और लद्दाख) में तब्दील होने के बाद जम्मू-कश्मीर के लिए एक नई सुबह का रास्ता साफ हो गया है। केंद्र के वादे के मुताबिक, केंद्रशासित राज्य को जल्द ही विधानसभा मिलेगी, जल्द ही चुनाव भी होंगे और जल्द ही राज्य में निर्वाचित सरकार होगी। वजह ये है कि परिसीमन आयोग (Delimitation Commission) ने जन्मू-कश्मीर के लिए अपनी फाइनल रिपोर्ट पेश कर दी है। विधानसभा की 7 सीटें बढ़ेंगी। पहली बार विस्थापित कश्मीरी पंडितों के लिए भी 2 सीटें नॉमिनेटेड होंगी। पहली बार 9 सीटें शेड्यूल्ड ट्राइब्स यानी एसटी के लिए रिजर्व होंगी। कुछ विधानसभा सीटों के नाम भी बदलेंगे। आइए जानते हैं कैसी होगी जम्मू-कश्मीर की नई प्रस्तावित विधानसभा, परिसीमन से किसे सियासी फायदा हो सकता है। साथ ही जानते हैं परिसीमन आयोग की मुख्य सिफारिशों से लेकर जम्मू-कश्मीर में परिसीमन के इतिहास तक।

क्या होता है परिसीमन
सबसे पहले तो समझते हैं कि परिसीमन क्या होता है। इसका शाब्दिक अर्थ हुआ ‘सीमा का निर्धारण’। चुनाव क्षेत्रों की सीमा तय करने की प्रक्रिया परिसीमन ही परिसिमन है। इसका सबसे बड़ा उद्देश्य जनसंख्या के आधार पर चुनाव क्षेत्रों का सही विभाजन करना होता है। जम्मू-कश्मीर में आखिरी बार 1995 में परिसीमन हुआ था। तब सूबे में कुल 12 जिले और 58 तहसीलें थीं जबकि आज जिलों की संख्या बढ़कर 20 और तहसीलों की संख्या 270 हो चुकी है।

परिसीमन आयोग की सिफारिशें एक नजर में

  • सीटों की संख्या में 7 का इजाफा, अब 83 के बजाय 90 सीटें
  • जम्मू की 6 सीटें बढ़ेंगी, एक सीट कश्मीर में बढ़ेगी
  • जम्मू की सीटें 37 से बढ़कर 43 हो जाएंगी, कश्मीर की सीटें 46 से बढ़कर 47 हो जाएंगी, दोनों डिविजनों में सीटों का अंतर अब 9 से घटकर 4 रह जाएगा
  • 13 विधानसभा सीटों के नाम बदलेंगे क्योंकि स्थानीय प्रतिनिधियों ने इसकी मांग की थी। इनमें से सात सीटें जम्मू डिविजन की हैं जबकि 6 सीटें कश्मीर की हैं।
  • श्रीनगर जिले की सोनवार विधानसभा सीट अब लाल चौक सीट कहलाएगी, जूनिमार सीट को जैडीबल नाम से जाना जाएगा, तंगमार्ग अब गुलमर्ग विधानसभा सीट के नाम से जानी जाएगी।
  • आयोग के मुताबिक जम्मू-कश्मीर में 5 लोकसभा सीटें होंगी- बारामूला, श्रीनगर, अनंतनाग-राजौरी, ऊधमपुर और जम्मू
  • हर लोकसभा सीट के तहत बराबर-बराबर विधानसभा सीटें आएंगी यानी 18-18
  • पहले भी 5 लोकसभा सीटें थीं जिनमें 3 कश्मीर क्षेत्र में और 2 जम्मू क्षेत्र में थीं, अब दोनों इलाकों में एक तरह से ढाई-ढाई सीटों का बंटवारा होगा। इसके लिए अनंतनाग-रजौरी लोकसभा सीट में पहली बार 7 विधानसभा सीटें जम्मू डिविजन की रखी गईं हैं जो रजौरी और पुंछ जिले की हैं। अनंतनाग-रजौरी लोकसभा क्षेत्र में 11 विधानसभा सीटें कश्मीर डिविजन की होंगी जो अनंतनाग, कुलगाम और शोपियां जिले में स्थित होंगी।
  • विस्थापित कश्मीरी पंडितों के लिए कम से कम 2 सीटें नॉमिनेट करने की सिफारिश, इसमें से एक महिला होगी, इन्हें वोटिंग का भी अधिकार होगा जैसे पुदुचेरी विधानसभा के नामित सदस्यों को होता है
  • परिसीमन आयोग ने पाकिस्तान के अवैध कब्जे वाले जम्मू-कश्मीर यानी POJK से विस्थापित हुए लोगों को भी प्रतिनिधित्व देने की सिफारिश की है। आयोग ने कहा है कि केंद्र POJK से विस्थापित लोगों के लिए एक नॉमिनेटेड सीट पर विचार कर सकता है
  • अनुसूचित जाति यानी शेड्यूल्ड कास्ट के लिए 7 सीटें आरक्षित रहेंगी
  • पहली बार राज्य में एसटी के लिए 9 सीटें आरक्षित होंगी, 6 जम्मू रीजन में और 3 कश्मीर रीजन में
  • पाकिस्तान के अवैध कब्जे वाले जम्मू-कश्मीर (POJK) के लिए आरक्षित 24 सीटें पहले की तरह खाली रहेंगी यानी तकनीकी तौर पर विधानसभा की कुल सीटें 90 नहीं बल्कि 114 रहेंगी

क्या बदला, पहले क्या था
2019 में अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म हुआ। राज्य 2 केंद्रशासित प्रदेशों जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में बंट गया। विधानसभा खत्म हो गई। उस समय जम्मू-कश्मीर विधानसभा में कुल 87 सीटें थीं। इनमें से 46 कश्मीर डिविजन में, 37 जम्मू और 4 सीटें लद्दाख क्षेत्र में थीं। 24 सीटें POJK के लिए थीं जो खाली रहती थीं। तकनीकी तौर पर तब 111 सीटें थीं जिनमें से 87 पर चुनाव होता था। अब 114 सीटें होंगी जिनमें से 90 पर चुनाव होंगे। पहले जम्मू-कश्मीर विधानसभा देश में इकलौती असेंबली थी जिसका कार्यकाल 5 साल के बजाय 6 साल होता था लेकिन अब उसका भी कार्यकाल 5 साल होने की उम्मीद है।

जम्मू की सीटें बढ़ने से किसको फायदा?
जम्मू-कश्मीर विधानसभा में जो 7 सीटें बढ़ रही हैं, उनमें से 6 जम्मू डिविजन में होंगी। कश्मीर डिविजन को सिर्फ एक नई सीट मिलेगी। इसी तरह लोकसभा सीटें तो पहले की तरह 5 ही रखी गई हैं लेकिन जम्मू और कश्मीर रीजन में संतुलन के लिए दोनों ही रीजन में ढाई-ढाई लोकसभा सीटें प्रस्तावित हैं। पहले कश्मीर डिविजन में 3 लोकसभा सीटें होती थीं और जम्मू में 2। अब अनंतनाग-रजौरी लोकसभा सीट को कश्मीर और जम्मू डिविजन में बांट दिया गया है। इसके तहत 11 विधानसभा सीटें कश्मीर क्षेत्र से तो 7 विधानसभा सीटें जम्मू क्षेत्र से होंगी। जम्मू डिविजन की सीटें बढ़ने से सूबे की सियासत में घाटी का दबदबा कम होगा। इसे बीजेपी के लिए फायदेमंद माना जा रहा है। जम्मू-कश्मीर के ज्यादातर दलों ने इस परिसीमन का विरोध किया है।

अब आगे क्या, कब होंगे जम्मू-कश्मीर में चुनाव
अब आयोग की रिपोर्ट केंद्र सरकार को पेश की जाएगी। इसमें चुनाव क्षेत्रों की संख्या और उनके आकार का ब्यौरा शामिल होगा। इसके बाद केंद्र सरकार अधिसूचना जारी करेगी कि किस तारीख से परिसीमन आदेश लागू होगा। अधिसूचित होने के बाद चुनाव आयोग वोटर लिस्ट को संशोधित करेगा और परिसीमित हुए विधानसभा क्षेत्रों के हिसाब से पोलिंग स्टेशनों को बनाएगा। इन सारी प्रक्रिया में कुछ महीने का समय लग सकता है। चर्चा है कि इस साल सर्दियों में जम्मू-कश्मीर के लिए विधानसभा चुनाव का ऐलान हो सकता है। आगे की औपचारिकताओं में समय लगा तो राज्य के लोगों को चुनाव के लिए अगले साल तक का इंतजार करना पड़ सकता है।

परिसीमन आयोग के बारे में
परिसीमन आयोग का चेयरमैन सुप्रीम कोर्ट का रिटायर्ड या सिटिंग जज होता है। चेयरमैन के अलावा आयोग में मुख्य चुनाव आयुक्त या दो चुनाव आयुक्तों में से कोई एक और संबंधित राज्य के इलेक्शन कमिश्नर सदस्य होते हैं। इसके अलावा राज्य के 5 सांसद और 5 विधायक भी आयोग के असोसिएट मेंबर्स के तौर पर चुने जा सकते हैं। पिरिसीमन आयोग का अपना कोई स्टाफ नहीं होता, वह पूरी कवायद के लिए चुनाव आयोग के कर्मचारियों पर ही निर्भर करता है।

इस जम्मू-कश्मीर के लिए मार्च 2020 में परिसीमन आयोग का गठन हुआ। पिछले साल इसे एक साल का विस्तार दिया गया। परिसीमन आयोग की चेयरमैन जस्टिस (रिटायर्ड) रंजना प्रकाश देसाई हैं। उनके अलावा मुख्य चुनाव आयुक्त सुशील चंद्रा और जम्मू-कश्मीर के इलेक्शन कमिश्नर केके शर्मा इसके सदस्य हैं। आयोग ने कोरोना महामारी के बावजूद महज 2 साल और 2 महीने में ही अपनी फाइनल रिपोर्ट दे दी है। जबकि 1995 का परिसीमन 7 सालों तक चला था।

जम्मू-कश्मीर का परिसीमन औरों से अलग क्यों रहता था, इस बार क्यों है ऐतिहासिक
जम्मू-कश्मीर के लिए परिसीमन देश के बाकी हिस्सों से अलग होता था। लोकसभा सीटों के लिए परिसीमन भारत के संविधान के मुताबिक होता था जबकि विधानसभा सीटों के लिए जम्मू-कश्मीर के संविधान के तहत खासकर जम्मू-कश्मीर रिप्रेजेंटेशन ऐक्ट 1957 के तहत। अब राज्य का विशेष दर्जा छिन जाने के बाद परिसीमन की ये पूरी कवायद भारत के संविधान के हिसाब से हुई है।

जम्मू-कश्मीर में परिसीमन का इतिहास और विवाद
जम्मू-कश्मीर के लिए पहली बार परिसीमन आयोग का गठन 1952 में हुआ था। उसके बाद 1963, 1973 और 2002 में बना था। सूबे में आखिरी बार 1995 में 22 वर्षों के बाद परिसीमन हुआ था। तब आयोग के चेयरमैन जस्टिस (रिटायर्ड) केके गुप्ता थे। तब आयोग की सिफारिश पर विधानसभा की सीटें 76 से बढ़ाकर 87 की गई थीं। जम्मू रीजन में 5 सीटें बढ़कर 32 से 37 की गईं। कश्मीर रीजन में 4 सीटें बढ़कर 42 से 46 हो गईं और लद्दाख में 2 सीटें बढ़कर 2 से 4 कर दी गई थी।

जब फारूक अब्दुल्ला सरकार ने लगा दी थी परिसीमन पर रोक
2002 में जम्मू-कश्मीर के लिए परिसीमन होना था। उसके लिए आधार 1981 की जनगणना के आंकड़ों को बनाया गया था। लेकिन फारूक अब्दुल्ला की अगुआई वाली जम्मू-कश्मीर की तत्कालीन नेशनल कॉन्फ्रेंस सरकार ने परिसीमन पर ही 2026 तक के लिए रोक लगा दी। इसके लिए अब्दुल्ला सरकार ने जम्मू ऐंड कश्मीर रिप्रेजेंटेशन ऑफ द पीपल ऐक्ट 1957 और जम्मू-कश्मीर के संविधान के सेक्शन 47 (3) में संशोधन कर दिया। इस पर विवाद भी हुआ। अब्दुल्ला सरकार के इस कदम को विधानसभा में जम्मू डिविजन के मुकाबले कश्मीर डिविजन को ज्यादा ताकतवर बनाए रखने की कवायद के तौर पर देखा गया।

अब सवाल उठ सकता है कि जब 2026 तक के लिए परिसीमन पर रोक लग गई थी तो उससे पहले ये परिसीमन मुमकिन कैसे हुआ। दरअसल, जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म होने के साथ ही उसके अलग संविधान और नियमों का अस्तित्व भी मिट गया। राज्य में ताजा परिसीमन जम्मू ऐंड कश्मीर रीऑर्गनाइजेशन ऐक्ट 2019 के प्रावधानों के तहत हुआ है।



Source link