तिब्बती बच्चों को हथियार बना रहा चीन, भारत की ‘स्पेशल फ्रंटियर फोर्स’ से घबराए ड्रैगन की नई चाल का खुलासा

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तिब्बती बच्चों को हथियार बना रहा चीन, भारत की ‘स्पेशल फ्रंटियर फोर्स’ से घबराए ड्रैगन की नई चाल का खुलासा

नई दिल्ली : चीन अब अपनी सेना के लिए तिब्बती (Tibet) बच्चों को भी तैयार कर रहा है। तिब्बती बच्चों को शुरू से ही मैंडेरिन, बोधी और हिंदी की ट्रेनिंग देने की शुरूआत की गई है। माना जा रहा है कि चीन भारत की स्पेशल फ्रंटियर फोर्स (SFF) के जवाब में यह कदम उठा रहा है। करीब दो साल पहले जब ईस्टर्न लद्दाख (Eastern Ladakh) में एलएसी पर भारत-चीन के बीच तनाव शुरू हुआ तो पैंगोंग झील के दक्षिणी किनारे पर चीनी सैनिकों को भारतीय सेना की स्पेशल फ्रंटियर फोर्स (एसएफएफ) से मुंह की खानी पड़ी थी। एसएफएफ में तिब्बती सैनिक हैं।

इंटेलिजेंस एजेंसी सूत्रों के मुताबिक चीन अपनी रणनीति बदलता दिख रहा है। वह एलएसी के पास के तिब्बती गांवों को अपनी रणनीति में शामिल कर रहा है। चीन पहले ही तिब्बत के इलाके में मैंडेरिन भाषा को प्राथमिक भाषा के तौर पर स्कूलों में लागू कर चुका है। अब चीनी सेना ने एलएसी से लगने वाले नागरी प्रांत के 6 से 9 साल के करीब 120 बच्चों को बोर्डिंग में भेजने के लिए चुना है। इनमें लड़के- लड़कियां दोनों शामिल हैं। इन्हें मैंडेरिन भाषा सिखाने के अलावा आगे की पढ़ाई के लिए बीजिंग भेजा जाएगा।

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इंटेलिजेंस रिपोर्ट के मुताबिक 10 से 18 साल के बच्चों को शिकान्हे मिलिट्री कैंप में मैंडेरिन, बोधी और हिंदी भाषा की ट्रेनिंग के लिए चुना गया है। उनके इस कदम से यह अनुमान लगाया जा रहा है कि चीनी सेना अब ज्यादा तिब्बतियों को अपनी सेना में शामिल करने की कोशिश कर रही है। पहले चरण में चीनी सेना 11 वीं और 12 वीं के बच्चों को प्रशिक्षण देगी। दूसरे चरण में 12 वीं पास स्टूडेंट 3 से 5 साल तक पीएलए में सेवा देंगे। तीसरे चरण में युवाओं को पीएलए में भर्ती के लिए चीनी सरकार वैकल्पिक मुफ्त उच्च शिक्षा भी देगी।
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जानकारों का कहना है कि ऐसा लगता है कि चीन भारत की स्पेशल फ्रंटियर फोर्स के जवाब में यह कदम उठा रहा है। ईस्टर्न लद्दाख में जब चीन पैंगोंग झील के उत्तरी किनारे में फिंगर एरिया में काफी आगे तक आ गया था तब स्पेशल फ्रंटियर फोर्स ने पैंगोंग के दक्षिण किनारे की ऊंची अहम चोटियों पर कब्जा कर चीन को बैकफुट पर ला दिया था। स्पेशल फ्रंटियर फोर्स के तिब्बती सैनिक उस भौगोलिक परिस्थियों के लिए बिल्कुल मुफीद हैं जबकि चीनी सैनिकों की वहां हालत खराब हो गई थी।



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