देवास जिले के बांस उत्पाद की पहुंच अब विदेशों तक

69

देवास जिले के बांस उत्पाद की पहुंच अब विदेशों तक

नवरात्रि पर्व पर भक्तों को बांस के डिब्बों में दिया प्रसाद

बांस से बने अन्य उत्पाद का प्रयोग घरेलू के साथ ही सौंदर्य प्रसाधनों में भी हो रहा है

भोपाल। देवास जिले बांस से बनने वाले उत्पाद देवास में ही नहीं बल्कि देश और विदेश तक पहुंच रहे हैं। बांस के उत्पादों से जिले को एक अलग ही पहचान तो मिल ही रही है स्थानीय लोगों को रोजगार भी मिल रहा है। नवरात्रि पर्व में देवास जिला प्रशासन ने “एक जिला-एक उत्पाद” योजना में एक अनूठा नवाचार किया। यहां के प्रसिद्ध एवं ऐतिहासिक माँ चामुंडा मंदिर में दर्शन के लिए आए भक्तों को बांस से बने डिब्बों में प्रसाद वितरित किया गया। माता की टेकरी पर अब बांस के डिब्बों के उपयोग का प्रचलन में आ गया है। बांस से बने अन्य उत्पाद का प्रयोग घरेलू के साथ ही सौंदर्य प्रसाधनों में भी हो रहा है।
भोपाल रोड स्थित जामगोद के पास आर्टिजन कंपनी बाँस के विभिन्न उत्पाद बना रही है। कम्पनी के सीईओ देवोपम मुखर्जी बताते है कि भारत ही नहीं दुनिया का पहला प्रोसेस इंजीनियरिंग डेबू बोर्ड देवास में तीन वर्ष पहले स्थापित हुआ। इमारती लकडिय़ों में सबसे अच्छा प्रोडक्ट डेबू कटंग बांस है, जो मुख्य रूप से मध्यप्रदेश में ही पाई जाने वाली बांस की प्रजाति है। अब कंपनी कटंग बांस की पौध तैयार कर उन किसानों को भी उपलब्ध करा रही हैं, जो बांस की खेती में रुचि रख अपनी आय बढ़ाना चाहते हैं।

इस वजह से ही कंपनी ने अपना मुख्य सेंटर देवास में रखा है। यहाँ तैयार हो रहे बाँस उत्पादों से बाँस उत्पादक किसानों को भी लाभ पहुँच रहा है। कम्पनी मध्यप्रदेश सहित अन्य प्रांतों में बाँस का काम कर रही है। जिला प्रशासन की पहल पर कंपनी को नवरात्रि में प्रसाद वितरण के लिए बाँस पैकेट बनाने का आर्डर मिला, जिसे काफी सराहा गया है। अब कंपनी कटंग बाँस की पौध तैयार कर उन किसानों को भी उपलब्ध करा रही हैं, जो बाँस की खेती में रुचि रख अपनी आय बढ़ाना चाहते हैं। बाँस की खेती कम पानी और कम लागत की है।

यह उत्पाद हो रहे हैं तैयार
स्थानीय कटंग बाँस से वर्तमान में लिविंग रूम, शयन कक्ष, भोजन कक्ष और बाथरूम फर्नीचर, रसोई उत्पाद, फ्लैश और पैनल दरवाजे, रंग विकल्प सहित प्रमुख उत्पाद तैयार किए जा रहे हैं। यहाँ तैयार फर्नीचर भारत के अलावा कई देशों में भी निर्यात किया जा रहा है। सामग्री तैयार होने के बाद अंत में शेष बचे बाँस के कचरे से बायो डीजल भी बनाया जा रहा है। स्थानीय महिलाएँ बताती हैं कि आधुनिक मशीनों के माध्यम से बाँस के डिब्बे सहित अन्य फर्नीचर का काम कर वे प्रतिमाह 10 से 15 हजार रूपये मासिक प्राप्त कर रही हैं।











उमध्यप्रदेश की और खबर देखने के लिए यहाँ क्लिक करे – Madhya Pradesh News