प्राचीन काल में तैयार चांदी की माला बनी संग्रहालय में आकर्षण का केंद्र

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प्राचीन काल में तैयार चांदी की माला बनी संग्रहालय में आकर्षण का केंद्र

“डोड-माला” चांदी के मनकों से बना एक हार

भोपाल. राष्ट्रीय मानव संग्रहालय के नवीन श्रृंखला ‘सप्ताह का प्रादर्श’ के अंतर्गत जुलाई माह के चौथे सप्ताह के प्रादर्श के रूप में “डोड-माला” चांदी के मनकों से बना एक हार को शामिल किया गया। दर्शक इसे आनलाइन ही देख सकेंगे। इसे हिमाचल प्रदेश के चंबा, गद्दी समुदाय से 1995 में संकलित किया गया है। इस सम्बन्ध में संग्रहालय के निदेशक डॉ. प्रवीण कुमार मिश्र ने बताया कि ‘सप्ताह के प्रादर्श’ के अंतर्गत संग्रहालय द्वारा पूरे भारत भर से किए गए अपने संकलन को दर्शाने के लिए अपने संकलन की अति उत्कृष्ट कृतियां प्रस्तुत कर रहा है जिन्हें एक विशिष्ट समुदाय या क्षेत्र के सांस्कृतिक इतिहास में योगदान के संदर्भ में अद्वितीय माना जाता है।

चांदी के मनकों से बना है
डोड-माला चांदी के मनकों से बना एक हार है जो रीठे से मिलता-जुलता है जिसे स्थानीय तौर पर डोड के नाम से जाना जाता है। सम्भवतः प्राचीन काल में जब मनुष्य ताजे फूलों, फलों आदि से स्वयं को अलंकृत करते थे, तब उन्होंने रीठे की माला भी तैयार की होगी। रीठे को एक साथ रगड़ने पर घर्षण ध्वनि उत्पन्न होती है। यह माला अवश्य ही लोकप्रिय आभूषण रही है। डोड-माला को चांदी के गोल खोखले मनकों, जो लगभग रीठे के आकार के हैं, से बनाया गया है। एक मनके के दोनों आधे भाग चांदी की पत्तर को सांचे पर पीटकर तैयार किए जाते हैं, फिर दोनों को किनारों से जोड़ा जाता है, जिससे सिरों पर एक छेद बन जाता है। फिर मनकों को एक सूती धागे से पिरोया जाता है।

दो-तार वाली डोड-माला
सामान्यतः डोड-माला दो से तीन-तार वाला हार होता है, लेकिन ज्यादातर दो-तार वाली डोड-माला ही होती है। हार के प्रत्येक छोर पर एक पान के आकार की या त्रिकोणीय पट्टिका दी गयी है जो डोड-माला के तारों को एक साथ रखती है। इनमें से प्रत्येक पट्टिका में एक छोटा मुड़ा हुआ धागा होता है जिससे हार को गर्दन के पीछे बांधा जाता है। सामान्यतः हार के प्रत्येक तार में पच्चीस से तीस मनके होते हैं। इस प्रकार का हार पूरे क्षेत्र में बहुत लोकप्रिय है, यहां तक कि पुरुष भी कभी-कभी डोड-माला पहनते हैं।







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