बनारस का गृहस्‍थ योगी, 30 बरस से राह देख रहे थे Mahavatar Baba, पूर्वजन्‍मों का ज्ञान देने बुलाया था हिमालय

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बनारस का गृहस्‍थ योगी, 30 बरस से राह देख रहे थे Mahavatar Baba, पूर्वजन्‍मों का ज्ञान देने बुलाया था हिमालय

बनारस का गृहस्‍थ योगी, 30 बरस से राह देख रहे थे Mahavatar Baba, पूर्वजन्‍मों का ज्ञान देने बुलाया था हिमालय


वाराणसी: श्‍यामा चरण लाहिड़ी… भारत के साधु संतों में रुचि रखने वाला शायद ही कोई व्‍यक्ति होगा जो इस नाम से अनजान होगा। श्‍यामा चरण लाहिड़ी (Shyama Charan Lahiri) को आधुनिक भारत के महानतम संतों में गिना जाता है। स्‍वामी योगानंद परमहंस (Swami Yoganand Paramhans) ने अपनी किताब योगी कथामृत में इनकी चर्चा अपने परमगुरु के रूप में की है। परमगुरु यानी उनके गुरु श्री युक्‍तेश्‍वर गुरु के गुरु। लाहिड़ी महाशय को इसलिए भी याद किया जाता है क्‍योंकि सिद्धों के महासिद्ध महावतार बाबा (Mahavatar Babaji) ने अपने पास बुलाया और उन्‍हें क्रियायोग की दीक्षा देकर कहा कि आधुनिक संसार में इसका प्रचार प्रसार करें।

लाहिड़ी महाशय का महत्‍व इस बात से समझा जा सकता है कि उन्‍होंने अपना पूरा जीवन गृहस्‍थ की तरह गुजारा। परिवार के भरण पोषण के लिए वह सेना में अकाउंटेंट का काम करते थे। सांसारिक कर्तव्‍यों के बीच उनकी आध्‍यात्मिक स्थिति इतनी उच्‍च थी कि महान योगी, सिद्ध, संन्‍यासी उनके दर्शन करने और ज्ञान चर्चा करने आते थे।

लाहिड़ी महाशय का जन्‍म 30 सितंबर 1828 में बंगाल में हुआ था, लेकिन पांच साल की उम्र में वह बनारस आ गए। यहां उनकी शिक्षा हुई, उन्‍होंने सेना के अकाउंट्स विभाग में अकाउंटेंट की नौकरी की। उनका विवाह भी हुआ, दो बेटे और तीन बेटियां उनके परिवार में थे।

1861 में जिस समय वह दानापुर में पोस्‍टेड थे उस समय अचानक उनका ट्रांसफर उत्‍तराखंड के रानीखेत कर दिया गया। अचानक हुए इस तबादले से वह हैरान थे। रानीखेत में खास काम नहीं था। वह एक दिन शाम को पहाड़ों के बीच घूम रहे थे कि उन्‍हें एक संन्‍यासी दिखाई दिया। संन्‍यासी श्‍यामाचरण को उनके नाम से बुला रहा था। श्‍यामाचरण उस तेजस्‍वी संन्‍यासी के पास पहुंचे तो संन्‍यासी ने पूछा, तुम्‍हें यह गुफा याद है जहां तुम ध्‍यान साधना करते थे। मैं पिछले तीन दशक से तुम्‍हारी राह देख रहा हूं। मैंने ही तुम्‍हारे उच्‍चाधिकारियों को प्रेरणा दी थी कि तुम्‍हारे ट्रांसफर के लिए आदेश जारी करें।

लाहिड़ी महाशय कुछ समझ नहीं पाए। संन्‍यासी ने उनके सीने को स्‍पर्श किया तो अचानक उनकी आंखों में पूर्वजन्‍म की यादें कौंध गईं। उन्‍हें याद आया कि यह संन्‍यासी अमर योगी महावतार बाबा हैं जिनकी देखरेख में वह अनंत की साधना करते थे। महावतार बाबा से लाहिड़ी बोले, श्री गुरु बाबा जी मुझे सब याद आ गया।

इसके बाद महावतार बाबा ने लाहिड़ी महाशय को क्रिया योगी की दीक्षा दी। क्रिया योग योग साधना की एक टेक्‍नीक है जिसका पालन करके योगी चेतना की उच्‍चतर अवस्‍था को प्राप्‍त करते हैं। महावतार बाबा ने लाहिड़ी महाशय से कहा कि वह सुपात्रों को इस विद्या की जानकारी दें।

इच्‍छा न होते हुए भी गुरु आज्ञा मानकर श्‍यामा चरण लाहिड़ी अपने ऑफिस लौटे। वहां पता चला कि उनका ट्रांसफर भूलवश हो गया। उन्‍हें वापस दानपुर लौटना है। इसके बाद श्‍यामा चरण लाहिड़ी संसार और आध्‍यात्‍म दोनों में संतुलन बनाते हुए जीवन में आगे बढ़ने लगे। उनके शिष्‍यों में माली, पोस्‍टमैन से लेकर राजा महाराजा तक शामिल थे।

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