बुलंदशहर से लेकर सहारनपुर तक, ये हैं यूपी की इंस्पिरेशनल बिजनेस वूमेन | women entrepreneurs from UP villages expand their small businesses | News 4 Social
मंजू देवी, ढकोली गांव, बुलंदशहर बुलंदशहर की मंजू देवी अपनी बेटी के साथ अकेले रहती हैं। मंजू देवी ने घर की खराब आर्थिक स्थिती को देखते हुए अपनी बेटी की पढ़ाई 12वीं के बाद पढ़ाई बंद करवा दी। मंजू की बेटी सिलाई की ट्रेनिंग लेने के लिए दिल्ली चली गई। ट्रेनिंग के बाद दर्जी का काम करना शुरू किया।
अपने गांव लौटने पर बेटी ने मां मंजू देवी को भी सिलाई की ट्रेनिंग दी। दोनों मां-बेटी ने मिल कर गांव की 150 से ज्यादा महिलाओं को सिलाई का काम सिखाया। आज ये सभी महिलाएं अपना खुद का बिजनेस कर रही हैं। बता दें कि ढकोली गांव यूपी का एक ऐसा गांव है जहां पर महिलाएं शायद ही कभी काम करने के लिए बाहर जाती थीं। अपनी बेटी के समर्थन से उत्साहित मंजू देवी ने अपने बिजनेस को और आगे ले जाने का फैसला किया।
‘हर एंड नाउ एंटरप्रेन्योरशिप सपोर्ट प्रोग्राम’ ने की मदद 40 साल की मंजू कहती हैं कि ‘पैसों की कमी की वजह से बिजनेस की शुरुआत करना मेरे लिए आसान नहीं था। मेरी मदद एम्पॉवर फाउंडेशन और GIZ का ‘हर एंड नाउ एंटरप्रेन्योरशिप सपोर्ट प्रोग्राम’ ने की। ये मेरे लिए एक आशीर्वाद की तरह था।
दोनों फाउंडेशन ने मंजू को 40 दिन का कोर्स करवाया। मंजू को 2 लाख रुपए का कर्ज भी दिया। फ्लिपकार्ट पर कुमार क्रिएशन्स नाम के एक बिजनेस प्लेटफॉर्म जो ट्रेडिशनल ड्रेसेज बेचती है। अब कुमार क्रिएशन्स सलवार सूट, टॉप और पलाज़ोस भी बेचना शुरू कर रही है। मंजू ने अपने सिले हुए कपड़ों को कुमार क्रिएशन्स को देना शुरू किया। अब मंजू के सिले कपड़े मिशो पर भी बेचे जा रहे हैं।
‘मंजू दीदी की कामयाबी से हमें भी काम मिलेगा’ मंजू की आगे की प्लानिंग बुलंदशहर में अपनी खुद की दुकान खोलने की है। गांव की महिलाएं ये मानती हैं कि अगर मंजू दीदी को ज्यादा काम मिलेगा तो हमें भी काम मिलेगा।
बाबी कुमारी, बुद्ध खेड़ा गांव, सहारनपुर सहारनपुर जिले में बुद्ध खेड़ा गाँव की बाबी कुमारी ने बैग सिलने का काम शुरू किया। 35 साल की बाबी हमेशा से आर्थिक रूप से आजाद होना चाहती थी।
पीएमकेवीवाई के तहत तीन महीने का डिप्लोमा कोर्स किया सीसीएस यूनिवर्सिटी, मेरठ से ग्रेजुएशन करने के बाद, बाबी ने प्रधान मंत्री कौशल विकास योजना (पीएमकेवीवाई) के तहत रिटेल में तीन महीने का डिप्लोमा कोर्स किया। हरिद्वार में एक निजी कंपनी में एक साल तक काम करने के बाद अपने गांव लौट आई।
250 रुपये से 1,000 रुपये के बीच बेचे जा रहे हैंड मेड बैग बाबी कहती हैं कि “मैंने एक ब्यूटीशियन के रूप में काम किया। मेरा झुकाव सिलाई की तरफ था। अपने पैशन को पूरा करने के लिए औरतों के कपड़े सिलने लगी। बाद में बाबी ने बैग सिलाई सीखने का कोर्स किया। बाबी कुमारी आज हैंडबैग, पर्स और पर्स, शादी की किट, डफेल बैग, स्कूल बैग बेचती हैं। इसकी कीमत 250 रुपये से 1,000 रुपये के बीच है।
ईकॉमर्स प्लेटफॉर्म पर भी बिक रहे बाबी के बैग बाबी भी GIZ के प्रोजेक्ट Her&Now से जुड़ी, वह कहती हैं, “इस प्रोजक्ट ने मेरी काफी मदद की। Her&Now ने बाबी को कर्ज भी दिया। बाबी अब सोशल मीडिया और ईकॉमर्स प्लेटफॉर्म पर भी अपने बैग बेच रही हैं। धीरे -धीरे बाबी के प्रोजक्ट देश भर में बेचे जा रहे हैं”।
मंजू देवी, ढकोली गांव, बुलंदशहर बुलंदशहर की मंजू देवी अपनी बेटी के साथ अकेले रहती हैं। मंजू देवी ने घर की खराब आर्थिक स्थिती को देखते हुए अपनी बेटी की पढ़ाई 12वीं के बाद पढ़ाई बंद करवा दी। मंजू की बेटी सिलाई की ट्रेनिंग लेने के लिए दिल्ली चली गई। ट्रेनिंग के बाद दर्जी का काम करना शुरू किया।
अपने गांव लौटने पर बेटी ने मां मंजू देवी को भी सिलाई की ट्रेनिंग दी। दोनों मां-बेटी ने मिल कर गांव की 150 से ज्यादा महिलाओं को सिलाई का काम सिखाया। आज ये सभी महिलाएं अपना खुद का बिजनेस कर रही हैं। बता दें कि ढकोली गांव यूपी का एक ऐसा गांव है जहां पर महिलाएं शायद ही कभी काम करने के लिए बाहर जाती थीं। अपनी बेटी के समर्थन से उत्साहित मंजू देवी ने अपने बिजनेस को और आगे ले जाने का फैसला किया।
‘हर एंड नाउ एंटरप्रेन्योरशिप सपोर्ट प्रोग्राम’ ने की मदद 40 साल की मंजू कहती हैं कि ‘पैसों की कमी की वजह से बिजनेस की शुरुआत करना मेरे लिए आसान नहीं था। मेरी मदद एम्पॉवर फाउंडेशन और GIZ का ‘हर एंड नाउ एंटरप्रेन्योरशिप सपोर्ट प्रोग्राम’ ने की। ये मेरे लिए एक आशीर्वाद की तरह था।
दोनों फाउंडेशन ने मंजू को 40 दिन का कोर्स करवाया। मंजू को 2 लाख रुपए का कर्ज भी दिया। फ्लिपकार्ट पर कुमार क्रिएशन्स नाम के एक बिजनेस प्लेटफॉर्म जो ट्रेडिशनल ड्रेसेज बेचती है। अब कुमार क्रिएशन्स सलवार सूट, टॉप और पलाज़ोस भी बेचना शुरू कर रही है। मंजू ने अपने सिले हुए कपड़ों को कुमार क्रिएशन्स को देना शुरू किया। अब मंजू के सिले कपड़े मिशो पर भी बेचे जा रहे हैं।
‘मंजू दीदी की कामयाबी से हमें भी काम मिलेगा’ मंजू की आगे की प्लानिंग बुलंदशहर में अपनी खुद की दुकान खोलने की है। गांव की महिलाएं ये मानती हैं कि अगर मंजू दीदी को ज्यादा काम मिलेगा तो हमें भी काम मिलेगा।
बाबी कुमारी, बुद्ध खेड़ा गांव, सहारनपुर सहारनपुर जिले में बुद्ध खेड़ा गाँव की बाबी कुमारी ने बैग सिलने का काम शुरू किया। 35 साल की बाबी हमेशा से आर्थिक रूप से आजाद होना चाहती थी।
पीएमकेवीवाई के तहत तीन महीने का डिप्लोमा कोर्स किया सीसीएस यूनिवर्सिटी, मेरठ से ग्रेजुएशन करने के बाद, बाबी ने प्रधान मंत्री कौशल विकास योजना (पीएमकेवीवाई) के तहत रिटेल में तीन महीने का डिप्लोमा कोर्स किया। हरिद्वार में एक निजी कंपनी में एक साल तक काम करने के बाद अपने गांव लौट आई।
250 रुपये से 1,000 रुपये के बीच बेचे जा रहे हैंड मेड बैग बाबी कहती हैं कि “मैंने एक ब्यूटीशियन के रूप में काम किया। मेरा झुकाव सिलाई की तरफ था। अपने पैशन को पूरा करने के लिए औरतों के कपड़े सिलने लगी। बाद में बाबी ने बैग सिलाई सीखने का कोर्स किया। बाबी कुमारी आज हैंडबैग, पर्स और पर्स, शादी की किट, डफेल बैग, स्कूल बैग बेचती हैं। इसकी कीमत 250 रुपये से 1,000 रुपये के बीच है।
ईकॉमर्स प्लेटफॉर्म पर भी बिक रहे बाबी के बैग बाबी भी GIZ के प्रोजेक्ट Her&Now से जुड़ी, वह कहती हैं, “इस प्रोजक्ट ने मेरी काफी मदद की। Her&Now ने बाबी को कर्ज भी दिया। बाबी अब सोशल मीडिया और ईकॉमर्स प्लेटफॉर्म पर भी अपने बैग बेच रही हैं। धीरे -धीरे बाबी के प्रोजक्ट देश भर में बेचे जा रहे हैं”।