मनरेगा, आशा और आंगनवाड़ी वर्कर्स को मिलेगा ज्यादा पैसा! यहां जानिए पूरी बात

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मनरेगा, आशा और आंगनवाड़ी वर्कर्स को मिलेगा ज्यादा पैसा! यहां जानिए पूरी बात

हाइलाइट्स

  • मनरेगा, आशा और आंगनवाड़ी वर्कर्स के लिए अच्छी खबर
  • सरकार CPI-AL और CPI-RL में बदलाव की तैयारी में
  • इसके लिए 2019 को बेस ईयर बनाया जाएगा जो अभी 1986-87 है
  • सितंबर में लॉन्च किया जा सकता है नया इंडेक्स

नई दिल्ली
मनरेगा, आशा, आंगनवाड़ी और मिडडे मील स्कीम के वर्कर्स के लिए अच्छी खबर है। आने वाले दिनों में उनका पैसा बढ़ सकता है। सरकार कृषि और रूरल वर्कर्स के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI-AL और CPI-RL) में बदलाव की तैयारी कर रही है। इसके लिए 2019 को बेस ईयर बनाया जाएगा जो अभी 1986-87 है। साथ ही और उपभोग बास्केट (consumption basket) में भी बदलाव किया जाएगा।

एक सीनियर अधिकारी ने ईटी को बताया कि संशोधित बेस ईयर और बास्केट के साथ नया इंडेक्स सितंबर में लॉन्च किया जा सकता है। CPI-AL/RL का इस्तेमाल विभिन्न राज्यों में कृषि और ग्रामीण मजदूरों की न्यूनतम मजदूरी को संशोधित करने के लिए किया जाता है। नैशनल सैंपल सर्वे ऑफिस (NSSO) CPI (AL/RL) के बेस ईयर रिवीजन के लिए मार्केट सर्वे कर रहा है ताकि नए बेस ईयर के साथ नई सिरीज बनाने में मदद मिल सके।

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क्या है योजना
एक अन्य अधिकारी ने कहा कि देश के 787 गांवों से बेस ईयर प्राइस कलेक्शन तब तक जारी रहेगा जब तक नई सिरीज को अंतिम रूप नहीं दे दिया जाता है। अधिकारी ने कहा कि लेबर ब्यूरो नई सिरीज के लिए बास्केट बनाने के वास्ते 2011-12 में किए गए कंज्यूमर एक्सपेंडीचर सर्वे, NSS 68th Round के नतीजों का इस्तेमाल करेगा। उसके बाद नई सिरीज के तहत रेग्युलर प्राइस कलेक्शन शुरू होगा।

संशोधित इंडेक्स में उपभोग बास्केट में एक अहम बदलाव देखने को मिलेगा। इसमें खाने-पीने की चीजों पर खर्च कम हो सकता है जिससे स्वास्थ्य और शिक्षा पर खर्च बढ़ाने का रास्ता साफ होगा। अधिकारी ने कहा कि बेस ईयर में बदलाव के साथ इंडेक्स और उपभोग बास्केट के तहत कवर मार्केट्स में बदलाव आया है। इससे मनरेगा और मिड डे सहित दूसरी योजनाओं के वर्कर्स की न्यूनतम मजदूरी में बदलाव हो सकता है। 1 अप्रैल, 2020 से मनरेगा के तहत मजदूरी 182 रुपये से बढ़ाकर 202 रुपये कर दी गई थी।

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विवाद की वजह
सरकार साथ ही विभिन्न राज्यों के बीच मजदूरी में अंतर को कम करने का भी प्रयास कर रही है और सभी राज्यों को इंडिविजुअल इंडेक्स देने की दिशा में भी काम हो रहा है। अभी 20 राज्यों का अपना इंडेक्स है और बाकी राज्य पड़ोसी राज्यों के इंडेक्स के आधार पर मजदूरी तय करते हैं। इससे अक्सर विवाद पैदा होते हैं। उदाहरण के लिए कुछ समय पहले सिक्किम ने पश्चिम बंगाल के इंडेक्स का इस्तेमाल करने से इनकार कर दिया था। उसका कहना था कि दोनों राज्यों के उपभोग बास्केट में बहुत अंतर है। सिक्किम के अलावा कई और राज्य भी अपने लिए अलग इंडेक्स की मांग कर रहे हैं।

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