‘राजद्रोह कानून की समीक्षा कर रही सरकार, सुप्रीम कोर्ट फिलहाल न करे विचार’, केंद्र ने दाखिल किया हलफनामा

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‘राजद्रोह कानून की समीक्षा कर रही सरकार, सुप्रीम कोर्ट फिलहाल न करे विचार’, केंद्र ने दाखिल किया हलफनामा

नई दिल्ली: IPC की धारा 124 ए पर केंद्र की ओर से सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में हलफनामा दाखिल कर अनुरोध किया गया है कि इसकी वैद्यता का अध्ययन करने में समय नहीं लगाए। केंद्र सरकार ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में कहा कि राजद्रोह (Sedition Law) के दंडनीय कानून की संवैधानिक वैधता का अध्ययन करने में समय नहीं लगाए क्योंकि उसने (केंद्र ने) इस प्रावधान पर पुनर्विचार करने का फैसला किया है जो सक्षम मंच के समक्ष ही हो सकता है। चीफ जस्टिस एनवी रमना और जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने कहा था कि वह दलीलों पर सुनवाई 10 मई को करेगी कि राजद्रोह पर औपनिवेशिक काल के दंडनीय कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं को केदारनाथ सिंह मामले में पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के 1962 के फैसले पर पुनर्विचार करने के लिए बड़ी पीठ को भेजा जाए या नहीं।

गृह मंत्रालय के एक अधिकारी के दाखिल हलफनामे के अनुसार सरकार ने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 124 ए के प्रावधानों का पुन: अध्ययन और पुनर्विचार करने का फैसला किया है जो सक्षम मंच पर ही हो सकता है। हलफनामे में कहा गया इसके मद्देनजर, बहुत सम्मान के साथ यह बात कही जा रही है कि माननीय न्यायालय एक बार फिर आईपीसी की धारा 124 ए की वैधता का अध्ययन करने में समय नहीं लगाए और एक उचित मंच पर भारत सरकार द्वारा की जाने वाली पुनर्विचार की प्रक्रिया की कृपया प्रतीक्षा की जाए ।

याचिका में क्या दी गई है दलील
सुप्रीम कोर्ट में रिटायर मेजर जनरल की ओर से अर्जी दाखिल कर कहा गया है कि आईपीसी की धारा-124 ए (राजद्रोह) कानून में जो प्रावधान और परिभाषा दी गई है वह स्पष्ट नहीं है। इसके प्रावधान संविधान के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है। सभी नागरिकों को मौलिक अधिकार मिले हुए हैं। इसके तहत अनुच्छेद-19 (1)(ए) में विचार अभिव्यक्ति की आजादी मिली हुई है। साथ ही अनुच्छेद-19 (2) में वाजिब रोक की बात है। लेकिन राजद्रोह में जो प्रावधान है वह संविधान के प्रावधानों के विपरीत है। राजद्रोह की जो परिभाषा में कहा गया है कि जो भी सरकार के प्रति डिसअफेक्शन यानी असंतोष, नाखुशी या विरक्ति जाहिर करेगा वह राजद्रोह की श्रेणी में आएगा। इस तरह देखा जाए तो प्रावधान के तहत प्रत्येक स्पीच और अभिव्यक्ति राजद्रोह बनता है और उम्रकैद की सजा का प्रावधान है। सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगाई गई है कि इस कानून को परखा जाए और विचार अभिव्यक्ति के अधिकार, समानता का अधिकार और जीवन के अधिकार के आलोक में राजद्रोह कानून को गैर संवैधानिक करार दिया जाए।

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क्या है राजद्रोह कानून
सबसे पहले ये जानते हैं कि आखिर राजद्रोह कानून क्या है। आईपीसी की धारा-124 ए में राजद्रोह को परिभाषित किया गया है। कोई भी शख्स किसी तरह से चाहे बोलकर या लिखकर या किसी संकेत से या फिर अन्य तरीके से कानून के तहत बने सरकार के खिलाफ विद्रोह या असंतोष जाहिर करता है या सरकार के खिलाफ नफरत, अवहेलना या अवमानना करता है या कोशिश करता है तो दोषी पाए जाने पर उम्रकैद तक की सजा हो सकती है।

क्या है केदारनाथ केस में फैसला

1962 में दिए फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि हर नागरिक को सरकार के क्रिया कलाप यानी कामकाज पर कमेंट करने और आलोचना करने का अधिकार है। आलोचना का दायरा तय है और उस दायरे में आलोचना करना राजद्रोह नहीं है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने ये भी साफ किया था कि आलोचना ऐसा हो जिसमें पब्लिक आर्डर खराब करने या हिंसा फैलाने की कोशिश न हो। अगर कोई ऐसा बयान देता है जिसमें हिंसा फैलाने और पब्लिक आर्डर खराब करने की प्रवृत्ति या कोशिश हो तो फिर राजद्रोह का मामला बनेगा।

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राजद्रोह मामले में हाल के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने क्या व्यवस्था दी है

सुप्रीम कोर्ट ने 3 जून 2021 को जर्नलिस्ट विनोद दुआ के खिलाफ केस को खारिज कर दिया था और कहा था कि 1962 के केदारनाथ से संबंधित वाद में सुप्रीम कोर्ट ने जो फैसला दिया था उस फैसले के तहत हर पत्रकार प्रोटेक्शन का हकदार है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि राजद्रोह यानी आईपीसी की धारा -124 ए का जो स्कोप है उसके केदारनाथ सिंह बनाम स्टेट ऑफ बिहार के केस में व्याख्या की गई थी।



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