विपक्षी दल डाल-डाल तो पात-पात बीजेपी… विपक्षी एकता की हवा निकालने के लिए बीजेपी ने बनाया पुख्ता प्लान

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विपक्षी दल डाल-डाल तो पात-पात बीजेपी… विपक्षी एकता की हवा निकालने के लिए बीजेपी ने बनाया पुख्ता प्लान

विपक्षी दल डाल-डाल तो पात-पात बीजेपी… विपक्षी एकता की हवा निकालने के लिए बीजेपी ने बनाया पुख्ता प्लान

पटना: केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार को सत्ता से बेदखल करने के लिए विपक्ष गोलबंदी की जितनी कवायद में जुटा है, उससे कम सक्रियता बीजेपी में नहीं है। कोई अपनी रणनीति तो जल्दी जाहिर नहीं करता, लेकिन टुकड़े-टुकड़े में बाहर आती रही सूचनाओं से लगता है कि बीजेपी तीसरी बार सत्ता में लौटने के लिए अपनी तैयारी में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती। तोड़-फोड़ तो चुनाव के मौसम में हर दल या गठबंधन की स्वाभाविक क्रिया है। बीजेपी भी ये काम करेगी ही। इसके साथ बीजेपी ने इस बार जो नई रणनीति अपनाई है, उसमें एनडीए को मजबूत करने के लिए पुराने साथियों को जोड़ने की योजना भी शामिल है। उत्तर प्रदेश में ओमप्रकाश राजभर और पंजाब में अकाली दल के सुखबीर बादल को फिर से एनडीए में लाने की कोशिश हो रही है।

बिहार में पुराने साथियों को जोड़ने जुटी बीजेपी

बीजेपी उत्तर-दक्षिण और पूरब-पश्चिम में एनडीए का विस्तार कर रही है। इस क्रम में पार्टी की पहली प्राथमिकता वैसे दलों को साथ लाने की है, जो कभी एनडीए का हिस्सा रह चुके हैं। बिहार की बात करें तो उपेंद्र कुशवाहा कभी एनडीए के साथ थे। सीटों को लेकर वे 2019 के लोकसभा चुनाव के पहले एनडीए से अलग हो गए थे। जीतन राम मांझी भी एनडीए के साथ रह चुके हैं। महागठबंधन में चले गए थे, पर वे अब अलग हो चुके हैं। वीआईपी के मुकेश सहनी भी एनडीए के साथ विधानसभा का चुनाव लड़ चुके हैं। राम विलास पासवान के बेटे चिराग पासवान औपचारिक रूप से अभी एनडीए का हिस्सा नहीं हैं, लेकिन लोजपा के ही दूसरे धड़े के नेता और चिराग के चाचा पशुपति पारस एनडीए में एलजेपी कोटे से फिलहाल मंत्री हैं। बीजेपी की कोशिश है कि इन सभी दलों को एनडीए के साथ जोड़ लिया जाए। इन सभी नेताओं की समय-समय पर मुलाकात बीजेपी के शीर्ष नेताओं, खासकर गृह मंत्री अमित शाह से होती रही है। अब तो चर्चा है कि केंद्रीय मंत्रिमंडल में फेरबदल होने पर चिराग पासवान मंत्री भी बनाए जा सकते हैं।

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दक्षिण की दो पार्टियां लौट सकती हैं एनडीए में

बीजेपी की चौकस नजर दक्षिण भारत के राज्यों की उन पार्टियों पर है, जो कभी एनडीए के साथ रह चुकी हैं या एनडीए में शामिल होने का संकेत दे चुकी हैं। ऐसे नेताओं में टीडीपी (TDP) के नेता चंद्रबाबू नायडू और जनता दल सेक्युलर (JDS) के एचडी देवगौड़ा खास हैं। दक्षिण भारत में बीजेपी की स्थिति ठीक नहीं है। पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी को दक्षिण की 161 सीटों में सिर्फ 4 ही मिली थीं। कर्नाटक में बीजेपी की सरकार भी उसके हाथ से निकल गई है। तेलंगाना में केसीआर मजबूती से खड़े दिखते हैं। यही वजह है कि बीजेपी 2018 तक एनडीए के साथ रहे चंद्रबाबू नायडू को फिर वापस लाना चाहती है। नायडू कुछ दिन पहले अमित शाह से मुलाकात भी कर चुके हैं। देवगौड़ा ने भी यह कह कर नरमी दिखाई है कि देश का कोई दल ऐसा नहीं, जो कभी न कभी बीजेपी के साथ रहा हो।

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बीजेपी का दक्षिणी राज्यों में पैठ बनाना जरूरी

दक्षिण में तेलंगाना और आंध्र प्रदेश दो ऐसे राज्य हैं, जहां लोकसभा की 42 सीटें हैं। तेलंगाना में 17 सीटें और आंध्र प्रदेश में लोकसभा की 25 सीटें हैं। इनमें सिर्फ 4 सीटें बीजेपी के पास हैं। आंध्र प्रदेश में तो बीजेपी का खाता भी नहीं खुल पाया था। सिर्फ तेलंगाना में ही बीजेपी ने चार सीटें जीती थीं। टीडीपी अगर एनडीए का हिस्सा बनती है तो न सिर्फ तेलंगाना, बल्कि आंध्र प्रदेश में भी उसे मजबूती मिलेगी। कर्नाटक में तमाम ताकत झोंकने के बावजूद बीजेपी सत्ता बचाने में नाकाम रही। उसे 2018 के विधानसभा चुनाव में 36.22 प्रतिशत वोट मिले थे। इस बार भी लगभग उतनी ही हिस्सेदारी बीजेपी की रही। जेडीएस के वोटों में 5 प्रतिशत का नुकसान हुआ था और यह वोट कांग्रेस के साथ जुड़ गया। कांग्रेस को 2018 में 38.04 प्रतिशत वोट मिले थे, जो इस बार बढ़ कर 42.88 प्रतिशत हो गए। सर्वाधिक नुकसान जेडीएस का हुआ। उसका वोट शेयर 2018 के 18.36 मुकाबले 2023 में 13.29 प्रतिशत रह गया है। बीजेपी का मानना है कि अगर जेडीएस एनडीए का हिस्सा बनता है तो दोनों के सम्मिलित वोट 49 प्रतिशत से थोड़ा अधिक हो जाएंगे। यही वजह है कि बीजेपी जितनी मेहनत देश के बाकी हिस्सों में कर रही है, उससे कम दक्षिण में उसका जोर नहीं है।

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उत्तर प्रदेश व पंजाब पर भी बीजेपी का फोकस

बीजेपी पंजाब को साधने के लिए अपने पुराने साथी शिरोमणि अकाल दल को फिर से एनडीए में लाना चाहती है तो यूपी की 80 सीटों पर कामयाबी के लिए ओमप्रकाश राजभर को एनडीए का हिस्सा बनाना चाहती है। पंजाब में आम आदमी पार्टी को चुनौती देना वहां के विपक्षी दलों के लिए बड़ी चुनौती है। भाजपा के साथ यह बात शिरोमणि अकाली दल के नेताओं को भी पता है। शिरोमणि अकाली दल लगभग 25 साल एनडीए में रहा है। किसान आंदोलन के दौरान उसने एनडीए से अपने को अलग कर लिया था। अब तो कृषि बिल केंद्र सरकार ने वापस भी ले लिया है। ऐसे में अकाली दल को बीजेपी के साथ आने में अब न कोई नैतिक संकट है और न तकनीकी परेशानी। पंजाब की 13 लोकसभा सीटों पर बीजेपी की नजर है। इसलिए अकाली दल को साथ लेना उसकी मजबूरी भी है। यूपी की सभी 80 सीटें जीतने का बीजेपी ने इस बार प्लान बनाया है। बीजेपी को इसके लिए एक साथी की जरूरत महसूस हो रही है। ओमप्रकाश राजभर ने 2022 के असेंबली इलेक्शन में पूर्वांचल में अपनी क्षमता का प्रदर्शन किया था। राजभर तब समाजवादी पार्टी के साथ थे। राजभर की वजह से बीजेपी को पूर्वांचल में नुकसान उठाना पड़ा था। राजभर अब सपा के साथ नहीं हैं। राष्ट्रपति चुनाव से लेकर राज्यसभा चुनाव में राजभर एनडीए के साथ थे। इसलिए बीजेपी लोकसभा चुनाव से पहले राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी को भी एनडीए का हिस्सा बनाने का प्रयास कर रही है।

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बीजेपी ने मॉनिटरिंग के लिए तीन जोन बनाए

बीजेपी हर हाल में 2024 की चुनावी जंग जीतना चाहती है। केंद्रीय स्तर पर बनी चुनावी रणनीति का ठीक से अमल हो, इसकी मॉनिटरिंग के लिए बीजेपी ने देश को तीन जोन में बांटा है। तीनों जोन लोकसभा की कुल 543 सीटों को ध्यान में रख कर बनाए गए हैं। नॉर्थ, साउथ और ईस्ट जोन में बांटने से बीजेपी को मॉनिटरिंग में सहूलियत होगी। हर जोन के अपने हेड होंगे। जोनल हेड की बैठक अगले हफ्ते बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा करेंगे। इससे पहले सोमवार को केंद्रीय मंत्रिपरिषद की बैठक होने वाली है। मंत्रिमंडल में फेरबदल की अटकलें लग रही हैं। कुछ नए चेहरे शामिल किए जा सकते हैं तो कुछ को किनारे किया जा सकता है।
रिपोर्ट- ओमप्रकाश अश्क

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