वुहान लैब में कुछ गलत नहीं हुआ तो चीन ने क्‍यों छिपाए राज? कोरोना का असली पता ढूंढ रहे भारतीय ने पूछा

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वुहान लैब में कुछ गलत नहीं हुआ तो चीन ने क्‍यों छिपाए राज? कोरोना का असली पता ढूंढ रहे भारतीय ने पूछा

हाइलाइट्स:

  • SARS-CoV-2 कहां से आया? पता लगाने में जुटी है रिसर्चर्स की टीम
  • भुवनेश्‍वर में रहने वाला 29 साल का भारतीय युवक इस टीम का हिस्‍सा
  • ‘द सीकर’ नाम से है मशहूर, चीन की वुहान लैब से वायरस लीक का शक
  • रिसर्च पेपर्स पढ़ते-पढ़ते मिला था चीनी लैब और कोरोना का लिंक

नई दिल्‍ली
कोविड-19 वायरस कहां से आया? क्‍या यह प्राकृतिक है या फिर यह लैब में हुए किसी प्रयोग का नतीजा है? ऐसे ही कुछ सवालों के जवाब 29 साल के एक भारतीय युवक को खासा परेशान कर रहे थे। लॉकडाउन के समय वह भी बाकी लोगों की तरह ‘फिल्‍में देखता, किताबें पढ़ता और इंटरनेट चलाता था।’ मगर फिर उसके जेहन में ऐसे सवाल आने लगे। जवाब पाने की कोशिश में युवक ने खोजबीन शुरू की तो एक सर्च टीम बन गई। इस टीम को दुनिया DRASTIC (Decentralized Radical Autonomous Search Team Investigating Covid-19) के रूप में जानती है। दुनिया इस युवक का चेहरा नहीं जानती, सिर्फ स्‍क्रीन नेम जाहिर है।

‘द सीकर’ यही उस युवक की पहचान है जो कोविड-19 के रहस्‍यों से पर्दा उठाने में लगा हुआ है। 29 साल के इस युवक ने हमारे सहयोगी टाइम्‍स ऑफ इंडिया से बातचीत की। बताया कि कैसे इंटरनेट की गहराइयों से जाकर उसने ऐसे-ऐसे सबूत खोजे जिनसे पूरी दुनिया के होश उड़ गए हैं। इस बात की जांच कायदे से होने लगी है कि क्‍या यह वायरस वुहान इंस्टिट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (WIV) की लैब से निकला था।

कौन है ‘द सीकर’?
जवाब मिलता है, ‘मैं 29 साल का बंगाली लड़का हूं जो भुवनेश्‍वर में रहता है। आर्किटेक्‍चर से लेकर आंत्रप्रेन्‍योरशिप, फिल्‍ममेकिंग और पढ़ाने का अनुभव है। मैं दिल्‍ली में था, ऑडियोबुक्‍स के एक प्रॉजेक्‍ट पर काम कर रहा था फिर कोविड आ गया और सारे प्‍लान बदल गए। प्रॉजेक्‍ट बंद करना पड़ा तो मैं अपने परिवार के पास भुवनेश्‍वर आ गया।’

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लैब लीक थियरी की शुरुआत कहां से हुई?
‘द सीकर’ के अनुसार, शुरू में उन्‍हें भी लगा था कि यह सबकुछ प्राकृतिक तरीके से हुआ है। लेकिन जब वह 2013 की एक मास्‍टर्स थीसिस को देख रहे थे, तब उन्‍हें उसके RaTG13 (SARS जैसा एक और कोरोना वायरस) लिंक का पता चला। कहानी यहां से पलटती चली गई। बकौल ‘द सीकर’, ‘लुइगी वॉरेन (mRNA तकनीक के पुरोधा और DRASTIC के अहम सदस्‍य) के ट्विटर थ्रेड से इसकी शुरुआत हुई। उन्‍होंने खदानकर्मियों के बारे में जो कुछ पता और छिपा था, सब सामने रखा था। उससे मेरी उत्‍सुकता बढ़ गई और मैं चीनी एकेडमिक जर्नल्‍स खंगालने लगा।’

मोजियांग की खदान में हुई घटना का पता कैसे चला?
‘द सीकर’ के अनुसार, जब उन्‍होंने पहली बार बीमार खदानकर्मियों के बारे में सुना तो सोचा कि सब तो गूगल पर सर्च कर रहे होंगे… मैं जरा चीनी एकेडमिक पब्लिकेशंस को देखता हूं। शायद वहां कुछ मिल जाए। उन्‍होंने चीनी डेटाबेसेज में कीवर्ड्स डालने शुरू किए और एक दिन नतीजा मिल गया।

लैब में कुछ गलत नहीं तो छिपा क्‍यों रहा चीन?
29 साल के इस भारतीय युवक को लगता है कि चीन की नीयत ठीक नहीं। ‘द सीकर’ के अनुसार, समस्‍या यही है कि कभी पारदर्शिता रही ही नहीं। WIV ने चमगादड़ों में कोरोना वायरस से जुड़ा रॉ डेटा, लैबोरेटरी रिकॉर्ड्स, सैम्‍पल्‍स वगैरह अबतक शेयर नहीं किए हैं। उनके पास बैट कोरोना वायरसेज का सबसे बड़ा डेटाबेस था मगर उसे ऑफलाइन कर दिया गया। अगर उनके पास कुछ छिपाने को नहीं है और कुछ गलत नहीं हुआ है तो क्‍यों नहीं दिखाते?

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‘द सीकर’ को शक है कि वायरसेज को ठीक से हैंडल नहीं किया गया और कोई हादसा हो गया। वह फैक्‍ट्स पर जोर देकर कहते हैं, SARS जैसे कोरोना वायरस पर वहीं रिसर्च हो रहा था, जहां से वायरस फैला। वह यह पता लगा रहे थे कि ऐसे वायरस इंसानों को किस तरह संक्रमित करते हैं, उन्‍हें इसके लिए सरकारी मदद भी मिली। WIV ने जो डेटा सामने रखा है उसमें कई बातें छिपाई गई हैं, काफी डेटा मैच नहीं करता है। चीनी अधिकारी सबूतों तक पहुंचने की हर कोशिश से इनकार कर रहे हैं।

आखिर SARS-CoV-2 कैसे अस्तित्‍व में आया?
इस भारतीय युवक को लगता है कि वुहान लैब के रिसर्चर्स को मोजियांग में संक्रमितखदानकर्मियों से कोरोना का एक वेरिएंट मिला। चूंकि वहां पर छह केस थे इसलिए वहां से ऐसा कोरोना वायरस मिलना जिसका स्‍पाइक प्रोटीन इंसानी फेफड़े की कोशिकाओं से जुड़ जाए, काफी हद तक संभव था। ‘द सीकर’ के अनुसार, चीनी रिसर्चर्स ने चार साल तक खदान में सैम्‍पलिंग की। वे लगातार प्रयोग कर रहे थे। संभव है कि ऐसे ही किसी प्रयोग के दौरान SARS-CoV-2 बना हो और फिर सेफ्टी प्रोटोकॉल्‍स में चूक के चलते वह लैब से बाहर आ गया हो।

अंग्रेजी में पूरा लेख इस लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं।

वुहान की वह लैब जहां कोरोना वायरस पर चल रही थी रिसर्च (फाइल)



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