शक्ति मोहन Exclusive: डांसर बनी तो मां-बाप को सुननी पड़ीं भद्दी बातें, लोग कहते बोझ हैं बेटियां

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शक्ति मोहन Exclusive: डांसर बनी तो मां-बाप को सुननी पड़ीं भद्दी बातें, लोग कहते बोझ हैं बेटियां

शक्ति मोहन (Shakti Mohan) को बचपन से ही डांस करने का शौक था, लेकिन कभी सोचा नहीं था कि एक दिन वह इसी को करियर बनाएंगी और नई उड़ान भरेंगी। मुश्किल हालातों और लोगों के तानों का सामना करते हुए शक्ति मोहन जिस तरह आगे बढ़ीं और अपने दम पर पहचान बनाई, वह काबिलेतारीफ है। इस वक्त वह ‘डांस प्लस’ (Dance Plus 6) के छठे सीजन को लेकर चर्चा में हैं, जो डिज्नी प्लस हॉटस्टार पर हाल ही शुरू हुआ है।

जहां रेमो डिसूजा (Remo D’Souza) ‘डांस प्लस 6’ के सुपर जज हैं, वहीं शक्ति मोहन, सलमान यूसुफ खान (Salman Yusuff Khan) और पुनीत पाठक (Punit Pathak), कैप्टन की भूमिका में हैं। नवभारत टाइम्स ऑनलाइन के साथ एक्सक्लूसिव बातचीत में शक्ति मोहन ने अपने करियर के स्ट्रगल से लेकर डांस को करियर चुनने पर लोगों से मिले तानों और ‘डांस प्लस 6’ के बारे में बात की।

‘बुरी हालत थी हमारी, फिर भी पैरंट्स ने सपॉर्ट किया’

शक्ति ने बताया कि डांस को करियर चुनने पर किस तरह रिश्तेदारों ने उनके मां-बाप को ताने मारने शुरू कर दिए थे और अनाप-शनाप बातें बोलते थे। वह बोलीं, ‘मेरी फैमिली और मेरी बहनों ने तो मेरे फैसले को सपॉर्ट किया। वो लोग बहुत ज्यादा फॉरवर्ड हैं। हम आर्थिक रूप से संपन्न नहीं थे। बहुत ही बुरी हालत थी हमारी। लेकिन फिर भी घरवालों ने मुझे वही बोला कि वही करो, जिसमें खुशी मिले। कुछ भी हमारे लिए या फिर पैसों के लिए मत करो।’

‘रिश्तेदार बोलते-शो के लिए कहां- जाते हैं, क्या पता’

शक्ति मोहन ने आगे कहा, ‘लेकिन हमारे जो रिश्तेदार और आसपास के लोग थे, वो इतना सपॉर्टिव नहीं थे। उन्हें लगता था कि ये लोग क्यों नाच-गाना करे रहे हैं? हमारी फैमिली के लिए यह अच्छा नहीं है। हमारे पैरंट्स काफी ऐसे-ऐसे ताने सुनते थे। लेकिन कभी हमें नहीं बताते थे कि यह सब हो रहा है। बाद में जब रियलिटी शो जीत गए तब पैरंट्स ने बताया कि लोग ऐसे बोलते थे कि ये नाच-गाना करते हैं। कहां-कहां जाते हैं शो के लिए क्या पता…तो ऐसी-ऐसी बातें होती थीं।’


‘अपनी खुशी सबसे ज्यादा जरूरी’
शक्ति मोहन ने कहा कि किसी इंसान को वही काम करना चाहिए, जिसमें उसे खुशी मिलती है क्योंकि ‘अपनी खुशी सबसे ज्यादा जरूरी है।’ वह बोलीं, ‘बहुत सारे पैरंट्स होते हैं जो अपने बच्चे के लिए कहते हैं कि हमें डांस नहीं कराना है। डांस से अच्छा है कि इंजिनियर बन जाएं, डॉक्टर बन जाएं। मैं उनसे कहती हैं कि बहुत अच्छा है। शायद वो पैसे ज्यादा कमा लेंगे या उससे सोसाइटी में नाम जरूर हो जाएगा। पर क्या वो खुश होंगे? आप किसी को खुशी लाकर नहीं दे सकते।’

शक्ति की मानें तो अपनी खुशी को कमतर नहीं आंकना चाहिए। सोसाइटी को अचीवमेंट दिखाने से ज्यादा अपनी खुशी सबसे ज्यादा जरूरी है। अगर आपको डांस से वो खुशी मिलती है तो पूरी मेहनत और लगन से इसी में लग जाओ।’


IAS बनना चाहती थीं, ऐसे बनीं डांसर
शक्ति मोहन ‘डांस इंडिया डांस’ के दूसरे सीजन से एक कंटेस्टेंट रूप में नजर आईं थीं और आज बॉलिवुड के टॉप डांसर्स और कोरियॉग्रफर्स में शुमार हैं। ‘नृत्य शक्ति’ के नाम से उनका अपना एक डांस स्टूडियो भी है। शक्ति ने बताया कि उन्हें बचपन से ही डांस का शौक था और वही शौक उन्हें आईएएस की तैयारी से दूर डांस की दुनिया में ले आया। वह बोलीं, ‘डांस को लेकर मेरे दिल और दिमाग के बीच लड़ाई चलती थी। दिल डांस के लिए कहता था और दिमाग कहता था कि डांस में कोई फ्यूचर नहीं है। ऐसी कोई जॉब करो जिसमें पैरंट्स को सपॉर्ट कर सको।’

लेकिन शक्ति मोहन खुद को खुशकिस्मत मानती हैं कि उन्हें उनके डांस के फैसले में परिवार ने पूरा सपॉर्ट किया। आर्थिक स्थिति खराब होने के बावजूद परिवार ने उन पर किसी तरह का कोई दबाव नहीं बनाया।


‘लोग बोलते ये चल नहीं पाएगी, पापा कहते कि एक दिन उड़ेगी’
शक्ति मोहन ने आगे उस घटना के बारे में भी बताया जब 4 साल की उम्र में हुए एक ऐक्सिडेंट में उनकी टांगे और कमर बुरी तरह टूट गई थी। तब वह महीनों तक बिस्तर पर पड़ी रहीं और डॉक्टरों ने यह कह दिया था कि वह कभी चल नहीं पाएंगी। लेकिन उस वक्त भी लोग शक्ति के मां-बाप को ताने मारने और बेटियों को ‘बोझ’ बताने से बाज नहीं आए। शक्ति बोलीं, ‘जब लोग कहते कि अब यह चल नहीं पाएगी तो मेरे पापा कहते कि ये चलेगी नहीं एक दिन उड़ेगी।’


‘खूब बातें सुनाई जातीं, 4 बेटियां हैं और बोझ हैंट
शक्ति आज न सिर्फ आज अपने पैरों पर खड़ी हैं बल्कि कमाल की डांसर भी हैं और इसका क्रेडिट वह अपनी मां को देती हैं, जिन्होंने उन्हें फिर से खड़ा करने के लिए जी-जान लगा दी। शक्ति मोहन ने कहा, ‘मैं 4 साल की थी जब मेरा ऐक्सिडेंट हुआ था। मेरी टांगे और पूरी कमर पूरी टूट गई थी। पूरा प्लास्टर लगा था। 6-7 महीनों तक मैं बिस्तर पर ही थी और उठ भी नहीं सकती थी। तब डॉक्टर्स ने कह दिया था कि अब ये कभी नहीं चल पाएगी। उस वक्त मेरी मां ने हार नहीं मानीं। उन्हें खूब बातें सुनाई जातीं कि अरे 4 बेटियां हैं, बोझ हैं। ऊपर से मेरी हालत ऐसी थी तो लोगों को उस वक्त लगता था कि ये अपाहिज है। तो ऐसी बातें सुनकर मम्मी को लगता था कि इसे मुझे अब ठीक ही करना है। मम्मी ने जी-जान लगाकर मुझे खड़ा किया।’





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