संजना सांघी: अगर कोई मेरे साथ कुछ करने की कोशिश करेगा, तो मैं उसकी बैंड बजा दूंगी

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संजना सांघी: अगर कोई मेरे साथ कुछ करने की कोशिश करेगा, तो मैं उसकी बैंड बजा दूंगी

फिल्म ‘दिल बेचारा’ से बतौर लीड ऐक्ट्रेस फिल्मी डेब्यू करने वाली संजना सांघी अपनी दूसरी ही फिल्म ‘राष्ट्रकवच ओम’ में ऐक्शन करती नजर आएंगी। 13 साल की उम्र से ही ऐक्टिंग का हाथ थामने वाली संजना ने हमसे अपनी फिल्म, ऐक्शन अवतार, अपने संघर्ष, पहले हीरो सुशांत सिंह राजपूत आदि पर दिल खोलकर बातचीत की है।

‘दिल बेचारा’, ‘ओम’, ‘धक धक’, आपकी तीनों ही फिल्में एक-दूसरे से बिल्कुल अलग हैं। बिना फिल्मी बैकग्राउंड के इतनी विविधता वाले रोल तक पहुंचने के अपने सफर को कैसे देखती हैं?
मैं बीते हुए कल या आने वाले कल के बारे में इतना सोचती नहीं हूं। मैं जब जो कर रही हूं, मेरा ध्यान बस उसमें होता है। चाहे वो 12वीं के बोर्ड हों या कॉलेज की ग्रेजुएशन। दिल बेचारा या ओम। मैं जब जहां हूं तो सिर्फ वहां हूं। मैं 13 साल की उम्र से काम कर रही हूं। रॉकस्टार को आए 11 साल हो गए हैं। मैंने इस जगह (इंडस्ट्री) को बहुत अलग-अलग नजरिए से देखा है। जब मैं 16 साल की थी और ऐड या छोटे-छोटे रोल कर रही होती थी, तब और आज में बहुत अंतर है। तब लगता था कि मैं स्कूल के बीच कैंटीन में जाकर क्यों ऑडिशन भेज रही हूं मुंबई, क्योंकि मैं बीस-बीस ऑडिशन भेजती थी और मुश्किल से एक या दो सिलेक्ट होते थे और वो 18 जो रिजेक्ट होते थे, वे हर बार दिल पर तीर की तरह लगते थे। मेरी गलती ये थी कि मैं उसे पर्सनली लेती थी और उसे रिजेक्शन की तरह देखती थी। तब मेरे डैड ने समझाया कि तुम्हारे में इतनी लगन है कि तुम बार-बार खुद को प्रूव करती हो। हम एक बार इंटरव्यू देते हैं, जॉब मिल जाती है, फिर करते रहते हैं। मुझे इससे ताकत मिली तो मुझे गर्व है अपने सफर पर और उम्मीद करती हूं कि ये सिर्फ आगे बढ़े।


पहले के दौर में फिल्मों में हमेशा हीरो ही हीरोइन को बचाते थे। ओम में आप खुद ऐक्शन कर रही हैं यानी अब हमारी हीरोइनें खुद अपनी रक्षा कर सकती हैं। इस बदलाव को कैसे देखती हैं?

ये बहुत ही खूबसूरत बात है। आपने सही कहा कि पहले हमेशा लड़के ही लड़कियों को बचाते थे, पर फिल्म में काव्या खुद अपने को बचा सकती है और काव्या के जरिए मैं दुनिया की हर युवा लड़की को ये दिखाना चाहती हूं कि आप खुद की रक्षा के लिए सक्षम हैं। आपको किसी आदमी की जरूरत नहीं है। जब मैं कॉलेज में थी, तो हम सेल्फ डिफेंस की बात सुनते थे। अभी ‘ओम’ की ट्रेनिंग के बाद मुझे पता है कि अगर कोई मेरे साथ कुछ करने की कोशिश करेगा, तो मैं उसकी बैंड बजा दूंगी। मैं उम्मीद करती हूं कि ये नौबत न आए, पर ये आत्मविश्वास होना ही काफी है। मैं चाहती हूं कि हर लड़की खुद को प्रोटेक्ट कर सके।


आप हमेशा लड़के-लड़की की बराबरी की समर्थक रही हैं। आप लड़कियों के सामने सबसे बड़ी चुनौती क्या मानती हैं?
हमारी सबसे बड़ी चुनौती ये है कि हमें खुद को दो बार साबित करना पड़ता है। पहले आपको ये साबित करना पड़ता है कि एक औरत होकर भी आप यह कर सकती हैं। फिर आपको दिखाना होता है कि बतौर प्रफेशनल भी ये कर सकती हैं। जैसे हम ऐक्टर हैं, तो पहले साबित करना पड़ेगा कि लड़की होकर भी आप ऐक्शन फिल्म कर सकती हैं। फिर आपको दिखाना पड़ेगा कि ऐक्टर के तौर पर आप ऐक्शन अच्छे से कर सकती हैं। हालांकि, मुझे लगता है कि ये सोच या बाधाएं कम हो रही हैं लेकिन अभी भी है। जैसे फिल्म ‘धक धक’ के लिए तापसी पन्नू का मुझ पर भरोसा करना बदलाव है। मुझे लगता है कि हम औरतें एक-दूसरे को सपोर्ट करके औरतों के लिए ये दुनिया बदल सकती हैं और ये हो रहा है।

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क्या आपके साथ भी ऐसा हुआ है कि आपको लड़की होने की वजह से खुद को साबित करना पड़ा?
मुझे पता नहीं कि हर वो मौका जो मुझे नहीं मिला, उसकी क्या वजह थी। वो मुझे नहीं मिले, क्योंकि मैं लड़की थी या मैं किसी को जानती नहीं थी या मैं उस रोल के लिए परफेक्ट नहीं थी। आपको नहीं पता चलता क्योंकि जब एक ऑडिशन में आप सिलेक्ट नहीं होते, कोई आपको कॉल करके तो बताता नहीं है कि क्या हुआ। एक ऐक्टर जो काम की तलाश में है, उसे हम इतना भी सम्मान नहीं देते। ये मुझे बहुत गलत लगता है क्योंकि वो कई दिनों तक उस एक कॉल की राह देखते रहते हैं। बेहतर है कि उन्हें पता चल जाए कि उनका सिलेक्शन नहीं हुआ, ताकि वे इस उम्मीद में न बैठे रहे कि शायद दो महीने बाद कॉल आए, लेकिन मैं शिकायत नहीं कर सकती, क्योंकि आखिर में दिल बेचारा किजी बासु की कहानी थी और एक इंटरनैशनल स्टूडियो ने करोड़ों रुपये लगाए तो मेरा अनुभव अलग रहा है, लेकिन मैं जानती हूं कि ये सभी के लिए सच नहीं होता।

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आपकी अगली फिल्म ‘धक धक’ भी चार लड़कियों के रोड ट्रिप की कहानी है। उसका अनुभव कैसा रहा?
बहुत ही कमाल। मैंने ओम के दौरान सीखा कि तुम जो सोच लो, वो कर सकते हो। इस बात ने मुझे भरोसा दिया कि मैं 250 किलो की बाइक चला सकती हूं, दिल्ली से खारदूंगला तक। मैं बाइक चलाना सीखा। मेरे नाखून वगैरह हर रोज टूट रहे हैं, क्योंकि हम गिरते-पड़ते रहते हैं। दिल्ली की इतनी ज्यादा गर्मी में ये करना बहुत चैलेंजिंग था, पर मैं यही कह सकती हूं कि आपने ऐसा पहले कभी ऐसा नहीं देखा है। ये चार औरतों की बहुत प्यारी कहानी है।

हर ऐक्टर के लिए उसकी पहली फिल्म बहुत खास होती है, लेकिन आपका अनुभव जरा खट्टा-मीठा रहा, क्योंकि उससे पहले सुशांत को हमने खोया। आप ‘दिल बेचारा’ और सुशांत को कैसे याद करती हैं?
हमेशा प्यार और सम्मान के साथ। मुझे नहीं यकीन होता कि वो (सुशांत) यहां नहीं है, पर उन्हें और इस फिल्म को सेलिब्रेट करना हमारे फैंस के लिए कितना मायने रखता है, ये मैंने अब समझ पाई हूं। जब मैं ट्रैवल करती हूं और लड़के-लड़कियां आपका नाम चिल्लाते हैं, तब पता चलता है कि उस फिल्म ने कितने दिलों को छुआ है। मुझे तब नहीं पता चला था क्योंकि महामारी थी। सोशल मीडिया पर पता चलता है पर इतना नहीं, लेकिन अब पता चलता है कि यार, लोग तो इसके प्यार में हैं।

ऐक्शन फिल्म करना बहुत सी ऐक्ट्रेसेज का सपना होता है। आप अपनी दूसरी ही फिल्म में ऐक्शन कर रही हैं। इस रोल के लिए कितनी मेहनत करनी पड़ी?
पहले तो जब अहमद खान सर (फिल्म के निर्माता) ने 20 मिनट की स्क्रिप्ट सुनाई और कहा कि मैं चाहता हूं कि तुम लीड ऐक्ट्रेस का रोल करो, तो मैंने कहा कि बहुत अच्छा मजाक है, क्योंकि मैंने सोचा नहीं था कि मैं कभी ऐक्शन कर पाऊंगी। मैंने स्कारलेट जोहानसन, जेनिफर लॉरेंस को ऐक्शन करते देखा था, वो बहुत अलग महसूस होता था। मुझे वैसे भी खुद पर भरोसा थोड़ा कम ही है। मुझे लगता है कि मैं नहीं कर पाऊंगी। लेकिन उन्होंने मुझमें भरोसा दिखाया तो मैंने हां कह दिया और फिर भयंकर मेहनत करनी पड़ी। तीन महीने रोज घंटों हैंड टू हैंड कॉम्बैट, मिक्स मार्शल आर्ट, हथियार चलाने और फिटनेस की ट्रेनिंग ली। ऐसा लगता था जैसे हम सच में आर्मी में हैं पर बहुत सीखने को मिला। मुझे डांस की याद आती थी, क्योंकि ऐक्शन कोरियोग्राफी मुझे डांस कोरियोग्राफी जैसा ही लगा और मैं बचपन से डांसर रही हूं, तो मैंने जल्दी सीख लिया। मेरे पापा ब्लैक बेल्ट हैं और जब मैं छोटी थी, तो डैड मुझसे किक और पंचेज करवाते थे तो कहीं न कहीं ये डैड का सपना सच होने जैसा है।





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