Allahabad High court: काशी विश्वनाथ मंदिर-ज्ञानवापी मस्जिद केस में हिंदू पक्षकारों ने और समय मांगा, अब 12 अप्रैल को भी होगी बहस

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Allahabad High court: काशी विश्वनाथ मंदिर-ज्ञानवापी मस्जिद केस में हिंदू पक्षकारों ने और समय मांगा, अब 12 अप्रैल को भी होगी बहस

प्रयागराज: वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर (kashi vishwanath mandir) और ज्ञानवापी मस्जिद (gyanvapi mosque) से जुड़े मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट (allahabad high court) में शुक्रवार को सुनवाई हुई। सुनवाई के दौरान हिंदू पक्षकारों ने अपनी बची हुई बहस पूरी करने के लिए कोर्ट से और मोहलत मांगी। जिसके बाद कोर्ट ने मामले की सुनवाई 12 अप्रैल को करने का फैसला किया है।

हिंदू पक्षकारों की बहस के बाद अंजुमन ए इंतजामिया कमेटी और यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड भी अपना पक्ष रखेगा। दोनों पक्षों की बहस समाप्त होने के बाद कोर्ट में सुनवाई पूरी हो जाएगी। जिसके बाद कोर्ट जजमेंट रिजर्व कर सकती है। मामले की सुनवाई जस्टिस प्रकाश पाडिया की सिंगल बेंच में चल रही है।

जानिए क्‍या है पूरा मामला
वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर के पास ज्ञानवापी मस्जिद स्थित है। मस्जिद का संचालन अंजुमन ए इंतजामिया मसाजिद कमिटी की तरफ से किया जाता है। मुस्लिम समुदाय मस्जिद में नमाज़ भी अदा करता है। वर्ष 1991 में स्वयंभू लॉर्ड विश्वेश्वर भगवान की तरफ से वाराणसी के सिविल जज की अदालत में एक अर्जी दाखिल की गई। इस अर्जी में यह दावा किया गया कि जिस जगह ज्ञानवापी मस्जिद है, वहां पहले लॉर्ड विशेश्वर का मंदिर हुआ करता था और श्रृंगार गौरी की पूजा होती थी। लेकिन मुगल शासकों ने इस मंदिर को तोड़कर इस पर कब्जा कर लिया था और यहां मस्जिद का निर्माण कराया था। ऐसे में ज्ञानवापी परिसर को मुस्लिम पक्ष से खाली कराकर इसे हिंदुओं को सौंप देना चाहिए और उन्हें श्रृंगार गौरी की पूजा करने की इजाजत दी जानी चाहिए।

मुस्लिम पक्षकारों की दलील
मुस्लिम पक्षकारों अंजुमन ए इंतजामिया मसाजिद कमिटी और यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने स्वयंभू भगवान विशेश्वर की इस अर्जी का विरोध किया। उनकी तरफ से अदालत में यह दलील दी गई कि साल 1991 में बने सेंट्रल रिलिजियस वरशिप एक्ट 1991 के तहत यह याचिका पोषणीय नहीं है। कमिटी ने इस अर्जी को खारिज करने की मांग की।

दलील यह दी गई एक्ट में यह साफ तौर पर कहा गया है कि अयोध्या के विवादित परिसर को छोड़कर देश में किसी भी धार्मिक स्थलों की जो स्थिति 15 अगस्त 1947 को थी उसी स्थिति को बरकरार रखा जाएगा। उसमें बदलाव किए जाने की मांग वाली कोई भी याचिका किसी भी अदालत में पोषणीय नहीं होगी।

स्वयंभू भगवान विशेश्वर की दूसरी अर्जी
इसके बाद स्वयंभू भगवान विशेश्वर की तरफ से साल 1999 में एक दूसरी अर्जी दाखिल की गई जिसमें यह कहा गया कि, सुप्रीम कोर्ट की रूलिंग के तहत किसी भी मामले में जब 6 महीने से ज्यादा स्टे यानी स्थगन आदेश आगे नहीं बढ़ाया जाता है तो वह खुद ही खत्म हो जाता है। निचली अदालत में यहां के मामले में कोई स्थगन आदेश लंबे समय से पारित नहीं किया है। इसलिए यह स्टे अब खत्म हो गया है और इसे अब हिंदू पक्ष को सौंप देना चाहिए।

दोनों मुस्लिम पक्षकारों ने इसके खिलाफ भी इलाहाबाद हाई कोर्ट में अर्जी दाखिल की थी। इस अर्जी पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सुनवाई करने के बाद अपना फैसला सुरक्षित कर लिया है। हाई कोर्ट का फैसला आने से पहले ही वाराणसी की सिविल जज की अदालत में 8 अप्रैल 2021 को एक आदेश पारित कर एएसआई को विवादित परिसर की खुदाई कर यह पता लगाने का आदेश दिया कि क्या वहां पहले कोई और ढांचा था।

पांचों याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई हो रही
अंजुमन ए इंतजामिया कमिटी और यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने निचली अदालत के इस फैसले को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कई महीनों तक चली सुनवाई के बाद 9 सितंबर 2021 को अपना फैसला सुनाते हुए एएसआई से सर्वेक्षण कराए जाने के आदेश पर रोक लगा दी और आगे सुनवाई के आदेश दिए। हाईकोर्ट ने इस विवाद से जुड़ी सभी पांचों याचिकाओं को सूचीबद्ध करने का आदेश देते हुए एक साथ सुनवाई करने का फैसला किया।



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