Anti CAA Protest: रिक्शा चालक-फेरीवाले व दिहाड़ी मजदूर…पब्लिक प्रॉपर्टी को नुकसान पहुंचाने पर सबसे वसूला हर्जाना

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Anti CAA Protest: रिक्शा चालक-फेरीवाले व दिहाड़ी मजदूर…पब्लिक प्रॉपर्टी को नुकसान पहुंचाने पर सबसे वसूला हर्जाना

कानपुर/लखनऊ: देश में नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) को लेकर साल 2019 में कई जगह विरोध प्रदर्शन देखने को मिले। इसमें उत्तर प्रदेश का लखनऊ और कानपुर शहर प्रमुख रहे। 21 दिसंबर 2019 को हुए विरोध प्रदर्शन को लेकर ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ की एक विस्तृत रिपोर्ट में चौंका देने वाले खुलासे हुए हैं। शनिवार को जारी हुई इस रिपोर्ट के मुताबिक लखनऊ जिला प्रशासन ने सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वालों के खिलाफ जो कार्रवाई की उसमें उचित प्रक्रिया की अनदेखी की गई।

रिपोर्ट के मुताबिक, कानपुर में जिन 21 लोगों के यहां सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के चलते वसूली नोटिस भेजा गया है उनमें एक रिक्शा चालक, एक तांगा चालक, एक फल विक्रेता, एक मुर्गी विक्रेता, एक दूधवाला, एक युवक जो अपने पिता के कपड़े की दुकान पर काम करता है, और एक किशोर जिसने स्कूल छोड़ दिया है शामिल हैं। साथ ही इनमें आठ दिहाड़ी मजदूर हैं, जो प्रति दिन लगभग 200-250 रुपये कमाते हैं- अगर उन्हें काम मिलता है। इन सबमें सबसे छोटा 18 वर्ष का है, और सबसे वृद्ध 70 वर्ष का है।

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बताया गया कि हजरतगंज में विरोध प्रदर्शन के दौरान हुए नुकसान के लिए 46 लोगों पर कुल 64.37 लाख रुपये के वसूली नोटिस जारी करने के लिए पुलिस ने कानून में विवादास्पद ‘संयुक्त और कई दायित्व’ प्रावधानों का इस्तेमाल किया।

आधिकारिक रिकॉर्ड के अनुसार, इन सभी मे प्रत्येक ने कानपुर जिला प्रशासन को 13,476 रुपये का भुगतान किया है। इन सभी पर आरोप है कि इन्होंन 21 दिसंबर, 2019 को बेकनगंज में सीएए के विरोध प्रदर्शन के दौरान सार्वजनिक संपत्ति में तोड़फोड़ की। वहीं प्रशासन के मुताबिक जो नुकसान का ब्योरा दिया गया वह कुछ यूं है- एक सरकारी स्वामित्व वाली टाटा सूमो कीमत- 2.5 लाख रुपये, दो कैमरे, तीन खिड़कियां और दो दरवाजे जिसकी कीमत 33,000 रुपये है।

इंडियन एक्सप्रेस ने इन 21 में से 15 परिवारों का पता लगाया। जानकारी करने पर मालूम हुआ कि इन 15 परिवारों में से किसी को भी यह पता नहीं है कि पेश किए गए सरकारी ब्योरे से 2.83 लाख का आंकड़ा कैसे आया और प्रत्येक के हिस्से में 13,476 रुपये कैसे आए।

एक परिवार ने कहा कि उसने अपनी मामूली सेविंग से इस राशि का भुगतान किया। वहीं दो अन्य परिवार उनका कहना है कि उन्हें मालूम नहीं कि उनकी ओर से पैसे का भुगतान किसने किया। अन्य 12 ने कहा कि उन्होंने या तो दोस्तों या पड़ोसियों से पैसे उधार लिए थे और किसी तरह भुगतान किया क्योंकि पुलिस लगातार उन पर दबाव बना रही थी।

इस मामले में सभी 15 को जेल में डाल दिया गया था लेकिन उन्हें जमानत मिल गई थी। कोई भी परिवार अपनी पहचान बताने को तैयार नहीं है। वहीं 15 में सात के वकीलों का कहना है कि किसी ने भी वसूली नोटिस को चुनौती नहीं दी। जब नोटिस उनके घरों तक पहुंचे तो कुछ जेल में थे। उनमें से कुछ ने हमसे संपर्क करने से पहले ही भुगतान कर दिया था। इन वकीलों में से एक ने नाम न बताने की शर्त पर कहा कि इस मामले में मैं जितने भी मुवक्किलों के संपर्क में हूं, वे सभी गरीब हैं।

एक दिहाड़ीदार से जब पूछा गया कि उसने नोटिस को चुनौती क्यों नहीं दी, तो उसने कहा, ‘हम सरकार, प्रशासन और पुलिस को चुनौती नहीं देना चाहते थे। हमारे पास संसाधन नहीं हैं।’

कानपुर का मामला पुलिस द्वारा 21 में से 9 लोगों को धरना स्थल से गिरफ्तार करने के बाद बेकनगंज में दर्ज प्राथमिकी पर आधारित हैं। मामले में तत्कालीन अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट (नगर) विवेक कुमार श्रीवास्तव द्वारा सभी 21 को जारी किए गए बाद के वसूली नोटिस समान हैं।

मामले में आरोपी एक दिहाड़ी मजदूर के वकील ने कहा कि उसने 24 जनवरी, 2020 को प्रशासन द्वारा पेश किए गए सबूतों का खंडन करते हुए नोटिस का जवाब दिया था। वकील ने कहा कि प्रशासन और पुलिस द्वारा मेरे मुवक्किल की जो तस्वीरें दिखाई गईं थी वह उसकी नहीं थी। वकील ने कहा यह स्पष्ट तस्वीर नहीं थी और यह निश्चित रूप से मेरे मुवक्किल की नहीं थी। वकील ने कहा कि मेरे ऐसा कहने के बावजूद, मेरे मुवक्किल को हर्जाना देने का एक आदेश पारित किया गया।

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