Bakra Eid 2021 : कल मनाया जाएगा ईद-उल-अज़हा, जानिए चाश्त की नमाज का समय, मुस्लिम गुरुओं ने कहा- रखे कोविड प्रोटोकॉल का खयाल

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    Bakra Eid 2021 : कल मनाया जाएगा ईद-उल-अज़हा, जानिए चाश्त की नमाज का समय, मुस्लिम गुरुओं ने कहा- रखे कोविड प्रोटोकॉल का खयाल

    हाइलाइट्स

    • देशभर में बुधवार को मनाया जाएगहा ईद का त्यौहार
    • कोरोना के चलते कोविड प्रोटोकॉल के पालन की हुई अपील
    • अजमेर काजी ने बताया चाश्त की नमाज का समय

    जयपुर
    इस्लाम मजहब में कुर्बानी का पर्व मनाए जाने वाले ईद-उल-अज़हा का त्यौहार बुधवार 21 जुलाई को बनाया जाएगा। मीठी ईद यानी ईद-उल-फितर के 70 दिन बाद मनाए जाने वाले इस त्यौहार को लेकर दुनियाभर में तैयारी की जा रही है। वहीं देश- प्रदेश में भी लोग त्यौहार के स्वागत के लिए तैयार है,लेकिन कोरोना संकट काल के चलते कई जगह इस साल भी इसे सेलिब्रेट करने के तरीके में तब्दीली आई है। इधर कोरोना संकट के चलते राजस्थान सरकार ने सामूहिक आयोजनों पर रोक लगा रखी है, लिहाजा मुस्लिम धर्मगुरू भी लोगों से घरों में ही नमाज करते हुए ईद-उल-अज़हा मनाने की अपील कर रहे हैं।

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    अजमेर ख्वाजा दरगाह से की गई अपील
    विश्व प्रसिद्ध अजमेर ख्वाजा साहब की दरगाह से शहर काजी तौसीफ अहमद सिद्दीकी ने मुस्लिम धर्मावलंबियों से घर में रहकर ही इबादत करने व ईद मानने की अपील की है। साथ ही उन्होंने चाश्त की नमाज सुबह 6 बजकर 15 मिनट से 11 बजकर 50 मिनट तक पूरे राजस्थान में अदा की जाएगी। उन्होंने आगे कहा कि ईद उल अजहा पर कुर्बानी होगी। सभी अपने अनुसार कुर्बानी करें और साफ सफाई का विशेष ध्यान रखें जिससे इस बीमारी से बचा जा सके।

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    बकरा ईद का क्या है महत्व
    इस्लाम धर्म में बकरीद लोगों को सच्चाई की राह में अपना सब कुछ कुर्बान कर देने का संदेश दिया जता है। इस त्योहार को मनाने का कारण हजरत इब्राहिम की कुर्बानी है, जिन्हे याद करते हुए इस पर्व को मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि हजरत इब्राहिम अल्लाह के हुकुम पर अपनी वफादारी दिखाने के लिए अपने बेटे इस्माइल की कुर्बानी देने को तैयार हो गए थे। जब हजरत इब्राहिम अपने बेटे को कुर्बान करने के लिए आगे बढ़े , तो अल्लाह ने उनकी निष्ठा को देखते हुए इस्माइल की जगह दुंबे को रख दिया , जिससे कुर्बानी इस्माइल की नहीं बल्कि दुंबे की हुई। तब से ही यह प्रथा चालू हो गई और इस दौरान कुर्बानी के रूप में बकरा या फिर दुंबे की कुर्बानी दी जाने लगी।

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