भारत की पहली महिला कुली हैं मेहनत के जज़्बे की मिसाल

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कहते हैं कि औरत एक मर्द से ज़्यादा मज़बूत और कुशल होती है. आज जब हर जगह नारीवाद और महिला सशक्तिकरण की बात हो रही है, ऐसे में जबलपुर की एक महिला इस बात को सच साबित करने में लगी हुई है. दरअसल हम बात कर रहे हैं संध्या मरावी की. संध्या के जज़्बे को देखकर आप सोचने पर मजबूर हो जाएंगे कि शायद यही असली सशक्तिकरण है.

नारी तेरा हर रूप निराला

मध्यप्रदेश के जबलपुर के पास कटनी जंक्शन पर काम करने वाली संध्या मरावी पेशे से कुली हैं. ये भी कयास लगाया जा रहा है कि वो ना सिर्फ मध्य प्रदेश बल्कि देश की भी पहली महिला कुली हैं. 30 वर्षीया संध्या के पति की साल 2016 में मौत हो गयी थी. संध्या के पति भी कुली थे और उनके जाने के बाद बच्चों का लालन-पालन मुश्किल हो गया. अक्सर ऐसा भी हुआ कि उन लोगों को कई दिन तक खाना नही मिला. अपने बच्चों की दुर्दशा और परेशानियां देखकर संध्या ने जनवरी 2017 में अपने पति की जगह पर काम करना शुरू कर दिया.

आपको जानकार शायद हैरानी हो कि संध्या जबलपुर से 45 किलोमीटर दूर कुंदम में रहती हैं. काम के लिए वो रोज़ जबलपुर आती हैं और उसके बाद लगभग 100 किलोमीटर दूर कटनी जंक्शन का सफ़र तय करती हैं. इतना लंबा सफ़र और घर परिवार की जिम्मेदारियों के कारण संध्या ने रेलवे से उनका ट्रान्सफर जबलपुर जंक्शन पर करने के लिए अर्ज़ी लगायी है. लेकिन अब तक सम्बंधित विभाग का ध्यान इस तरफ नही गया है.

sandhya marawi -

जंक्शन पर मौजूद 40 पुरुष कुलियों के बीच वो अकेली महिला कुली हैं. काम शुरू करने के बाद से ही संध्या अपने साथी पुरुष सहयोगियों की तरह ही कंधे और सिर पर सामान उठाकर ले जाती हैं.

परिवार की पालनहार भी, गर्व भी

संध्या के परिवार में उनके तीन बच्चे और एक सास हैं. उनका बड़ा बेटा साहिल 8 साल का है और छोटा बेटा हर्षित 6 साल का है. संध्या की बेटी पायल 4 साल की है और वो अपने तीनों बच्चों को उच्च शिक्षा देना चाहती हैं. संध्या कहती हैं कि अगर मेरी मेहनत से मेरे बच्चे पढ़-लिख गए तो वो एक बेहतर भविष्य बना लेंगे. संध्या की सास को भी उनपर गर्व है. संध्या की सास ने कहा, मुझे बेटे के जाने का दुःख तो हुआ मगर मेरी बहू मेरे लिए बेटे से कम नही है.

ऎसी महिलाओं और उनके जज़्बे को हमारा सलाम है. हम तो यही दुआ करेंगे कि सरकार संध्या की जल्द से जल्द हर संभव मदद करे.