Corona Vaccine Update: मेसेज भी आया, स्लॉट भी मिला… लेकिन जब सेंटर पर पहुंचे तो कह दिया कि वैक्सीन नहीं है
हाइलाइट्स:
- कोरोना की दूसरी लहर ने मचाया कहर, जंग जारी
- वैक्सीन तो लग रही, लेकिन हर जगह स्थिति एक जैसी नहीं
- कुछ सेंटर से लोगों को बिना वैक्सीन लगवाए ही वापस लौटना पड़ रहा
नई दिल्ली
कोरोना की दूसरी लहर ने कहर मचा रखा है। देश में कोरोना के खिलाफ जंग जारी है और इसके खिलाफ अबतक के सबसे बड़े हथियार यानी कोरोना वैक्सीन का इस्तेमाल भी पूरी ताकत के साथ किया जा रहा है। अब तो देश में 18+ लोगों को भी वैक्सीन लगने लग गई है। आपने भी ऐसी तमाम तस्वीरें देखी होंगी जिसमें लोग कोरोना की वैक्सीन लगवा रहे हैं, लेकिन हर जगह स्थिति एक जैसी नहीं है।
कई जगहों पर वैक्सीन का शेड्यूल तय होने के बाद, कन्फर्मेशन का मेसेज आने के बाद भी वैक्सीन नहीं लग पा रही है क्योंकि अस्पताल में वैक्सीन उपलब्ध नहीं है। ऐसे में लोगों के पास निराश होकर घर लौटने के सिवा कोई दूसरा चारा भी नहीं है। हमारे सहयोगी भारत मल्होत्रा भी आज कोरोना वैक्सीन लगवाने अपनी मां के साथ गए, लेकिन अफसोस कि उन्हें भी निराश होकर बिना वैक्सीन लगवाए ही लौटना पड़ा। भारत मल्होत्रा ने अस्पताल से लौटने के बाद अपनी आपबीती शेयर की है जिसे आपको भी पढ़ना चाहिए….
”नया साल कोरोना वायरस के खिलाफ जंग में वैक्सीन के रूप में आशा की नई किरण लेकर आया है- अपनी बारी आने पर वैक्सीन जरूर लगवाएं। आप किसी को भी फोन मिलाएं तो यह आवाज सुनाई देती है, लेकिन अपने साथ वैक्सीन का अनुभव बहुत खराब रहा। ऐसा नहीं कि वैक्सीन लगाने वालों का व्यवहार ठीक नहीं था। असल में वैक्सीन लग ही नहीं पाई। टाइम और अस्पताल का नाम कन्फर्म करने के बावजूद।
वैक्सीन तो लगवानी ही थी पर इस समय जब कोरोना के मामले लगातार बढ़ रहे हैं तो बाहर जाने से बच रहा था। बड़ी हिम्मत करके मैंने आखिर वैक्सीन लगवाने का इरादा किया। मां को भी मनाया। आरोग्य सेतु ऐप के जरिए बुकिंग की कोशिश की। कुछ प्रयासों के बाद नजदीक के एक अस्पताल में बुकिंग हो गई। टाइम सिलेक्ट किया। आखिर में कन्फर्म का और फिर शेड्यूल का मेसेज आ गया। यानी आप इस वक्त, इस अस्पताल में टीका लगवाने आ सकते हैं।
आज सुबह कैब बुक की और सेंटर पर पहुंचा। बाहर बैठे गार्ड ने कहा कि वैक्सीन अभी नहीं लग रही। मुझे हैरानी हुई कि बुकिंग तो यहीं की है। खैर, उससे बात करने के बाद अस्पताल में अंदर गया। वहां गेट पर एक स्टाफ ने कहा कि सर नहीं है वैक्सीन। मन फिर नहीं माना। मैंने मां को वहीं गेट पर छोड़ा और खुद अंदर रिसेप्शन पर जाकर पूछने का फैसला किया। हर कदम पर डर लग रहा था। हालांकि गेट पर चिपके कागज पर लिखा था- नॉन कोविड पेशेंट के लिए एंट्री। पर दिल में दहशत थी। डरते-डरते रिसेप्शन पर पहुंचा। वहां बैठी महिला ने उसी बात को दोहराया- वैक्सीन नहीं है।
अब हैरानी यकीन में बदल गई। मैंने उसे मेसेज दिखाया। उसने भी हामी भरी कि अस्पताल यही है, पर वैक्सीन नहीं है। अब किससे बहस की जाती। मां दरवाजे पर खड़ी थी और अस्पताल में रुकने का जोखिम मैं और ज्यादा नहीं लेना चाहता था। इसलिए बिना ज्यादा बहस किए लौट आया।
गुस्सा तो बहुत आया। पर आप गुस्से के सिवाय और कर क्या सकते हैं। कुछ नहीं। हालात पर। सिस्टम पर। लोगों के रवैये पर। डिजिटल इंडिया पर। अब अगले कुछ दिन डर में गुजरेंगे। अस्पताल जो होकर आए हो। पता नहीं क्या हो गया हो। मां की सेहत को लेकर भी टेंशन बनी रहेगी। डर…बस यही अब साथी है। डरकर रहिए, घर पर रहिए। बाहर के हालात का कोई वारिस नहीं…”
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