जानें दिल्ली सल्तनत काल में गद्दारों को क्या सजा मिलती थी
इतिहासकारों के मत के अनुसार 1206 ईं. से 1526 ईं. तक भारत पर शासन करने वाले पाँच वंशों के सुल्तानों के शासनकाल को दिल्ली सल्तनत या सल्तनत-ए-हिन्द/सल्तनत-ए-दिल्ली कहा जाता है.ये पाँच वंश थे- गुलाम वंश (1206 – 1290), ख़िलजी वंश (1290- 1320), तुग़लक़ वंश (1320 – 1414), सैयद वंश (1414 – 1451), तथा लोदी वंश (1451 – 1526)। इनमें से पहले चार वंश मूल रूप से तुर्क थे और आखरी अफगान था. आज हम बात करते हैं कि दिल्ली सल्तनत में गद्दारों को क्या सजा मिलती थी. उसके लिए सबसे पहले हम ये जानते हैं कि उस समय की न्याय व्यवस्था क्या थी
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न्याय एवं दण्ड व्यवस्था-
मुस्लिम कानून के चार स्त्रोत हैं-
इस्लामी कानूनों की व्यवस्था करने वाले विधिवेत्ता मुजदहीद अथवा विधि शास्त्री कहलाते हैं.
कुरान- यह मुस्लिम कानूनों का प्रमुख स्त्रोत है.
हदीस- इसमें पैगंबर के कथनों एवं कार्यों का उल्लेख है.
इजमा- मुजतहिद द्वारा व्याख्या किया गया कानून अल्लाह की इच्छा का ही रूप माना जाता है। कानून के इस स्त्रोत को इजमा कहा जाता है.
कयास- तर्क अथवा विश्लेषण के आधार पर कानून की व्याख्या.
ये चार कानून तो मुख्य होते थे, इनके अलावा भी कानून बने हुये थे, जो इस प्रकार हैं-
सामान्य कानून- ये कानून केवल मुस्लमानों के ऊपर ही लागू होते थे.परंतु व्यापार आदि के मामले में मुस्लमानों तथा गैर मुस्लमानों दोनों पर समान रूप से लागू होते थे.
देश का कानून- देश का कानून स्थानीय कानून होता था तथा उसका आदर किया जाता था.
फौजदारी कानून- यह कानून हिन्दू एवं मुस्लमान दोनों के लिए बराबर था.
गैर मुस्लमानों का व्यक्तिगत तथा धार्मिक कानून- सुल्तान हिन्दुओं के सामाजिक मामलों में न्यूनतम हस्तक्षेप करते थे। और उनके मुकदमों का निर्णय उनकी अपने में विद्वान पंडित तथा ब्राह्मणों द्वारा किया जाता था.
दिल्ली सुल्तान मुकदमों का निर्णय काजियों और मुफ्तियों की सहायता से करता था. प्रांतीय गवर्नर भी इसे के अनुरूप न्याय करते थे. काजी एवं मुफ्ती का पद वंशानुगत होता था.
अधिकारी-
काजी-ए-सूबा- दीवानी फौजदारी विभाग का अधिकारी
दीवान-ए-सूबा- राजस्व मामले
फिकह- इस्लामी धर्मशास्त्र (Reference : https://www.indiaolddays.com/)
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अगर हम बात करें की दिल्ली सल्तनत काल में गद्दारों को क्या क्या सजा मिलती थी. तो आपको बता दे वैसे इस काल में जो सजा प्रचलित थी,वो बहुत कठोर थी. अपराध की गंभीरता को देखते हुए क्रमशः मृत्युदण्ड, अंग-भंग एवं सम्पत्ति को हड़पने का दण्ड दिया जाता था. जहां तक गद्दारों की बात करें तो यह एक बहुत गंभीर अपराध समझा जाता था. इसके लिए मृत्युदण्ड तथा अंग-भंग जैसी सजा दी जाती थी.
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