India China Border Row : कैलाश रेंज से हटकर भारत ने कर दी गलती? फिर से आंखें दिखाने लगा चीन

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India China Border Row : कैलाश रेंज से हटकर भारत ने कर दी गलती? फिर से आंखें दिखाने लगा चीन

नई दिल्ली
भारत और चीन के बीच 13वें दौर की सैन्य वार्ता न केवल बेनतीजा रही बल्कि बातचीत के बाद दोनों तरफ से काफी कड़े बयान जारी हुए। भारत ने जहां चीन पर पूर्वी लद्दाख के बाकी इलाकों से सैनिकों की वापसी को लेकर अनिच्छुक रहने का आरोप लगाया, वहीं चीन ने भारत पर ही अड़ियल रुख अख्तियार करने का आरोप मढ़ दिया। चीनी सेना पीपल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) के बयान से स्पष्ट समझा जा सकता है कि वो पैंगोंग सो-कैलाश रेंज और भारत के लिए महत्वपूर्ण गोगरा पोस्ट के पास पेट्रोलिंग पोस्ट -17ए (PP-17A) से इतर अन्य जगहों से अपने सैनिकों की वापसी को बिल्कुल इच्छुक नहीं है।

चीनी सेना पीपल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) के वेस्टर्न थिएटर कमांड के प्रवक्ता सीनियर कर्नल लॉन्ग शाओहुआ ने कहा कि भारत अपनी अतार्किक और अवास्तविक मांगों पर अड़ा है जिससे बातचीत में पेरशानियां खड़ी हुईं। उन्होंने कहा, ‘हालात का गलत आकलन करने के बजाय भारत को सीमाई इलाकों में हुए साकारात्मक बदलाव की खुशी मनानी चाहिए।’

रक्षा विशेषज्ञों ने जताई थी चिंता
ऐसे में यह चिंता फिर उभरने लगी है कि भारत को कैलाश पर्वतश्रृंखला की चोटियों से अपने सैनिकों की वापसी पर सहमत नहीं होना चाहिए था क्योंकि यह उसे चीन पर बढ़त दिला रहा था। जब कैलाश रेंज हाइट्स से भारतीय सैनिकों की वापसी पर सहमति की खबरें आईं तभी विभिन्न रक्षा विशेषज्ञों ने चिंता जाहिर की थी और भारत के इस कदम को अदूरदर्शी बताया था। उनका मानना है कि सिर्फ पैंगोंग झील से सैनिकों की वापसी की डील के लिए भारत को कैलाश रेंज हाइट्स नहीं छोड़ना चाहिए बल्कि अपनी इस बढ़त का इस्तेमाल चीन को पूर्वी लद्दाख के उन सभी इलाकों से उसके सैनिकों की वापसी को मजबूर करने के लिए किया जा सकता है जहां-जहां उसने अतिक्रमण किया है।

नई दिल्ली स्थित सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च (CPR) में सामरिक विषयों के प्रफेसर ब्रह्म चेलानी ने फरवरी में न्यूज एजेंसी पीटीआई-भाषा को दिए इंटरव्यू में कैलाश रेंज पर भारतीय सैनिकों के कब्जे का महत्व बताया था। उन्होंने कहा, ‘पूर्वी लद्दाख में गतिरोध की स्थिति में कैलाश रेंज ने हमें लाभ की स्थिति प्रदान की है। हमें समझना होगा कि इस गतिरोध में चीन अब उस स्थिति में पहुंच गया था जहां उसे कोई लाभ की स्थिति नहीं दिखाई दे रही थी। ऐसे में कैलाश रेंज से पीछे हटने के बाद हमारी लाभ की स्थिति और मोलतोल की ताकत कम हो जाएगी।’

उन्होंने कहा था, ‘अब तक भारत, चीन के आक्रामक रवैये के खिलाफ खड़ा रहा है और उसने दिखाया है कि युद्ध की पूरी तैयारी के साथ भारत हिमालय की सर्दियों के मुश्किल हालातों में भी डटा रह सकता है। ऐसे में बड़े मुद्दों का हल तलाश करने की जगह अपनी मुख्य ताकत कैलाश रेंज से पीछे हटने से भारत की मोलतोल की ताकत कमजोर होगी। अभी देपसांग सहित कई ऐसे इलाकों को लेकर कोई निर्णय नहीं हुआ है जहां गतिरोध बरकरार है।’

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चीन के साथ भारत की डील में एक और खामी

रक्षा विशेषज्ञ इस बात को लेकर भी चिंता जता रहे हैं कि भारत ने चीन के साथ जो डील की है, उसमें ज्यादातर बफर जोन वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) के भारतीय इलाकों में ही बनाए गए हैं। साफ है कि गलवान घाटी में पेट्रोलिंग पॉइंट्स 14 और गोगरा के पास पेट्रोलिंग पॉइंट्स 17ए और पेंगोंग झील इलाकों में भारतीय सैनिक भी पेट्रोलिंग नहीं कर पाएंगे जिसे भारत अपना इलाका मानता है।

जांबाजों ने दिलाई थी बढ़त
भारतीय सैनिकों को पिछले वर्ष 29-30 अगस्त को कैलाश रेंज हाइट्स पर कब्जा करने में बड़ी कामयाबी हासिल हुई थी। तब चीन की अक्ल ठिकाने आ गया और उसने छठे और सातवें दौर की सैन्य वार्ताओं के दौरान कैलाश रेंज को खाली करने का मुद्दा ही उठाता रहा था। वह भारत पर यथास्थिति बदलने का आरोप लगाते हुए कहता रहा कि उसने (चीन ने) देसपांग और पेंगोंग झील में अपने सैनिक भेजकर सिर्फ 1959 क्लेम लाइन तक अपने इलाके को ही सुरक्षित किया है।

लेकिन, भारत ने उसे स्पष्ट शब्दों में कहा कि वह 1959 क्लेम लाइन को नहीं मानता है और चीन ने वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर यथास्थिति को एकतरफा बदलकर 1993 के समझौते का उल्लंघन किया है। भारत ने कहा कि जहां तक बात कैलाश रेंज की है तो भारतीय सैनिक आगे जरूर बढ़े हैं लेकिन उन्होंने एलएसी का अतिक्रमण नहीं किया है। भारत ने साफ कर दिया कि उसके सैनिकों ने कैलाश रेंज पर इसलिए मोर्चा संभाला है ताकि चीनी सैनिक वहां भी कोई दुस्साहस करने की कोशिश न करें।

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कैलाश रेंज पर कब्जे से बिलबिला गया था चीन
दरअसल, कैलाश रेंज एक ऐसा इलाका है जहां से 1959 क्लेम लाइन गुजरती है जो भारत को चीन पर बड़ी रणनीतिक बढ़त देती है। भारत को 1962 युद्ध के बाद से पहली बार यहां अपना कब्जा जमाने में सफलता मिली थी। इस कारण देपसांग, हॉट स्प्रिंग्स-गोगरा और उत्तरी पेंगोंग झील पर नियंत्रण करने के बावजूद चीन को भारत पर बढ़त नहीं रह सकी। कैलाश रेंज का महत्व इस बात से भी समझा जा सकता है कि 1962 के युद्ध में भी दोनों सेनाओं ने इस पर कब्जे की लड़ाई लड़ी थी, लेकिन किसी को सफलता नहीं मिली थी।

कैलाश रेंज हिमालय के सबसे ऊंचे और सबसे ऊबड़-खाबड़ हिस्सों में से एक तिब्बत के दक्षिण-पश्चिमी भाग में लैंगक्वेन नदी या सतलज नदी के उत्तर मेंस्थित है। कैलाश पर्वतश्रृंखला का विस्तार उत्तर पश्चिम से लेकर दक्षिण पूर्व तक है। इसकी पूर्वी सीमा डैमकोग नदी है जो भारत में ब्रह्मपुत्र नदी या चीन में यारलुंग का स्रोत है। इन दोनों के बीच में मापम झील है, जिसकी ऊंचाई समुद्र तल से करीब 4,557 मीटर है। इस झील के उत्तर में माउंट कैलाश है जिसकी ऊंचाई करीब 6.714 मीटर है, तिब्बत में इसे गंग तिसे कहा जाता है जो कैलाश रेंज की सबसे ऊंची चोटी है।

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कैलाश रेंज छोड़ने का खामियाजा?
बहरहाल, भारतीय सेना ने पीएलए के साथ 13वें दौर की बातचीत के बाद जारी बयान में कहा, ‘बातचीत के दौरान भारतीय पक्ष ने बाकी के क्षेत्रों में मुद्दों के समाधान के लिए सकारात्मक सुझाव दिए, लेकिन चीनी पक्ष उनसे सहमत नहीं लगा और वह आगे बढ़ने की दिशा में कोई प्रस्ताव भी नहीं दे सका। इसलिए बैठक में बाकी के क्षेत्रों के संबंध में कोई समाधान नहीं निकल सका।’

ध्यान रहे कि देपसांग बुल्ज एरिया में कई जगहों पर भारत और चीन के सैनिक अड़े हुए हैं। पीएलए भारतीय सैनिकों को पिछले साल से ही अपने पारंपरिक पेट्रोलिंग पॉइंट्स पीपी-10, 11, 11ए, 12 और 13 के साथ-साथ देमचॉक सेक्टर में ट्रैक जंक्शन चार्डिंग निंगलुंग नाला (CNN) तक जाने नहीं दे रही है। चीनी सैनिकों ने इन इलाकों के रास्ते रोक रखे हैं। स्वाभाविक है कि भविष्य में भी इन इलाकों को खाली करने पर चीन के साथ बात नहीं बनी तो भारत सरकार की तरफ इस बात को लेकर उंगली जरूर उठेगी कि उसने पहले अपना इलाका खाली करवाने के बजाय कैलाश रेंज हाइट्स पर कब्जे की रणनीतिक बढ़त क्यों खो दी।



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