India vs China: चीन और रूस से कन्नी काट रही दुनिया, 600 अरब डॉलर के मार्केट में भारत बनेगा सुपरपावर!
ब्रिटेन की सैटेलाइट कंपनी वनवेब एक ग्लोबल ब्रॉडबैंड इंटरनेट नेटवर्क बनाना चाहती है। इसलिए हाल में सैटेलाइट्स के सफल प्रक्षेपण वह इस दिशा में एक कदम और आगे बढ़ गई है। दूसरी ओर इसने स्पेस बिजनस में भारत की महत्वाकांक्षा का भी संकेत दिया है। स्पेस से हाई स्पीड इंटरनेट डिलीवर करने की मांग तेजी से बढ़ रही है। इससे ऑर्बिट में सैटेलाइट लॉन्च करने का बिजनस तेजी से बढ़ रहा है। ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के मुताबिक की स्पेस एजेंसी एरियनस्पेस को अपने नया रॉकेट तैयार करने में मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। दूसरी ओर ब्रिटेन के अरबपति रिचर्ड ब्रैनसन की कंपनी वर्जिन ऑर्बिट होल्डिंग्स लिमिटेड ने पिछले हफ्ते घोषणा की थी कि वह अपना ऑपरेशन अनिश्चितकाल के लिए बंद कर रही है। जनवरी में उसका एक लॉन्च फेल हो गया था।
चीन से बढ़ रही दूरी
स्पेस रिसर्च एंड कंसल्टिंग फर्म Northern Sky Research के प्रिंसिपल एनालिस्ट डलास कासाबोस्की के मुताबिक अगर आपके लिए स्पेसएक्स महंगा है तो आप चीन की तरफ नहीं देख सकते हैं। चीन नॉर्थ अमेरिका के साथ काम नहीं कर सकता है और ज्यादातर डिमांड अमेरिका से ही है। राजनीतिक रूप से भारत कहीं बेहतर है। कई सैटेलाइट ऑपरेटर के लिए चीन के रॉकेट सही विकल्प नहीं हैं। इसकी एक वजह यह भी है कि चीन वेस्टर्न टेक्नोलॉजी चुरा सकता है। दूसरी ओर भारत का अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया तथा जापान जैसे दूसरे देशों के करीब आ चुका है। साथ ही भारत में सैटेलाइट भेजने का खर्च दूसरे देशों में मुकाबले कहीं कम है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मेक इन इंडिया कार्यक्रम में स्पेस सेक्टर को विकसित करने पर काफी तवज्जो दी जा रही है। इसका मकसद भारत को टेक्नोलॉजिकल इनोवेशन में टॉप डेस्टिनेशन बनाना है। स्पेस सेक्टर में स्टार्टअप कंपनियों को भी प्रोत्साहित किया जा रहा है। न्यूस्पेस के चेयरमैन और एमडी डी राधाकृष्णन ने कहा कि डिमांड बहुत ज्यादा है। आने वाले समय में हेवी लिफ्ट लॉन्चर की भारी कमी हो सकती है। न्यूस्पेस इसरो की कमर्शियल कंपनी है जिसका गठन 2019 में किया गया था। यह कंपनी भारत को ग्लोबल स्टेज पर कंप्टीशन में मदद कर रही है। कंपनी देश के सबसे बड़े रॉकेट एलएमवी3 के प्रॉडक्शन में तेजी ला रही है। 2025 तक भारत के सैटेलाइट लॉन्च सर्विसेज की वैल्यू करीब दोगुना होकर एक अरब डॉलर पहुंच सकती है। न्यूस्पेस 52 इंटरनेशनल कस्टमर्स को सर्विसेज देती है।
भारत के पास मौका
हालांकि चीन से मुकाबला करने के लिए भारत को अभी लंबा सफर तय करना है। मार्च 2020 में अर्थ ऑर्बिटिंग सैटेलाइट्स में चीन की हिस्सेदारी 13.6 फीसदी थी जबकि भारत की हिस्सेदारी 2.3 फीसदी थी। सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स के मुताबिक पिछले साल चीन ने 64 लॉन्च किए थे। चीन की अधिकांश कंपनियां अभी अपना रॉकेट डेवलप कर रही हैं। मार्च, 2022 में चीन की स्टार्टअप कंपनी GalaxySpace ने छह सैटेलाइट भेजे थे जबकि जनवरी में Galactic Energy ने पांच सैटेलाइट अंतरिक्ष में पहुंचाए थे। दूसरी ओर भारत ने केवल पांच लॉन्च किए थे। ये सभी सैटेलाइट इसरो ने लॉन्च किए थे। 2013 में भारत ने मंगल पर एक मिशन भेजा था जिसकी कीमत उसी साल भेजे गए नासा के एक प्रोब की तुलना में महज 10 फीसदी थी। जानकारों का कहना है कि कम ही देशों के पास भारत के बराबर सस्ती टेक्नोलॉजी है।
हैदराबाद की स्टार्टअप (Startup) कंपनी स्काईरूट एयरोस्पेस (Skyroot Aerospace) ने पिछले साल एक बड़ी उपलब्धि हासिल की थी। यह सफलतापूर्वक रॉकेट लॉन्च करने वाली देश की पहली निजी कंपनी है। स्काईरूट ने पहले ही प्रयास में यह सफलता हासिल की। उसकी योजना इस साल 2023 में एक सैटेलाइट को पृथ्वी की कक्षा में स्थापित करने की है। कंपनी का कहना है कि वह स्थापित लॉन्च कंपनियों से आधी कीमत पर यह काम करेगी। कंपनी का कहना है कि सैटेलाइट के लॉन्च के लिए प्रति किलोग्राम कॉस्ट 10 डॉलर तक नीचे लाई जा सकती है जो अभी हजारों डॉलर है। अगर ऐसा हुआ तो यह कंपनी मस्क की कंपनी को कड़ी टक्कर दे सकती है।