क्या आपको पता है मुलायम सिंह यादव और मायावती कैसे बन गए थे एक दूसरे के दुश्मन ?

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क्या आपको पता है मुलायम सिंह यादव और मायावती कैसे बन गए थे एक दूसरे के दुश्मन ?

प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए मायावती गेस्ट हाउस कांड का जिक्र करना नहीं भूलीं और उन्होंने कहा कि देशहित और जनहित में उन्होंने इस गठबंधन को उस कांड पर तरजीह दी है |

मायावती ने कहा, “1993 विधानसभा चुनावों में भी दोनों दलों के बीच गठबंधन हुआ था और तब सपा-बसपा ने हवाओं का रुख़ बदलते हुए सरकार बनाई थी. हालाँकि ये गठबंधन कुछ गंभीर कारणों से लंबे समय तक नहीं चल सका था. देशहित और जनहित को 1995 के लखनऊ गेस्ट कांड के ऊपर रखते हुए राजनीतिक तालमेल का फ़ैसला किया है.”

क्या है गेस्ट हाउस कांड जिसकी वजह से दुश्मनी हुई थी ?

लेकिन लखनऊ के गेस्ट हाउस में ऐसा क्या हुआ था जिससे दोनों पार्टियों की दोस्ती अचानक दुश्मनी में बदल गई | इसे समझने के लिए क़रीब 28 बरस पहले झांकना होगा. उत्तर प्रदेश की राजनीति में साल 1995 और गेस्ट हाउस कांड, दोनों बेहद अहम हैं |

उस दिन ऐसा कुछ हुआ था जिसने न केवल भारतीय राजनीति का बदरंग चेहरा दिखाया बल्कि मायावती और मुलायम के बीच वो खाई बनाई जिसे लंबा अरसा भी नहीं भर सका.

दरअसल, साल 1992 में मुलायम सिंह यादव ने समाजवादी पार्टी बनाई और इसके अगले साल भाजपा का रास्ता रोकने के लिए रणनीतिक साझेदारी के तहत बहुजन समाज पार्टी से हाथ मिलाया | सपा और बसपा ने 256 और 164 सीटों पर मिलकर चुनाव लड़ा. सपा अपने खाते में से 109 सीटें जीतने में कामयाब रही जबकि 67 सीटों पर हाथी का दांव चला. लेकिन दोनों की ये रिश्तेदारी ज़्यादा दिन नहीं चली.

Politics fight -

साल 1995 की गर्मियां दोनों दलों के रिश्ते ख़त्म करने का वक़्त लाईं. इसमें मुख्य किरदार गेस्ट हाउस है. इस दिन जो घटा उसकी वजह से बसपा ने सरकार से हाथ खींच लिए और वो अल्पमत में आ गई.

भाजपा, मायावती के लिए सहारा बनकर आई और कुछ ही दिनों में तत्कालीन राज्यपाल मोतीलाल वोहरा को वो चिट्ठी सौंप दी गई कि अगर बसपा सरकार बनाने का दावा पेश करती है तो भाजपा का साथ है |

वरिष्ठ पत्रकार और उस रोज़ इस गेस्ट हाउस के बाहर मौजूद रहे शरत प्रधान ने बीबीसी को बताया कि वो दौर था जब मुलायम यादव की सरकार थी और बसपा ने समर्थन किया था लेकिन वो सरकार में शामिल नहीं हुई थी | साल भर ये गठबंधन चला और बाद में मायावती की भाजपा के साथ तालमेल की ख़बरें आईं जिसका ख़ुलासा आगे चलकर हुआ. कुछ ही वक़्त बाद मायावती ने अपना फैसला सपा को सुना दिया |

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उन्होंने कहा, ”इस फैसले के बाद मायावती ने गेस्ट हाउस में अपने विधायकों की बैठक बुलाई थी. सपा के लोगों को किसी तरह इस बात की जानकारी मिल गई कि बसपा और भाजपा की सांठ-गांठ हो गई है और वो सपा का दामन छोड़ने वाली है.” प्रधान ने कहा, ”जानकारी मिलने के बाद बड़ी संख्या में सपा के लोग गेस्ट हाउस के बाहर जुट गए. और कुछ ही देर में गेस्ट हाउस के भीतर के कमरे में जहां बैठक चल रही थी, वहां मौजूद बसपा के लोगों को मारना-पीटना शुरू कर दिया. ये सब हमने अपनी आंख़ों से देखा है.”

”तभी मायावती जल्दी से जाकर एक कमरे में छिप गईं और अंदर से बंद कर लिया. उनके साथ दो लोग और भी थे. इनमें एक सिकंदर रिज़वी थे. वो ज़माना पेजर का हुआ करता था. रिज़वी ने मुझे बाद में बताया कि पेजर पर ये सूचना दी गई थी कि किसी भी हालत में दरवाज़ा मत खोलना.”

”दरवाज़ा पीटा जा रहा था और बसपा के कई लोगों की काफ़ी पिटाई. इनमें से कुछ लहूलुहान हुए और कुछ भागने में कामयाब रहे. ”

प्रधान के मुताबिक तब बसपा के नेता सूबे के वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को फ़ोन कर बुलाने की कोशिश कर रहे थे लेकिन तब किसी ने फ़ोन नहीं उठाया |

जब मायावती कमरे में छिपी थीं

Mayawati Guest House Kand -

‘इस बीच मायावती जिस कमरे में छिपी थीं, सपा के लोग उसे खोलने की कोशिश कर रहे थे और बचने के लिए भीतर मौजूद लोगों ने दरवाज़े के साथ सोफ़े और मेज़ लगा दिए थे ताकि चटकनी टूटने के बावजूद दरवाज़ा खुल न सके.”

वरिष्ठ पत्रकार राम दत्त त्रिपाठी उत्तर प्रदेश में खेले गए इस सियासी ड्रामे के तार दिल्ली से जोड़ते हैं. उनका कहना है कि साल 1992 में जब बाबरी मस्जिद तोड़ी गई, तो काफ़ी झटका लगा था. उसके बाद 1993 में सपा-बसपा ने भाजपा को रोकने के लिए हाथ मिलाने का फ़ैसला किया और अपनी पहली साझा सरकार बनाई. मुलायम मुख्यमंत्री बने.

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उस वक़्त दिल्ली में नरसिम्हा सरकार थी और भाजपा के दिग्गज नेता अटल बिहारी वाजपेयी थे. दिल्ली में इस बात की फ़िक्र होने लगी थी कि अगर लखनऊ में ये साझेदारी टिक गई तो आगे काफ़ी दिक्कतें हो सकती हैं | इसलिए भाजपा की तरफ़ से बसपा को पेशकश की गई कि वो सपा से रिश्ता तोड़ लें तो भाजपा के समर्थन से उन्हें मुख्यमंत्री बनने का मौक़ा मिल सकता है.

”मुलायम को इस बात का अनुमान हो गया था और वो चाहते थे कि उन्हें सदन में बहुमत साबित करने का मौक़ा दिया जाए. लेकिन राज्यपाल ने ऐसा नहीं किया.”

कौन बचाने पहुंचा था माया को ?

Kashiram and Mayawati -

”इसी खींचतान के बीच अपनी पार्टी के विधायकों को एकजुट रखने के लिए बसपा ने सभी को स्टेट गेस्ट हाउस में जुटाया था और मायावती भी वहीं पर थीं. तभी सपा के लोग नारेबाज़ी करते हुए वहीं पहुंच गए थे.”

बसपा का आरोप है कि सपा के लोगों ने तब मायावती को धक्का दिया और मुक़दमा ये लिखाया गया कि वो लोग उन्हें जान से मारना चाहते थे. इसी कांड को गेस्ट हाउस कांड कहा जाता है ऐसा भी कहा जाता है कि भाजपा के लोग मायावती को बचाने वहां पहुंचे थे लेकिन शरत प्रधान का कहना है कि इन दावों में दम नहीं है कि भाजपा के लोग मायावती और उनके साथियों को बचाने के लिए वहां पहुंचे थे.

उन्होंने कहा, ”मायावती के बचने की वजह मीडिया थी. उस वक़्त गेस्ट हाउस के बाहर बड़ी संख्या में मीडियाकर्मी मौजूद थे. सपा के लोग वहां से मीडिया को हटाने की कोशिश कर रहे थे लेकिन ऐसा हो न सका.”

”कुछ ऐसे लोग भी सपा की तरफ़ से भेजे गए थे जो समझाकर मायावती से दरवाज़ा खुलवा सके, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया.”

मायावती का आरोप, हत्या करना चाहते थे

Mayawati Attak on guest House -

इसके अगले रोज़ भाजपा के लोग राज्यपाल के पास पहुंच गए थे कि वो बसपा का साथ देंगे सरकार बनाने के लिए. और तब कांशीराम ने मायावती को मुख्यमंत्री पद पर बैठाया. और यहीं से मायावती ने सीढ़ियां चढ़ना शुरू कीं क्या मायावती ने कभी खुलकर इस दिन के बारे में बताया कि असल में उस दिन क्या हुआ था, प्रधान ने कहा, ”जी हां, कई बार. मुझे दिए इंटरव्यू में या फिर प्रेस कॉन्फ़्रेंस में उन्होंने ख़ुद कहा कि उनका ये स्पष्ट मानना है कि उन्हें उस दिन मरवाने की साज़िश थी जिससे बसपा को ख़त्म कर दिया जाए.”

”मायावती को सपा से इतनी नफ़रत इसलिए हो गई क्योंकि उनका मानना है कि गेस्ट हाउस में उस रोज़ जो कुछ हुआ, वो उनकी जान लेने की साज़िश थी. ”