Lipulekh Pass Dispute : भारत के लिपुलेख प्लान पर फिर नेपाल में क्यों मचा है घमासान?

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Lipulekh Pass Dispute : भारत के लिपुलेख प्लान पर फिर नेपाल में क्यों मचा है घमासान?

हाइलाइट्स

  • उत्तराखंड के लिपुलेख एरिया में सड़क को चौड़ा करने की है भारत की योजना
  • नेपाल के सत्ताधारी और विपक्षी दलों बोले- हमारी संप्रभुता को कम ना आंके भारत
  • नेपाल ने नक्शा जारी कर लिम्पियाधुरा, कालापानी और लिपुलेख पर किया था दावा

नई दिल्ली
लिपुलेख पास एक बार फिर से चर्चा में है। इस चर्चा की वजह है भारत सरकार का उत्तराखंड के इस इलाके में सड़क को चौड़ा करने की योजना। भारत की इस योजना पर पड़ोसी देश नेपाल में हंगामा मचा हुआ है। स्थिति यह है कि नेपाल के सत्ताधारी के साथ ही विपक्षी दल भी भारत से नेपाल की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता को कमजोर नहीं करने की बात कह रहे हैं।

नेपाल ने फिर लिपुलेख, लिंपियाधुरा और कालापानी किया दावा
नेपाल ने चीन से सटे ट्राई-जंक्शन के पास लिपुलेख, लिंपियाधुरा और कालापानी क्षेत्र पर फिर से अपना दावा किया है। इतना ही नहीं अपने दावे को सही ठहराने के लिए पहले एक नया राजनीतिक नक्शा भी जारी किया था। हैरानी की बात है कि नेपाल की गठबंधन वाली सरकार पिछले महीनेपीएम नरेंद्र मोदी सड़क के विस्तार को लेकर बयान पर अब तक चुप्पी साधे थी। अब नेपाल की सत्ताधारी पार्टी नेपाली कांग्रेस ने बयान जारी कर कहा है कि सड़क का और विस्तार करने का भारत का निर्णय आपत्तिजनक था।

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भारत से सैनिकों को तुरंत वापस बुलाने की मांग
नेपाली कांग्रेस ने भारत से इस क्षेत्र से अपने सैनिकों को तुरंत वापस बुलाने की बात कही है। बयान में कहा गया है कि नेपाली कांग्रेस का मानना है कि कि लिपुलेख, लिंपियाधुरा और कालापानी नेपाली क्षेत्र हैं। नेपाल को इस भूगोल का उपयोग करने का अधिकार होना चाहिए। कालापानी में तैनात भारतीय सैनिकों को वापस किया जाना चाहिए। वहीं, पीएम मोदी ने 30 दिसंबर को हल्द्वानी में एक सार्वजनिक कार्यक्रम में कहा था कि भारत ने टनकपुर-पिथौरागढ़ ऑल वेदर रोड पर काम करने के अलावा लिपुलेख तक सड़क का निर्माण भी किया है और इसका विस्तार किया जा रहा है।

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नेपाल के साथ रिश्तों में आई दरार?
चीन के साथ ट्राई-जंक्शन के पास लिपुलेख दर्रे के लिए सड़क के निर्माण ने हाल में भारत और नेपाल के बीच सबसे खराब राजनयिक संकटों में से एक को जन्म दिया है। भारत सरकार ने यह सुनिश्चित किया है कि सड़क केवल कैलाश मानसरोवर यात्रा के तीर्थयात्रियों के लिए पूर्व-मौजूदा मार्ग का अनुसरण करती है। वर्तमान परियोजना के तहत, जैसा कि सरकार ने पहले कहा था, तीर्थयात्रियों, स्थानीय लोगों और व्यापारियों की सुविधा के लिए उसी सड़क को चलने योग्य बनाया गया है।

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नेपाल का दावा पर भारत का है नियंत्रण
भले ही यह क्षेत्र भारत के प्रशासनिक नियंत्रण में है लेकिन नेपाल उत्तराखंड में लिपुलेख और कालापानी क्षेत्र पर अपना दावा करता है। एक अन्य सत्तारूढ़ दल, सीपीएन (यूनिफाइड सोशलिस्ट) ने इस सप्ताह के शुरू में एक बयान में कहा था कि नेपाल सरकार से सलाह के बिना क्षेत्र में कोई भी विकास कार्य पूरी तरह से अवैध है। यह हमारी क्षेत्रीय अखंडता और राष्ट्रीय संप्रभुता का घोर उल्लंघन है।

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नेपाल के ऐतराज के बाद चर्चा में आया था लिपुलेख
लिपुलेख साल 2020 में तब चर्चा में आया था जब नेपाल ने यहां भारत की बनाई 80 किलोमीटर की सड़क पर एतराज जताया था। उत्तराखंड में लिपुलेख दर्रे को धारचूला से जोड़ने वाली 80 किलोमीटर लंबी रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण सड़क आठ मई, 2020 को खोली गई थी। इसके बाद भारत और नेपाल के बीच द्विपक्षीय संबंध तनावपूर्ण हो गए थे। नेपाल ने अपने यहां नया नक्शा पास कर विवाद बढ़ा दिया था। इसमें कालापानी, जिसमें लिपुलेख भी शामिल था उसे अपना हिस्सा बताया था।

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भारत ने व्यक्त की थी तीखी प्रतिक्रिया
भारत ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए इसे ‘एकपक्षीय कार्रवाई’ बताया था। साथ ही काठमांडू को चेताया था कि क्षेत्रीय दावों का ऐसा ‘कृत्रिम विस्तार’ उसे स्वीकार्य नहीं होगा। भारत ने भी नवंबर 2019 में एक नया मानचित्र प्रकाशित किया था जिसमें इन क्षेत्रों को उसका हिस्सा दर्शाया गया। लिपुलेख पास वही इलाका है जहां से भारत ने मानसरोवर यात्रा के लिए नया रूट बनाया था। एलएसी पर चीन के साथ तनाव के बीच चीन ने अपने करीब एक हजार से अधिक सैनिक लिपुलेख में भी तैनात कर दिए थे।

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31 साल पुराने समझौते को भूल रहा नेपाल
नेपाल वास्तव में इस बात को नजरअंदाज कर रहा है कि भारत और चीन के बीच हुए समझौते के मुताबिक लिपुलेख साल 1991 के बाद से ही दोनों देशों के बीच सीमा पर कारोबार का माध्यम रहा है। दिसंबर 1991 में चीन के तत्कालीन प्रधानमंत्री ली पेंग की भारत यात्रा में दोनों देशों ने सीमा पर व्यापार बहाल करने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। इसमें आपसी सहमति से लिपुलेख को बॉर्डर ट्रेडिंग पॉइंट बनाया गया था। अगले साल जुलाई 1992 में भारत-चीन ने सीमा पर कारोबार के लिए प्रोटोकॉल फॉर एंट्री एंड एक्जिट प्रोसीजर पर हस्ताक्षर किए थे। इसमें भी लिपुलेख को आपसी सहमति से बॉर्डर ट्रेडिंग पॉइंट बनाया गया था। हैरानी की बात है कि नेपाल नें 1990 के दशक से इन समझौतों पर कभी आपत्ति नहीं जताई थी।

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