मुजफ्फरपुर: सपनों को पंख लगते समय ज्यादा समय नहीं लगता, कुछ ऐसा ही बिहार के मुजफ्फरपुर के मोहम्मद नाज के साथ हुआ है. जी हां, एमटेक के बाद लाखों रुपए की नौकरी छोड़कर नाज अपने गांव आ गया क्योंकि वो अपनेपनों को पूरा करना चाहता था.
बता दें कि शुरुआत में गांव वालों ने उनका मजाक उड़ाया लेकिन अब उन्हें अपने बेटे पर खूब गर्व है. मुजफ्फरपुर के मोहम्मद नाज ने एक मिसाल पेश की है. उन्होंने प्लास्टिक से पर्यावरण को मुक्त करने का संकल्प लिया था. काफी लंबे वक्त के बाद अब उन्होंने मक्के के छिलके से झोला, कप-प्लेट और तिरंगा तक बनाया है, ताकि वह पर्यावरण की रक्षा कर सकें और प्लास्टिक का विकल्प ढूंढ निकाला.
बता दें कि मोहम्मद नाज को पूसा एग्रिकल्चर कॉलेज के वैज्ञानिक का भी साथ मिला था. मोहम्मद नाज ने पहले पपीता, बांस, केला और मक्का पर शोध किया और उसके बाद वह इस परिणाम पर पहुंचे की प्लास्टिक के विकल्प के लिए मक्के का छिलका सबसे सही और उपयुक्त है.
आपको बता दें कि इस खबर के माध्यम से इस प्रोडक्ट की जानकारी डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद सेंट्रल एग्रीकल्चर यूनिवरसिटी पूसा के वैज्ञानिकों को मिली और वह चीफ साइंटिस्ट डॉक्टर मृत्युंजय कुमार मोहम्मद नाज से मिलने उनके निवास पहुंचे. जाँच के बाद डॉक्टर मृत्युंजय ने प्रोडक्ट के साथ कॉलेज बुलाया.
मीडिया से नाज ने बातचीत के दौरान कहा है कि एक किताब में मैंने पढ़ा था कि आज से 50 साल बाद समुद्र में मछलियों से अधिक प्लास्टिक की थैली उपलब्ध होगी. मैंने संकल्प लिया है कि कोई ऐसा प्रोडक्ट तैयार करूंगा जो प्लास्टिक कि जगह ले सकें.
वहीं डॉ. मृत्युंजय ने कहा है कि मक्का बिहार की मुख्य फसल है. बिहार में करीब आठ लाख हेक्टयर में मक्के कि खेती की जाती है. इस खेती से किसानों को काफी अधिक फायदा भी हुआ था. वहीं अगर मक्के से कोई आसन समान बनाया जाए जो पर्यावरण को सुरक्षित रख सकें और साथ ही साथ कई नौकरियां का अवसर लाए जिससे आमदनी बढ़ने का मौका मिलें तो इससे अच्छी बात और क्या हो सकती है.