NPS घोटाला : फिर आंदोलन की तैयारी में प्रदेश के चिकित्सा शिक्षक, जानिए पूरा मामला | patients wil trouble 2 months in AIIMS and hamidia for doctors holiday | Patrika News

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NPS घोटाला : फिर आंदोलन की तैयारी में प्रदेश के चिकित्सा शिक्षक, जानिए पूरा मामला | patients wil trouble 2 months in AIIMS and hamidia for doctors holiday | Patrika News

प्रधानमंत्री कार्यालय से सीएम हेल्पलाइन में ट्रांसफर हुई शिकायत को भी दबाया।

भोपाल

Published: April 13, 2022 01:03:15 pm

भोपाल. मध्य प्रदेश के सरकारी चिकित्सा महाविद्यालयों के चिकित्सा शिक्षक एक बार फिर आंदोलन की तैयारी कर रहे हैं। 2018 से इनके नेशनल पेंशन स्कीम (एनपीएस) फंड के नाम पर हर साल 54 करोड़ की गड़बड़ी हो रही है।

NPS घोटाला : फिर आंदोलन की तैयारी में प्रदेश के चिकित्सा शिक्षक, जानिए पूरा मामला

अब तक यह राशि करीब 300 करोड़ की हो चुकी है। विभागीय अफसर प्रधानमंत्री कार्यालय से मिले निर्देशों का पालन करने के बजाय शिकायत को ही दबा कर बैठ गए। चिकित्सा शिक्षकों का कहना है कि, जल्द ही एनपीएस खाता खोलकर की जा रही कटोती को जमा किया जाए। मालूम हो कि पत्रिका ने ही इस गड़बड़ी का खुलासा किया था।

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नया खाता खोलने के बजाय सिर्फ बदला नाम

एनपीएस के नाम पर हर महीने मूल वेतन की 10 फीसदी राशि काटी जा रही है। प्रदेश में करीब तीन हजार चिकित्सा शिक्षक हैं, जिनके वेतन से हर साल 27 करोड़ 20 लाख रुपए काटे जा रहे हैं। 2018 से अब तक करीब एक अरब 40 करोड़ रुपए काटे जा चुके हैं। नियम के मुताबिक इतनी ही राशि सरकार को जमा करनी थी। इस हिसाब से अब तक 2 अरब 80 करोड़ रुपए से ज्यादा रुपए जमा होने थे। प्रोग्रेसिव मेडिकल टीचर्स एसोसिएशन के सचिव डॉ. राकेश मालबीय का आरोप है कि एनपीएस की राशि के लिए हर एक मेडिकल टीचर्स का प्रान नंबर जनरेट कर मुबई स्थित बैक ऑफ इंडिया में एनपीएस अकाउंट खोला जाता है। लेकिन, विभाग ने पहले इस राशि को डीन के खाते में जमा कर दिया, विवाद बढ़ा तो डीन के नाम से एनपीएस नाम का खाता खोल दिया गया। उनका खाता तो खुला ही नहीं।

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क्या कहते हैं जिम्मेदार?

प्रोग्रेसिव मेडिकल टीचर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ. सुनील अग्रवालका कहना है कि, वर्ष 2005 से चक्रवृद्धि ब्याज से पैसे जमा करना है, लेकिन अब तक कुछ नहीं कर रहे। अगर विभाग कुछ नहीं करता है तो हमें एक बार फिर अपने हक के लिए लड़ना पड़ेगा। यह मामला 2005 से लंबित है। यह विभाग में बैठे आईएएस अफसरों की कारगुजारी का नतीजा है।

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