Orchha : ओरछा में रामनवमी पर होगा भव्य दीपोत्सव, 5 लाख दीपों से जगमगाएगी राम राजा सरकार की नगरी, जानिए क्यों खास है यह मंदिर

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Orchha : ओरछा में रामनवमी पर होगा भव्य दीपोत्सव, 5 लाख दीपों से जगमगाएगी राम राजा सरकार की नगरी, जानिए क्यों खास है यह मंदिर

निवाड़ी : अयोध्या की तर्ज पर धार्मिक नगरी ओरछा में रामनवमी के दिन रामलला के जन्मोत्सव पर बेतवा के घाटों को 5 लाख दीपों से सजाया जाएगा। जिला प्रशासन ने इसकी तैयारियां शुरू कर दी है। ओरछा में रामनवमी पर भव्य दीपोत्सव मनाया जाना हैं (Grand Deepotsav will be held on Ram Navami in Orchha)। इसके अलावा मंदिर में भगवान की जन्म आरती और बधाई गीतों का आयोजन होगा। सुबह के समय भव्य शोभायात्रा निकाली जाएगी, यूं तो श्रीराम जन्मोत्सव पूरे देश में मनाया जाता है, पर ओरछा में इसका दोहरा महत्व है।

संवत 1631में ओरछा की महारानी कुंअर गणेश ने रामनवमी को रामराजा सरकार को अयोध्या से ओरछा लाकर यहां राजा के रुप में विराजमान कराया था।
बुंदेला शासकों की नगरी ओरछा का रामरामराजा मंदिर देश का इकलौता मंदिर है, जहां राम लला राजा के रुप में विराजित हैं। यहां भक्त और भगवान के बीच राजा और प्रजा का संबंध है। यह देश का एकमात्र मंदिर ऐसा है, जहां पर राजा के रूप में राम राजा सरकार को तीनों समय सशस्त्र सलामी दी जाती है। यही नहीं इस मंदिर में पुरानी राजसी परंपराओं का भी पालन होता है।
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बैठे जिनकी गोद में मोद मान विश्वेश, अवधपुरी से ओरछा ल्याई अवध नरेश
राम राजा सरकार मंदिर के प्रधान पुजारी पंडित रमाकांत शरण महाराज पौराणिक मान्यताओं का उल्लेख करते हुए बताते है, कि संवत् 1631 में तत्कालीन बुंदेला शासक महाराजा मधुकर शाह की पत्नी महारानी कुअंर गणेश भगवान राम को अयोध्या से ओरछा लाई थीं। राजा कृष्ण उपासक थे और रानी राम। रानी और राजा दोनों में अपने इष्ट की उपासना को लेकर मतभेद रहते थे। एक दिन ओरछा नरेश मधुकर शाह ने अपनी पत्नी कुंअर गणेश से कृष्ण उपासना के इरादे से वृंदावन चलने को कहा। लेकिन रानी तो राम की भक्त थीं। उन्होंने वृंदावन जाने से मना कर दिया। गुस्से में आकर राजा ने उनसे यह कहा कि तुम इतनी राम भक्त हो तो जाकर अपने राम को ओरछा ले आओ। इसके बाद रानी ने अयोध्या पहुंचकर सरयू नदी के किनारे लक्ष्मण किले के पास अपनी कुटी बनाकर साधना आरंभ की। रानी को कई महीनों तक राम के दर्शन नहीं हुए। वह निराश होकर अपने प्राण त्यागने सरयू की मझधार में कूद पड़ीं। यहीं जल की अतुल गहराइयों में उन्हें बाल रूपी राम के दर्शन हुए।

सशर्त अयोध्या आए राम लला

राम लला (बाल रूपी राम) को अपनी गोद में आया देख महारानी अभिभूत हो गईं। उन्होंने राम से ओरछा चलने का आग्रह किया। तब मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने ओरछा जानें तीन शर्तें रखीं। पहली वे स्वयं वहां के राजा होंगे, यानी उन्हीं की सत्ता होगी। दूसरी राजशाही पूरी तरह से खत्म हो जाए और तीसरी अपने राज्य का अधिक विस्तार नहीं होने देंगे। इससे भी बड़ी शर्त यह थी कि वे ओरछा तक का सफर रानी की गोद में ही करेंगे। रानी उन्हें जिस स्थान पर गोद से उतार देंगी, वहीं वे बैठ जाएंगे। लंबे सफर को देखते हुए रानी ने पुख्खों-पुख्खों यानी पुष्य नक्षत्र में यात्रा करने की ठानी और राजा को यह संदेश भेज कर कि वे राजा राम को लेकर ओरछा आ रही हैं, पुष्य नक्षत्र में ओरछा के लिए रवाना हो गईं।

एक ऐसा मंदिर जहां राम विराजे ही नहीं

रानी का संदेश मिलते ही राजा मधुकर शाह ने राम राजा के विग्रह को स्थापित करने के लिए चतुर्भुज मंदिर बनवाना शुरु किया। मंदिर भव्य बन रहा था, इसलिये उसमें समय भी लग रहा था। रानी की राम के प्रति लगन को देखते हुए इस तरह मंदिर बनवाया जा रहा था कि रानी सुबह जैसे ही अपनी आंखें खोलें शयन कक्ष से ही उन्हें राम के दर्शन हो जाएं। पुख्खों -पुख्खों चलते हुए रानी संबत 1631 चैत्र शुक्ल नवमी को ओरछा पहुंचीं। मंदिर का निर्माण कार्य उस समय अंतिम चरणों में था। इस पर रानी ने राम लला की मूर्ति अपने महल की रसोई में रख दी। यह निश्चित हुआ कि शुभ मुहूर्त में मूर्ति को चतुर्भुज मंदिर में रखकर इसकी प्राण प्रतिष्ठा की जाएगी। मंदिर तैयार हुआ। मुहुर्त भी निकला लेकिन, राम के इस विग्रह ने चतुर्भुज जाने से मना कर दिया। क्‍योंकि राम की यह शर्त थी कि वह जहां बैठ जाएंगे, वहां से नहीं उठेंगे। राम वहां से उठे नहीं और उनके लिए बनाया गया चतुर्भुज मंदिर खाली रह गया। यह मंदिर आज भी उसी अवस्था में है।
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… और राजा मधुकर शाह ने त्याग दिया राज
चूंकि राम स्वयं राजा थे और ओरछा जाने की पूर्व शर्त भी यही थी, इसलिए राम के यहां स्थापित होते ही मधुकर शाह अपना राज छोड़ कर टीकमगढ़ चले गए और ओरछा के सरकार यानी राजा के रुप में ख्यात हुए भगवान राम। शास्त्रों में वर्णित है कि आदि मनु-शतरूपा ने हजारों वर्षों तक शेषशायी विष्णु को बाल रूप में प्राप्त करने के लिए तपस्या की तो विष्णु ने उन्हें प्रसन्न होकर आशीष दिया और त्रेता में राम, द्वापर में कृष्ण और कलियुग में ओरछा के रामराजा के रूप में अवतार लिया।

राम राजा को तीनों पहर दी जाती है सशस्त्र सलामी

ओरछा में भगवान राम राजा के रूप में विराजमान हैं, इसलिए उन्हें तीनों पहर पुलिस के जवानों द्वारा सशस्त्र सलामी दी जाती है। उनके अलावा ओरछा परिकोटा के अंदर आने वाले किसी भी विशिष्ट या अतिविशिष्ट व्यक्ति को पुलिस गार्ड ऑफ ऑनर नहीं देती। देश के प्रधानमंत्री से लेकर कई अतिविशिष्ट व्यक्ति कई बार ओरछा आए लेकिन उन्हें सलामी नहीं दी गई। ओरछा के राम राजा सरकार के सामने, प्रजाजन समान सभी लोग नतमस्तक होते हैं।
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रामराजा सरकार के आगमन का मनाया जाता है उत्सव

राम राजा सरकार के अयोध्या से ओरछा आगमन का उत्सव मनाने की अनूठी परम्परा यहां कई शताब्दियों से चल रही है। उत्सव की यह परंपरा इसलिए क्योंकि पांच सौ वर्ष पूर्व ओरछा की महारानी कुंअरि गणेश अयोध्या से श्री राम के विग्रह को लेकर संत-समाज के साथ पदयात्रा करते हुए नवमी पुष्य नक्षत्र में ओरछा पहुंची थीं। और राम लला को यहां राजा के रूप में प्रतिस्थापित किया था। भक्तों की पदयात्रा की परंपरा ओरछा में आज भी कायम है। हर साल नवमी पुष्य नक्षत्र को एक भव्य शोभा यात्रा निकाली जाती है और लाखों श्रद्धालु पैदल चलकर राम राजा सरकार के दरबार में पहुंचते हैं।

एक मान्यता यह भी

मान्यता है कि जब राम वनवास जा रहे थे तो उन्होंने अपनी एक बाल मूर्ति मां कौशल्या को दी थी। मां कौशल्या उसी को बाल भोग लगाया करती थीं। जब राम अयोध्या लौटे तो कौशल्या ने वह मूर्ति सरयू नदी में विसर्जित कर दी। यही मूर्ति कुअरि गणेश को सरयू की मझधार में मिली थी। यह विश्व का अकेला ऐसा मंदिर है जहां राम की पूजा राजा के रूप में होती हैं। साथ ही यही एकमात्र मंदिर ऐसा है जहां राम और उनके भक्तों के बीच राजा और प्रजा जैसा संबंध है।

शयन आरती पश्चात हनुमान जी को सौंपी जाती है ज्योति

ओरछा में राजा राम तो अयोध्या में अपने बाल रूप में विराजमान हैं। जनश्रुति है कि श्रीराम दिन में ओरछा तो रात्रि में अयोध्या विश्राम करते हैं। रामराजा सरकार के दो निवास है। खास दिवस ओरछा रहता है, सयन अयोध्या वास। शयन आरती के पश्चात उनकी ज्योति हनुमान जी को सौंपी जाती है, जो रात्रि विश्राम के लिए उन्हें अयोध्या ले जाते हैं।

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