श्री रामायण जी की आरती की रचना गोस्वामी तुलसीदास जी ने की थी. यह एक संगीतमय प्रार्थना है. इस आरती को रामचरितमानस के एक अंश पूरा होने या संपूर्ण पाठ होने के किया जाता है. इस आरती में रामचरितमानस की महिमा की प्रशंसा की गई है.
आरती श्री रामायण जी की।
कीरति कलित ललित सिय पी की॥
गावत ब्रहमादिक मुनि नारद।
बाल्मीकि बिग्यान बिसारद॥
शुक सनकादिक शेष अरु शारद।
बरनि पवनसुत कीरति नीकी॥
आरती श्री रामायण जी की ॥
चारों वेद पुराण अष्टदस ।
छओं शास्त्र सब ग्रंथन को रस॥
मुनि जन धन संता को सरबस
सार अंश सम्मत सब ही की ।
आरती श्री रामायण जी की ॥
गावत संतत शंभु भवानी।
अरु घटसंभव मुनि बिग्यानी ॥
ब्यास आदि कबिबर्ज बखानी।
कागभुशुंडि गरुड़ के ही की॥
कलिमल हरनि बिषय रस फीकी।
सुभग सिंगार मुक्ति जुबती की ॥
दलनि रोग भव मूरि अमी की।
तात मातु सब बिधि तुलसी की॥
आरती श्री रामायण जी की ॥
श्री रामायण जी की आरती में सबसे ज्यादा बार की का प्रयोग हुआ है. अगर आप भी रामचरितमासन का पाठ करते हैं, तो उसके एक अंश के पूरा होने के बाद या संपूर्ण पाठ के बाद श्री रामायण जी की आरती करें. इस आरती की रचना तुलसीदास द्वारा की गई थी.
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रामचरितमानस में भगवान राम की कथा का वर्णन किया गया है. जिसमें भगवान राम को वनवास हो जाता है. वहां सीता माता भी उनके साथ जाती है. जिसके बाद सीता माता को छल से रावण उठा ले जाता है. इसके बाद श्रीरामचंद्र से रावण का वध कर सीता माता को सकुशल वापस ले आते हैं.