काशी में महादेव का ऐसा मंदिर, जहाँ न होती है पूजा, न बजता है घड़ियाल

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Ratneshwar Temple Of Lord Shiva
Ratneshwar Temple Of Lord Shiva

कहते हैं जब किसी को कहीं चैन नहीं मिलता है तो वह काशी आता है। वैसे तो काशी का नाम बनारस और वाराणसी है लेकिन जब बात धार्मिक होती है तो इसे काशी कहके ही पुकारा जाता है। काशी को मंदिरों का शहर भी कहा जाता है। यहाँ आपको एक से बढ़कर एक मंदिर देखने को मिल जायेंगे। लोग देश विदेश से यहाँ दर्शन के लिए आते हैं।

भगवान शिव की प्रिय नगरी काशी को माना जाता है।यहाँ पर विशेश्वर खंड में अंश-अंश झुकता रत्नेश्वर महादेव का मंदिर विराजमान है। इस मंदिर के बारें में चौकाने वाली बात यह है कि सावन के महीने में भी रत्नेश्वर महादेव मंदिर में ना तो बोल बम के नारे गूंजते हैं और ना ही घंटा घड़ियाल की आवाज सुनाई देती है। महाश्मशान के पास बसा करीब तीन सौ बरस पुराना यह दुर्लभ मंदिर आज भी लोगों के लिए आश्चर्य ही है।

इस मंदिर में कोई नहीं करता पूजा

मणिकर्णिका घाट के पास दत्तात्रेय घाट पर स्थित ऐतिहासिक शिव मंदिर रत्नेश्वर महादेव तीन सौ सालों से अधिक का इतिहास समेटे हुए हैं।

स्थानीय लोगों की मानें तो यह मंदिर श्रापित होने के कारण ना ही कोई भक्त यहां पूजा करता और ना ही मंदिर में विराजमान भगवान शिव को जल चढ़ाता है। आसपास के लोगों का कहना है की यदि मंदिर में पूजा की तो घर में अनिष्ट होना शुरू हो जाता है।

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प्राचीन रत्नेश्वर महादेव का मंदिर लगभग तीन सौ साल से एक तरफ झुका हुआ है। लोग इस मंदिर की तुलना पीसा की मीनार से भी करते हैं। इस मंदिर के बारे में एक ओर दिलचस्प बात है कि यह मंदिर छह महीने तक पानी में डूबा रहता है।

बाढ़ के दिनों में 40 फीट से ऊंचे इस मंदिर के शिखर तक पानी पहुंच जाता है। बाढ़ के बाद मंदिर के अंदर सिल्ट जमा हो जाता है। मंदिर टेढ़ा होने के बावजूद ये आज भी कैसे खड़ा है, इसका रहस्य कोई नहीं जानता है।

ये है मंदिर की प्रचलित कथाएं

मंदिर का इतिहास भी बेहद दिलचस्प बताया जाता है। इस मंदिर के निर्माण बारे में भिन्न-भिन्न कथाएं कही जाती हैं।कुछ जानकारियों के अनुसार जिस समय रानी अहिल्या बाई होलकर शहर में मंदिर और कुण्डों आदि का निर्माण करा रही थीं उसी समय रानी की दासी रत्ना बाई ने भी मणिकर्णिका कुण्ड के समीप एक शिव मंदिर का निर्माण कराने की इच्छा जताई, जिसके लिए उसने अहिल्या बाई से रुपये भी उधार लिए और इसे निर्मित कराया।

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जब यह मंदिर बनकर तैयार हुआ तो अहिल्या बहुत खुश हुई। उन्होने इसे अपने नाम पर रखने को कहा लेकिन दासी ने इसे अन्य नाम ‘रत्नेश्वर महादेव’ के नाम पर रख दिया था इसलिए अहिल्या ने श्राप दे दिया कि इस मंदिर में कोई पूजा नहीं करेगा।