Taliban News : इतना आसान नहीं है अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा, राह में खड़ा होंगे नॉर्दर्न अलायंस के लड़ाके

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Taliban News : इतना आसान नहीं है अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा, राह में खड़ा होंगे नॉर्दर्न अलायंस के लड़ाके

Taliban News : इतना आसान नहीं है अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा, राह में खड़ा होंगे नॉर्दर्न अलायंस के लड़ाके

हाइलाइट्स:

  • तालिबान से लोहा लेने वाल नॉर्दर्न अलायंस के नेता फिर से प्लानिंग में जुट गए हैं
  • अलायंस ने 1996 से 2001 के बीच तालिबान को कई इलाकों में धूल चटा दिया था
  • अलायंस ने पूरे अफगानिस्तान पर शासन करने के तालिबान के सपने पर पानी फेरा था

नई दिल्ली
अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों के निकलने के बाद ताबिलान लगातार नए-नए इलाकों पर कब्जा करते हुए आगे बढ़ रहा है। तालिबानी आतंकवादियों ने अफगानिस्तान के मध्य में बसे शहर गजनी को घेर लिया है। आतंकियों ने नागरिकों के घरों के अपना ठिकाना बना लिया है और वहीं से अफगान सैनिकों पर गोलियां बरसा रहे हैं।

सोमवार को हुआ अमेरिका-तालिबान संघर्ष का सांकेतिक अंत

दरअसल, अफगानिस्तान में तालिबान के खिलाफ युद्ध का नेतृत्व करने वाले अमेरिकी जनरल ऑस्टिन मिलर ने सोमवार को कमांड छोड़ दिया और इसके साथ ही अमेरिका-तालिबान संघर्ष का सांकेतिक अंत हो गया। हालांकि, तालिबान की राह इतनी भी आसान नहीं है। 1990 के दशक में तालिबान से लोहा लेने वाले लड़ाकों का संगठन नॉर्दर्न अलायंस फिर से खड़ा होने वाला है। 1996 से 2001 तक तालिबान से दो-दो हाथ करने वाले इस संगठन को भारत, रूस और ईरान का समर्थन प्राप्त था। अब जब तालिबान ने फिर से अपना सर उठा लिया तो अलायंस के नेताओं ने भी रणनीति पर बातचीत शुरू कर दी है।

तालिबान के सपने के सामने फिर खड़े होने की तैयारी

हेरात प्रांत के कद्दावर नेता इस्माइल खान अब 70 वर्ष के हो चुके हैं, फिर भी उनमें तालिबान से लोहा लेने की जबर्दस्त ललक दिख रही है। उधर, नॉर्दर्न अलायंस के उपाध्यक्ष रह चुके मार्शल अब्दुल राशिद दोस्तम ने भी फिर से कमर कसने को तैयार हैं। हमारे सहयोगी अखबार द इकनॉमिक टाइम्स (ET) को पता चला है कि दर्जनों लड़ाकों ने उनके नेतृत्व में तालिबान के दांत खट्टे करने की कसम खाई है। इनके अलावा, अलायंस के एक और सहयोगी अत्ता मोहम्मद नूर ने भी तालिबान के खात्मे का संकल्प दुहराया है। ध्यान रहे कि इसी नॉर्दर्न अलायंस ने 1996 से 2001 के बीच तालिबान का तब सामना किया था जब वो काफी उभार पर था, फिर भी वह पूरे अफगानिस्तान पर कब्जा नहीं कर सका था क्योंकि अलायंस के लड़ाके उसकी राह में दीवार बनकर खड़े थे।

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उज्बेक, ताजिक और हजारा लड़ाकों ने कसी कमर

ईटी को मिली जानकारी के मुताबिक, अफगानिस्तान के उत्तरी इलाकों में हजारों लड़ाकों ने फिर से तालिबान से लड़ने का मन बना लिया है। इन इलाकों में उज्बेक, ताजिक और हजारा समुदाय का दबदबा है। इन समुदायों के लड़ाके अफगानिस्तान सरकार से हथियार और अन्य साजो-सामान की मदद मांग रहे हैं ताकि तालिबान को धूल चटाई जा सके। वहीं, अफगान सरकार ने भारत, रूस और अमेरिका से हवाई मदद की मांग की है क्योंकि हवाई हमलों में तालिबान को काफी नुकसान होता है। राष्ट्रपति अशरफ गनी की सरकार रूस का एयर प्लैटफॉर्म को तवज्जो दे रही है क्योंकि अतीत में अफगान सैनिकों ने रूस में रहकर पायलट ट्रेनिंग ली है। वो रूसी हथियारों से भी अभ्यस्त हैं।

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तख्तापलट या कुछ इलाकों पर कब्जे तक सीमित?

यूं तो कई प्रांतों में लड़ाई चल रही है, लेकिन तालिबान ने अभी उत्तरी सीमा से सटे इलाकों पर अपना फोकस कर रखा है। वहां भारी तबाही मच रही है। पिछले दो महीनों में इन इलाकों के कई जिले तालिबान के कब्जे में आ चुके हैं। उधर, देश के पहले उप-राष्ट्रपति अमरुल्ला सालेह ने सोमवार को कहा कि आज भी अफगानिस्तान की जनता का सरकारी सुरक्षा बलों पर गहरा भरोसा है। उन्होंने कहा कि ‘सुरक्षा बलों की शहादत हमारा गौरव है।’ उन्होंने कहा कि तालिबान के हाथ कुछ और इलाके लग जाएं, लेकिन पूरे अफगानिस्तान पर शासन का उसका सपना कभी पूरा नहीं हो पाएगा। हालांकि, यह भविष्य के गर्भ में ही छिपा है कि तालिबान अशरफ गनी की सरकार का तख्ता पलट करने में सफल हो पाता है या उसे कुछ और इलाकों पर कब्जे से ही संतोष करना पड़ेगा।

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