3 अक्टूबर को नवरात्रि का पांचवा दिन है। इस दिन दुर्गा माँ के छठें रूप स्कंदमाता की पूजा होती है। आइये जानते हैं कि स्कंदमाता की पूजा किस तरह से करनी चाहिए और पुराणों में स्कंदमाता को लेकर क्या कहानी है।
स्कंदमाता स्कंद की माता होता है। स्कन्द नाम भगवान कार्तिकेय का एक नाम है। स्कंदमाता की पूजा नवरात्रि के पांचवें दिन की जाती है। इन्हे एक क्रूर शेर की सवारी करते हुए भगवान कार्तिकेय को गोद में उठाने के रूप में दर्शाया गया है।
माँ स्कंदमाता की चार भुजाएँ हैं, जिनमें से दो कमल हैं, एक शिशु भगवान स्कंद को रखती है और एक अभयमुद्रा (आशीर्वाद मुद्रा देते हुए) में है। किंवदंती कहती है कि बहुत तपस्या और भक्ति के बाद तारकासुर नामक दानव ने भगवान ब्रह्मा को प्रसन्न किया, उसके बाद ब्रह्मा ने उसे एक वरदान दिया। तारकासुर ने खुद को अमर बनाने के लिए कहा, जिसे भगवान ब्रह्मा ने यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया कि कोई भी व्यक्ति मृत्यु से नहीं बच सकता है। इसके लिए, तारकासुर ने एक वरदान मांगा कि भगवान शिव का केवल पुत्र ही उसे मार सकता है। तारकासुर ने यह वरदान इसलिए मांगा था कि उसे विश्वास था कि भगवान शिव कभी भी शादी नहीं करेंगे।
अपना वरदान पाकर तारकासुर ने सभी को पीड़ा देना शुरू कर दिया। डर था कि यह केवल विनाश लाएगा, देवताओं ने भगवान शिव से शादी करने का अनुरोध किया। शिव ने पार्वती से शादी की और उनके बच्चे कार्तिकेय / स्कंद ने आखिरकार तारकासुर का अंत किया। भगवान स्कंद भी राक्षसों के खिलाफ युद्ध में देवता के प्रमुख बने थे।
नवरात्रि का प्रत्येक दिन माँ दुर्गा के नौ अलग-अलग अवतारों की पूजा करने के लिए समर्पित है। नौ अलग-अलग रूप हैं शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायिनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री।
स्कंदमाता की पूजा करने की विधि
ऐसा कहा जाता है कि मां स्कंदमाता की उपासना से मन की सारी कुण्ठा जीवन-कलह और द्वेष भाव समाप्त हो जाता है। मृत्यु लोक में ही स्वर्ग की भांति परम शांति एवं सुख का अनुभव प्राप्त होता है। साधना के पूर्ण होने पर मोक्ष का मार्ग स्वत: ही खुल जाता है।
सर्वप्रथम मां स्कंद माता की मूर्ति अथवा तस्वीर को लकड़ी की चौकी पर पीले वस्त्र को बिछाकर उस पर कुंकुंम से ऊं लिखकर स्थापित करें। मनोकामना की पूर्णता के लिए चौकी पर मनोकामना गुटिका रखें। हाथ में पीले पुष्प लेकर मां स्कंद माता के दिव्य ज्योति स्वरूप का ध्यान करें।
ध्यान के बाद हाथ के पुष्प चौकी पर छोड़ दें। तदुपरांत यंत्र तथा मनोकामना गुटिका सहित मां का पंचोपचार विधि द्वारा पूजन करें। पीले नैवेद्य का भोग लगाएं तथा पीले फल चढ़ाएं। इसके बाद मां के श्री चरणों में प्रार्थना कर आरती पुष्पांजलि समर्पित करें तथा भजन कीर्तन करें।