भारत का ऐसा राजनेता जिसने प्रधानमंत्री पद की कुर्सी ठुकरा दी थी ?

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भारत का ऐसा राजनेता जिसने प्रधानमंत्री पद की कुर्सी ठुकरा दी थी?

भारत का ऐसा राजनेता जिसने प्रधानमंत्री पद की कुर्सी ठुकरा दी थी

राजनीति में हमेशा सत्ता और कुर्सी की लड़ाई आपने देखी होगी पर आज हम बात कर रहे हैं एक ऐसे नेता की जिन्होंने प्रधानमंत्री की कुर्सी किसी और को सौंप दी इस नेता का नाम था चौधरी देवी लाल। 25 सितंबर, 1914 को हरियाणा के सिरसा के गांव तेजाखेड़ा में जन्मे देवीलाल पहले कांग्रेसी थे और ताऊ के नाम से प्रसिद्द थे।1966 में हरियाणा के अलग राज्य बनने के बाद देवीलाल ने 1971 में कांग्रेस छोड़ दी और पहले लोकदल और फिर इंडियन नेशनल लोकदल पार्टी बनाई. ताऊ 1977 -1979 और 1987-1989 में हरियाणा के मुख्यमंत्री भी बने।

1987 में हरियाणा विधानसभा के चुनाव में देवीलाल ने 90 में 85 सीटें हासिल की और कांग्रेस को सिर्फ पांच सीटों पर समेट दिया था। उनकी इस कामयाबी के बाद ही ये माहौल बनने लगा कि राष्ट्रीय स्तर पर देवीलाल ही कांग्रेस विरोधी मोर्चे का नेतृत्व कर सकते हैं।1989 के आम चुनाव में भारतीय राजनीति के नए युग की शुरुआत हुई। 1989 को आम चुनाव के नतीजे आने के बाद कांग्रेस सत्ता से बाहर हो चुकी थी।

देवीलाल

संयुक्त मोर्चा संसदीय दल की बैठक हुई और उस बैठक में विश्वनाथ सिंह के प्रस्ताव पर चंद्रशेखर के समर्थन से चौधरी देवीलाल को संसदीय दल का नेता मान लिया गया था। चौधरी देवीलाल समर्थन प्रस्ताव पर धन्यवाद देने के लिए खड़े हुए, लेकिन उन्होंने जो बोला उसकी किसी ने कल्पना नहीं की थी। उन्होंने कहा – “मैं सबसे बुजुर्ग हूं, मुझे सब ताऊ कहते हैं, मुझे ताऊ बने रहना ही पसंद है और मैं ये पद विश्वनाथ प्रताप को सौंपता हूँ.” उनके इस फैसले ने देश की राजनीतिक दशा और दिशा को हमेशा के लिए बदल कर रख दिया, क्योंकि वीपी सिंह के प्रधानमंत्री बनने के बाद भारतीय राजनीति में सबकुछ पहले जैसा नहीं रह गया।

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वीपी सिंह को मिली प्रधानमंत्री की कुर्सी सिर्फ एक कुर्सी नहीं थी बल्कि देवी लाल की कृपा थी। जब चुनाव परिणाम आये तो चंद्रशेखर ने कह दिया था कि संसदीय दल के नेता का चुनाव बहुमत से होगा। चंद्रशेखर भी प्रधानमंत्री बनना चाहते थे और वीपी सिंह भी। वीपी सिंह को लगा कि अगर चंद्रशेखर सामने आ गए तो उनकी हार हो जायेगी। ऐसे में वीपी सिंह ने देवीलाल के सामने संसदीय दल के नेता का चुनाव लड़ने से मना कर दिया।

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देवीलाल एक ऐसे नेता थे जिनके नीचे काम करने में वीपी सिंह और चंद्रशेखर दोनों को कोई दिक्कत नहीं थी। देवीलाल के पक्ष में पूरा राजनीतिक खेल था। उनकी एक हाँ उन्हें देश का प्रधानमंत्री बनवा सकती थी लेकिन उन्होंने वो कुर्सी तोहफे के रूप में वीपी सिंह को दे दी और राजनीति में त्याग की अनोखी मिसाल बन गए।

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