जानिए श्राद्ध का मतलब और इसे क्यों मनाते है ?

807
11
जानिए श्राद्ध का मतलब और इसे क्यों मनाते है ?

पुराणा अनुसार पितरों को दो श्रेणियों में रखा जा सकता है. पहला है दिव्य पितर और मनुष्य पितर. दिव्य पितर उस जमात का नाम है, जो जीवधारियों के कर्मों को देखकर मृत्यु के बाद उसे क्या गति दी जाए, इसका निर्णय करता है. इस जमात का प्रधान यमराज है. अत: यमराज की गणना भी पितरों में होती है. काव्यवाडनल, सोम, अर्यमा और यम- ये चार इस जमात के मुख्य गण हैं.

इन चारों के अलावा प्रत्येक वर्ग की ओर से सुनवाई करने वाले हैं यथा: अग्निष्व, देवताओं के प्रतिनिधि, सोमसद या सोमपा-साध्यों के प्रतिनिधि तथा बर्हिपद-गन्धर्व, राक्षस, किन्नर सुपर्ण, सर्प तथा यक्षों के प्रतिनिधि हैं. इन सबसे गठित जो जमात है, वही पितर हैं. यही मृत्यु के बाद न्याय करती है.

वेदों में कहा गया है कि यम नाम की एक प्रकार की वायु होती है. देहांत के बाद कुछ आत्माएँ उक्त वायु में तब तक स्थित रहती हैं जब तक कि वे दूसरा शरीर धारण नहीं करती है.

‘मार्कण्डेय पुराण’ अनुसार दक्षिण दिशा के दिकपाल और मृत्यु के देवता को यम कहते हैं. वेदों में ‘यम’ और ‘यमी’ दोनों देवता मंत्रदृष्टा ऋषि माने गए हैं. वेदों के ‘यम’ का मृत्यु से कोई संबंध नहीं था पर वे पितरों के अधिपति माने गए हैं.

imgpsh fullsize anim 51 -

बता दें कि अंग्रेजी में यम को प्लूटो कहा जाता हैं, साथ ही योग के प्रथम अंग को भी यम कहा जाता हैं. यम को दसों दिशाओं के दस दिकपालों में से एक माना जाता है. यह दस दिकपाल है इंद्र, अग्नि, यम, नऋति, वरुण, वायु, कुबेर, ईश्व, अनंत और ब्रह्मा.

अर्यमा
आश्विन कृष्ण प्रतिपदा से लेकर अमावस्या तक ऊपर की किरण और किरण के साथ पितृ प्राण पृथ्वी पर व्याप्त रहते है तथा पितरों में श्रेष्ठ है अर्यमा इन्हें पितरों का देव कहा जाता है. पितरों में श्रेष्ठ है अर्यमा। अर्यमा पितरों के देव हैं। ये महर्षि कश्यप की पत्नी देवमाता अदिति के पुत्र हैं और इंद्रादि देवताओं के भाई। पुराण अनुसार उत्तरा-फाल्गुनी नक्षत्र इनका निवास लोक है.

यह भी पढ़ें : जानिए भगवान शिव के गले में लिपटे नाग का रहस्य

बताते चले कि साधारण शब्दों में श्राद्ध का अर्थ अपने कुल देवी देवताओं, पितरों, अथवा अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धा प्रकट करना माना जाता है. हिंदू पंचाग के अनुसार वर्ष में पंद्रह दिन की एक विशेष अवधि होती है, जिसमें श्राद्ध किये जाते है. इन्हीं दिनों को श्राद्ध पक्ष, पितृपक्ष और महालय के नाम से जाना जाता है.