आदि काव्य रामायण के रचयिता ज्ञानी महर्षि वाल्मीकि का जन्मदिवस देशभर में पूरे ही उत्साह के साथ मनाया जाता है. पुरानी कथाओं के अनुसार वैदिक काल के महान ऋषि वाल्मीकि पहले डाकू थे. यह बात सुननें में काफी अजीब लगता है कि जो पहले डाकू थे वह रामायण के रचयिता है.
लेकिन जीवन की एक घटना ने उन्हें बदलकर रख दिया. वाल्मीकि असाधारण व्यक्तित्व के धनी थे. शायद इसी वजह से लोग आज भी उनके जन्मदिवस पर कई विशेष कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं. महर्षि वाल्मीकि का जन्म अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा यानी कि शरद पूर्णिमा को हुआ था. वाल्मीकि जयंती इस वर्ष 13 अक्टूबर को मनाई जाती है.
ऐसा कहा जाता है कि वाल्मीकि का जन्म महर्षि कश्यप और अदिति की 9वीं संतान वरुण और पत्नी चर्षणी के घर हुआ था. बचपन में भील समुदाय के लोग उन्हें चुराकर ले गए थे और उनकी परवरिश भील समाज में ही हुई थी. वाल्मीकि से पहले उनका नाम रत्नाकर हुआ करता था. रत्नाकर जंगल से गुजरने वाले लोगों से साथ लूट-पाट का काम करता था.
एक बार जब जंगल से नारद मुनि गुजर रहे थे तो रत्नाकर ने उन्हें भी बंदी बना लिया. तभी नारद ने उनसे पूछा कि ये सब पाप तुम क्यों करते हो? जिसके बाद उन्होंने जवाब दिया कि ‘मैं ये सब अपने परिवार के लिए करता हूं’. नारद हैरान हुए और उन्होंने फिर उससे पूछा क्या तुम्हारा परिवार तुम्हारे पापों का फल भोगने के लिए तैयार है. रत्नाकर ने निसंकोच हां में जवाब दिया.
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तभी नारद मुनि ने रत्नाकर से बोला की जवाब देने से पहले अपने परिवार वालों से एक बार इस बारें में बात तो करों कि वह इस बात के लिए तैयार है या फिर नहीं. जब उन्होंने यह बात अपने परिवार के सदस्यों से पूछी तो सब ने मना कर दिया. जिसके बाद वह बहुत ही दुखी हो गए और आगे चलकर रत्नाकर ही महर्षि वाल्मीकि कहलाए.