एक ऐसा गांव, जहां धूम्रपान को लेकर है अनोखी राय

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एक दूसरे को टशन दिखाने के चक्कर में नशा करना एक तरह से आम हो गया है। नशा लोग आजकल लत के लिए नहीं करते हैं वे नशा करते हैं ताकि शाम को अपनी दिन भर की थकान उतार सके। आजकल इसकी चपेट में नौजवान भी आ चुका है। नशा करने से कितने रोग होते हैं यह तो सर्वविदित है। अपना स्टेटस हाई करने के चक्कर में लोग अपनी सेहत के साथ खिलवाड़ कर रहें हैं।

अगर रिपोर्टों पर नज़र डाली जाए तो पता चलता है कि हर सातवां व्यक्ति धूम्रपान का शिकार है। आम तौर पर गांव हो या शहर धूम्रपान एवं तंबाकू उत्पादों के सेवन से हर साल कई लोग अपनी जान गंवा देते हैं।

लेकिन इन सबके बीच एक ऐसी भी जगह हैं जहाँ लोग नशा और धूम्रपान नहीं करते हैं। यह जगह भारत का एक गांव है जहां कोई भी धूम्रपान नहीं करता है।

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हरियाणा के अंतिम छोर पर बसा राजस्थान से सटा छोटा सा गांव टीकला है। इस गांव की आबादी मात्र 1500 है। गांव भले ही छोटा सा हो लेकिन यहां दशकों से चली आ रही एक परंपरा इसे ऐतिहासिक बनाते हुए देश को बड़ा संदेश देती है। गांव में कोई भी धूम्रपान नहीं करता, बुजुर्ग हो या जवान हर कोई बीड़ी-सिगरेट, पान-मसाला से दूर रहता है। यही नहीं अगर गांव में कोई रिश्तेदार आता है तो उसे भी पहले बीड़ी-सिगरेट का सेवन न करने को कह दिया जाता है।

अगर कोई अंजान व्यक्ति गांव में प्रवेश करता है तो गांववालों का पहला सवाल यही होता है- जेब में बीड़ी-सिगरेट, पान-गुटखा तो नहीं है, इसके बाद ही उससे आगे बात की जाती है. इस छोटे से गांव की पहचान हरियाणा ही नहीं बल्कि राजस्थान के कई गांव भी इसे इस मामलें में आदर्श मानते हैं।

टीकला में तंबाकू का किसी रूप में सेवन न करने की यह परंपरा आज की नहीं बल्कि कई दशकों से चली आ रही है। दिल्ली से जयपुर तक इस गांव को इसलिए ही पहचाना जाता है कि यहां कोई तंबाकू का सेवन नहीं करता है।

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यहाँ पर धूम्रपान न करने के पीछे एक कारण भी हैं। रेवाड़ी से 30 किलोमीटर दूर स्थित गांव टीकला में बाबा भगवानदास का मंदिर और समाधि बनी हुई है। उनकी 23वीं पीढ़ी में गृहस्थ गद्दी संभाल रहे बाबा अमर सिंह बताते हैं कि बाबा भगवानदास ने तंबाकू का बहिष्कार करने की शुरुआत की थी। बाबा के कई चमत्कारों के बाद लोगों की आस्था उनमें बढ़ती गई और लोगों ने उसी आस्था को मानते हुए धूम्रपान का बहिस्कार करते हैं।

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तब से शुरू हुई आस्था आज गांव में जागरूकता के रूप में बदल चुकी है। इस गांव के लोगों के रिश्तेदार भी इस पहल की तारीफ करते हुए अपने गांव-शहर जाकर इस अच्छी परंपरा के बारे में चर्चा करते हैं।