UP election 2022: ‘बीजेपी की टीम बी, चचाजान…’ यूपी चुनाव में ओवैसी से हाथ मिलाने से क्यों ‘डर’ रहे हैं सियासी दल?

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UP election 2022: ‘बीजेपी की टीम बी, चचाजान…’ यूपी चुनाव में ओवैसी से हाथ मिलाने से क्यों ‘डर’ रहे हैं सियासी दल?

लखनऊ
उत्तर प्रदेश विधानसभा से पहले लगभग सभी सियासी दलों ने ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) से किनारा कर लिया है। ओम प्रकाश राजभर के भागीदारी संकल्प मोर्चे ने भी AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी को खुद से दूर कर दिया है। सियासी विश्लेषकों का कहना है कि ओवैसी विपक्षी राजनीति के लिए एक संकट बन गए हैं। उनके लिए वह गांव के उस शरारती लड़के की तरह हैं जो जबर्दस्ती खेल में घुस जाता है और पूरा खेल बिगाड़ देता है। गांव के बाकी लड़के उससे डरे रहते हैं और चाहते हैं कि वह चला जाए।

ओम प्रकाश राजभर के भागीदारी संकल्प मोर्चे के ऐलान के साथ ही ओवैसी के साथ उनका गठबंधन तय था लेकिन सीटों पर बात नहीं बन सकी। दूसरा, राजभर ने अब समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव के साथ हाथ मिला लिया। वहीं अखिलेश यादव साफ कर चुके हैं कि ओवैसी की पार्टी के साथ उनका कोई गठबंधन नहीं होगा।

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कभी बीजेपी की ‘टीम बी’ तो कभी ‘चचाजान’
बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने भी कुछ महीने पहले यह स्पष्ट कर दिया था कि उनकी पार्टी AIMIM के साथ गठबंधन नहीं करेगी और अकेले ही चुनाव लड़ेगी। कांग्रेस भी अक्सर ओवैसी को बीजेपी का ‘एजेंट’ और ‘टीम बी’ करार देती रही है। पिछले दिनों बीकेयू नेता राकेश टिकैत ने ओवैसी को ‘खुला सांड’ और बीजेपी का ‘चचाजान’ बता दिया था।

दरअसल, विपक्षी दलों के लिए ओवैसी के साथ खड़े होने का मतलब बीजेपी को ध्रुवीकरण का मौका देना होगा। अगर वे ओवैसी के साथ मैदान में उतरते हैं तो उन पर भी मुस्लिम परस्त और कट्टरपंथी पार्टी के साथ खड़ा होने का आरोप लग सकता है। यही वजह है कि बिहार और पश्चिम बंगाल के बाद अब यूपी में भी कोई ओवैसी से हाथ मिलाने को तैयार नहीं है।

ओवैसी को साथ न लेने के पीछे वजह क्या?
ओवैसी के साथ आने से विपक्षी दलों की आनाकानी पर वरिष्ठ पत्रकार बृजेश शुक्ल एनबीटी ऑनलाइन को बताते हैं, ‘गैर बीजेपी दलों में मुस्लिमों वोटों को लेकर होड़ हैं। सपा, बसपा, कांग्रेस सभी मुस्लिम वोट चाहते हैं। उनके लिए ओवैसी बिन बुलाए मेहमान की तरह हैं जो बीजेपी के साथ उन सबकी भी छीछालेदार किए जा रहे हैं।’

UP Election में ओवैसी की पार्टी के उतरने से क्या बीजेपी को फायदा पहुंचेगा?

बृजेश शुक्ल ने बताया, ‘2014 के बाद से राजनीतिक पैटर्न में बदलाव हुआ है। विपक्षी दल हिंदुत्ववादी भी दिखना चाहते हैं और अंदर ही अंदर मुस्लिम वोट चाहते हैं लेकिन मुहर नहीं लगाना चाहते हैं। ओवेसी को लेकर यह भी धारणा है कि वह केवल मुसलमानों की बात करते हैं। ऐसे में अगर ओवैसी को साथ ले लेंगे तो हिंदू वोट नाराज हो जाएगा। राजनीतिक दलों का हाल यह है कि वे न ओवैसी को निगल पाते हैं और न उगल पाते हैं और चाहते हैं कि ओवैसी मैदान छोड़कर भाग गए।’

ओवैसी कितना नुकसान पहुंचा सकते हैं?
सियासी एक्सपर्ट्स के मुताबिक, AIMIM के यूपी चुनाव में उतरने से विपक्षी खाते के वोटों को नुकसान पहुंचना तय है। पश्चिम यूपी की संभल, मुरादाबाद, नगीना, शामली, रामपुर, नूरपुर और अमरोहा समेत एक दर्जन ऐसी सीटें हैं जहां मुस्लिम निर्णायक स्थिति में हैं। ओवैसी के फेवर में बात यह भी है कि लोग उन्हें पंसद करते हैं। उनकी रैलियों जबरदस्त भीड़ इस बात प्रमाण है।

हम सियासी अछूत और दलित हैं: AIMIM प्रदेश अध्यक्ष
एआईएमआईएम के प्रदेश अध्यक्ष शौकत अली ने विपक्षी दलों के रुख को लेकर एनबीटी ऑनलाइन से बातचीत में कहा, ‘हम सियासी अछूत हैं, सियासी दलित हैं। दूसरे दल मुसलमानों का वोट चाहते हैं और मुसलमानों को सिर्फ डिस्पोजल की तरह इस्तेमाल करना चाहते हैं। कोई नहीं चाहता कि उनका राजनीतिक सशक्तीकरण हो।’

अखिलेश और AAP का गठबंधन पर निशाना
अखिलेश यादव पर निशाना साधते हुए शौकत अली कहते हैं, ‘आम आदमी पार्टी का कोई जनाधार नही हैं। न ही संगठन है और न ही जिला पंचायत सदस्य। हम तो इतनी खराब स्थिति में नहीं है। अखिलेश तीन फीसदी राजभर के साथ गठबंधन करेंगे लेकिन AIMIM के साथ नहीं क्योंकि उन्हें डर है कि मुस्लिम लीडरशिप डिवेलप न हो जाए।’ वह आगे कहते हैं, ’20 फीसदी मुस्लिम यूपी में हैं और यूपी का मुस्लिम ही तय करता है कि प्रदेश की राजनीति किस करवट बैठेगी।’



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