क्या हिन्दू इतिहास में गोमांस खाया जाता था?

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क्या हिन्दू इतिहास में गोमांस खाया जाता था?

गोमांस खाने पर अभी भी हिन्दुओं में हमेशा घूस्सा दिखाई दिया है. कुछ ऐसे लोग है जो गो की तस्करी करते है और कुछ ऐसे भी लोग है जो इसके खिलाफ अवाज उठाने से पीछे नहीं हटते है, लेकिन हम आपको यहां पर यह बताने जा रहे है कि इतिहास में गोमांस खाया जाता था या फिर नहीं. इससे संबंधित लेख अंबेडकर जी ने भी लिखे थे जिसके बारें में हम आपको बताने जा रहें है.

अपने इस लेख में अंबेडकर ने हिंदुओं के इस दावे को चुनौती देते हैं कि हिंदुओं ने कभी गोमांस नहीं खाया और गाय को हमेशा पवित्र माना है और उसे अघन्य की श्रेणी में रखा है. अंबेडकर ने प्राचीन काल में हिंदुओं के गोमांस खाने की बात को साबित करने के लिए हिन्दू और बौद्ध धर्मग्रंथों का सहारा लिया.

उनका कहना था कि “गाय को पवित्र माने जाने से पहले गाय को मारा जाता था. उन्होंने हिन्दू धर्मशास्त्रों के विख्यात विद्वान पीवी काणे का हवाला दिया. काणे ने लिखा है, ऐसा नहीं है कि वैदिक काल में गाय पवित्र नहीं थी, लेकिन उसकी पवित्रता के कारण ही बाजसनेई संहिता में कहा गया कि गोमांस को खाया जाना चाहिए.”

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अंबेडकर ने लिखा है, “ऋगवेद काल के आर्य खाने के लिए गाय को मारा करते थे, जो खुद ऋगवेद से ही स्पष्ट है.” ऋगवेद में इंद्र कहते हैं, “उन्होंने एक बार 5 से ज़्यादा बैल पकाए’. अग्नि के लिए घोड़े, बैल, सांड, बांझ गायों और भेड़ों की बलि दी गई. गाय को तलवार या कुल्हाड़ी से मारा जाता था. अंबेडकर ने वैदिक ऋचाओं का हवाला दिया है. जिसमे बलि देने के लिए गाय और सांड में से चुनने को कहा गया है.

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अंबेडकर ने लिखा “तैत्रीय ब्राह्मण में बताई गई कामयेष्टियों में न सिर्फ़ बैल और गाय की बलि का उल्लेख है बल्कि यह भी बताया गया है कि किस देवता को किस तरह के बैल या गाय की बलि दी जानी चाहिए, साथ ही उन्होंने यह भी लिखा हैं कि “विष्णु को बलि चढ़ाने के लिए बौना बैल, वृत्रासुर के संहारक के रूप में इंद्र को लटकते सींग वाले और माथे पर चमक वाले सांड, पुशन के लिए काली गाय, रुद्र के लिए लाल गाय आदि.” अंबेडकर ने ऐसे कई तथ्य है जिनमें गो के बली दिए जाने के बारे में बताया है.