महाभारत की कथा का इतिहास काफी अनूठा है. महाभारत युद्ध के दौरान हुई ऐसी कई घटना व विवरण है जिसमे अर्जुन का मन विचलित हुआ और अपने परिवार के खिलाफ शास्त्र उठाने में उसके हाथ काँप उठे उसी दौरान भगवान कृष्ण ने उसे गीता का ज्ञान दिया और उसे धर्म की स्थापना करवाई। भगवान श्रीकृष्ण एक विशाल सांस्कृतिक प्रतीक हैं। उनकी लोकप्रियता और अनुसरण ने दुनिया भर में सभी को पीछे छोड़ दिया है। क्या भगवान श्री कृष्ण के बिना पांडवों द्वारा महाभारत जीतना संभव था? यह सवाल सबके मन में उठता है , चलिए इसके जवाब जनने की कोशिश करते है।
भगवान विष्णु अपने 8वें अवतार श्री कृष्णा के रूप में राजा कंस की बुराई का विनाश करने के उद्देश्य से पृथ्वी पर अवतार लिया। भगवान कृष्ण हालांकि एक सांसारिक प्राणी से पैदा हुए थे फिर भी वह हर तरह से परिपूर्ण थे। वे सुदामा के सच्चे मित्र, अर्जुन के गुरु, उनकी गोपियों और पत्नियों के प्रेमी, एक चतुर राजनेता, मार्गदर्शक और दार्शनिक थे।
महाभारत युद्ध में श्रीकृष्ण ने धर्म की स्थापना के लिए एकमहत्वपूर्ण भूमिका निभाई और श्रीकृष्ण पाण्डवों के पक्ष में नहीं होती तो पांडवों के लिए महाभारत का भीषण युद्ध जीतना नामुमकिन था। श्रीकृष्ण ने पांडवों को महाभारत युद्ध के दौरान आपने परामर्श दिए। जिसमें पांडवों ने अपने सरखो पर रखा।
महाभारत के युद्ध को अकेले श्रीकृष्ण एक ही दिन में जीत सकते थे लेकिन उन्होंने सिर्फ पांडवों का मार्गदर्शन किया। वे और पांडव खुद चाहते थे की अपनी योगिता के बाल पर वो जीते लेकिन श्रीकृष्ण पांडवों का मार्गदर्शन नहीं करते तोकरोवो की तरफ से भीष्म पितामह , गुरु द्रोण या फिर सूर्यपुत्र कर्ण को पराजित करना असंभव था।