क्या कबीरदास जी और तुलसीदास जी के गुरू एक थे ?

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कबीर और तुलसीदास जी
कबीर और तुलसीदास जी

कबीरदास जी और तुलसीदास जी दोनों ही वर्तमान में लोगों के दिलों में सम्मानजनक स्थान रखते हैं.  गोस्वामी तुलसीदास जी का जन्म 1511 ई. में हुआ था तथा इनकी मृत्यु 1623 ई. में हुई थी. इन्हें आदि काव्य रामायण के रचयिता महर्षि वाल्मीकि का अवतार भी माना जाता है. इनके द्वारा रचित श्रीरामचरितमानस का कथानक रामायण से लिया गया है. रामचरितमानस लोक ग्रन्थ है और इसे उत्तर भारत में बड़े भक्तिभाव के साथ पढ़ा जाता है. तुलसीदास जी द्वारा रचित महाकाव्य श्रीरामचरितमानस की प्रसिद्धि का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि विश्व के 100 सर्वश्रेष्ठ लोकप्रिय काव्यों में इसको 46वाँ स्थान दिया गया. तुलसीदास जी के गुरू नरहरिदास जी थे.

कबीर या भगत कबीर 15वीं सदी के भारतीय रहस्यवादी कवि और संत थे. इनकी रचनाओं ने भक्ति आंदोलन को गहरे स्तर तक प्रभावित किया. जहाँ तक कबीरदास जी के धार्मिक विश्वास की बात है तो वे हिन्दू धर्म व इस्लाम को न मानते हुए धर्म निरपेक्ष विचारधारा से प्रभावित थे. उन्होंने सामाज में फैली कुरीतियों, कर्मकांड, अंधविश्वास की निंदा की और सामाजिक बुराइयों की कड़ी आलोचना की. कबीरदास जी को हिंदू और मुस्लमानों द्वारा उनके विचारों के लिए धमकी भी दी जाती थी. कबीरदास जी के गुरू संत रामानंद जी थे.

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तुलसीदास जी

ऐसा बताया जाता है कि कबीरदास जी संत रामानंद से शिक्षा लेने के लिए गए थे. लेकिन रामानंद ने उनको अपना शिष्य बनाने से मना कर दिया. फिर कबीर दास जी प्रातः काल अंधेरे में रामानंदजी के गंगा स्नान के रास्ते में सीढ़ियों पर चुपचाप लेट गए और अंधेरे के कारण रामानंद जी उन्हें देख नही पाए और संत रामानंद जी का पैर कबीरदास की छाती पर पड़ गया.

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कबीरदास जी

 संत रामानंद ने राम राम का उच्चारण करते हुए पूछा कि कौन सीढ़ियों पर सोया है, तब कबीर दास जी ने अपना परिचय दिया तथा उनसे खुद को  अपना शिष्य बनाने का आग्रह किया. जिसके बाद कबीर दास जी संत रामानन्द के शिष्य बन गए. 

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तुलसीदास जी के गुरू नरहरिदास जी थे तथा कबीरदास जी के गुरू संत रामानंद जी थे. इन दोनों महान् आत्माओं के गुरू अलग-अलग थे.