महाभारत में गांधारी द्वारा श्री कृष्ण को दिए गए श्राप का पूरा सच

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महाभारत ब्रह्माण्ड के भीषण युद्ध में से एक है। यह युद्ध दर्शाता है की बुराई का हमेशा नाश होता है अगर वो बुराई अपना परिवार भी करे तो उसका नाश होकर ही रहेगा। जब महाभारत का युद्ध जीतकर सभी पांडव और भगवान श्री कृष्ण हस्तिनापुर आ रहे थे तब दिव्य दृष्टि प्राप्त संजय ने गांधारी को इस बारे में सूचित किया। समस्त पांडवो के साथ भगवान श्री कृष्ण भी उनके साथ थे। जब सभी वहा पहुंच गए तब गांधारी अपने सभी पुत्रों के युद्ध में मारें जाने के दुख में रो रही थी ।अपने कोरव के मारने का शोक मना रही थी।

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उसी वक़्त गांधारी ने भगवान श्री कृष्ण को देखते ही कहा आप चाहते तो ये युद्ध रोक़ सकते थे परन्तु आपने ऐसा नहीं किया उस कारण सभी भाई आपस में युद्ध में लड़ें इसलिए में आपको श्राप देती हूं की जैसे मेरे वंश का समस्त नाश हुआ जिस तरह ये कोरव पांडव आपस में युद्ध किया। एक दूसरे को मारा ठीक उसी तरह आपके वंश में सभी इस तरह एक दूसरे से आपस में लड़कर अपना नाश करेंगे और आप कुछ नहीं कर पाओगे सिर्फ देखते रह जाओगे जैसी पीड़ा मैंने भोगी है ठीक वैसी ही पीड़ा आपको भी सहना पड़ेगा, इसी पीड़ा में आप भी अपने प्राण का त्याग करोगे। इस पर श्री कृष्ण सर झुकाकर गांधारी के श्राप स्वीकार किया ।

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गांधारी के श्राप देने के कई साल बाद वह श्राप पूरा हुआ और यदुवंशी आपस में ही कोरवों और पांडवो की तरह ही लड़कर एक दूसरे को क्षति पहुंचा रहे थे। अपने वंश के पतन देखते हुए श्री कृष्ण दुखी होकर एक जंगल में एकांत में विचार मंथन के लिए गए थे तभी वहा एक शिकारी आया और भगवान के गुलाबी पैरो को देखकर उन पैरों को हिरण समझकर तीर चलाया वो तीर भगवान के पैरो में लगा और भगवान श्री कृष्ण ने संसार त्याग दिया और इस तरह गांधारी का श्राप पूरा हुआ। महाभारत का युद्ध काफी भी भीषण था , इस युद्ध के कारण भाई -भाई आपस में लड़े और एक दूसरे को क्षति पहुंचने के लिए सीमा पर कर दी।

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